डेनमार्क में एक बार फिर पवित्र क़ुरआन की बेअदबी, मुस्लिम देशों में गुस्सा
स्वीडन में इराकी ईसाई शरणार्थी साल्वान मोमिका की हत्या के कुछ ही दिनों बाद, डेनमार्क में इस्लाम विरोधी गतिविधियों में शामिल रासमुस पालुदान ने एक बार फिर पवित्र क़ुरआन की बेअदबी की, जिससे मुस्लिम देशों में सख़्त ग़ुस्सा है।
घृणित कृत्य और सोशल मीडिया पर ऐलान
स्वीडिश मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, हार्ड वे पार्टी का नेता और विवादित चरित्र रासमुस पालुदान ने एक्स (ट्विटर) पर एक संदेश पोस्ट कर घोषणा की कि वह कोपेनहेगन में तुर्किये के दूतावास के सामने पवित्र क़ुरआन का अपमान करेगा। इसके बाद, उसने अपने नापाक इरादों को अंजाम देते हुए पवित्र क़ुरआन के एक संस्करण को आग के हवाले कर दिया।
मोमीका की हत्या के बाद भी जारी इस्लामोफोबिक हरकतें
कुछ दिनों पहले ही स्वीडन में सलवान मोमीका की हत्या हो गई थी, जो कि पवित्र क़ुरआन की बार-बार बेअदबी करने के कारण चर्चित रहा था। उसकी मौत के बाद, यह उम्मीद की जा रही थी कि यूरोपीय सरकारें ऐसे घृणित कृत्यों पर रोक लगाने के लिए सख्त कदम उठाएंगी। लेकिन इसके उलट, डेनमार्क में पालुदान द्वारा इस शर्मनाक हरकत को अंजाम देने पर मुस्लिम समुदाय में गहरी नाराजगी फैल गई है।
डेनमार्क की पुलिस और सरकार की भूमिका
डेनमार्क पुलिस ने कुछ दिन पहले ही घोषणा की थी कि सलवान मोमीका की हत्या के बाद इस तरह के घृणास्पद कृत्यों की अनुमति नहीं दी जाएगी। लेकिन इसके बावजूद पालुदान ने खुलेआम इस्लाम के खिलाफ नफरत फैलाने का काम किया, जिससे डेनमार्क की सरकार और पुलिस की भूमिका पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।
मुस्लिम देशों की प्रतिक्रिया
इस घटना के बाद , ईरान, तुर्किये, पाकिस्तान, सऊदी अरब और कई अन्य मुस्लिम देशों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है और इस्लाम के पवित्र ग्रंथों के अपमान को रोकने के लिए यूरोपीय सरकारों से ठोस कदम उठाने की मांग की है। तुर्किये ने डेनमार्क सरकार को इस पर तत्काल कार्रवाई करने और इस तरह की हरकतों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का आग्रह किया है।
डेनमार्क और स्वीडन जैसे देशों में बार-बार पवित्र क़ुरआन की बेअदबी की घटनाएं सामने आ रही हैं, जिससे मुस्लिम दुनिया में आक्रोश बढ़ रहा है। इस्लामोफोबिक संगठनों और चरमपंथी नेताओं को खुली छूट मिलने से यूरोप में धार्मिक सौहार्द्र और शांति पर भी गंभीर खतरा मंडरा रहा है। अब यह देखना होगा कि डेनमार्क सरकार इस घटना पर क्या कदम उठाती है और क्या यूरोपीय देशों में धार्मिक भावनाओं का सम्मान सुनिश्चित करने के लिए कोई सख्त कानून लागू किया जाएगा या नहीं?