तालिबान ने जबरन शादी पर रोक को बताया महिला अधिकारों का उदाहरण
तालिबान ने अपनी सत्ता में जबरन शादी पर रोक लगाने को अपने प्रशासन की ओर से दिए गए महिलाओं के अधिकारों का एक उदाहरण बताया है।
तालिबान नेता शेख मोहम्मद खालिद ने कहा कि इस्लाम में पुरुष महिलाओं के सेवक हैं। इस्लाम में महिलाओं की स्थिति पर काबुल में एक समारोह में बोलते हुए, खालिद ने कहा कि इस्लाम में महिलाओं का उच्च स्थान है क्योंकि उनके पति अपनी पत्नियों के नौकर हैं और पुरुषों के लिए भोजन, वस्त्र और गुजारा भत्ता जैसी हर चीज अनिवार्य है।
उन्होंने महिलाओं के अधिकारों के मुद्दे को बयान करते हुए जबरन शादी पर प्रतिबंध का उदाहरण देते हुए जोर देकर कहा कि कोई भी पिता अपनी बेटी को किसी से शादी करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है।
अफगानिस्तान के इस्लामी मानदंडों और परंपराओं के अनुसार महिलाओं के मूल्यों और अधिकारों की सुरक्षा पर जोर देते हुए खालिद ने कहा कि सरकार अपनी बहनों और माताओं के सम्मान की रक्षा करेगी। इस बीच, तालिबान सरकार ने विभिन्न बयानों में स्पष्ट किया है कि वह उन महिलाओं के लिए अधिकार चाहती है जो इस्लामी कानून का विरोध नहीं करती हैं।
याद रहे कि अफगानिस्तान में सत्ता पर क़ब्ज़ा करने के बाद पहले दिसंबर में ही तालिबान ने घोषणा करते हुए कहा था कि उसने महिलाओं की जबरन शादी पर प्रतिबंध लगा दिया है। तालिबान ने अपने एक आदेश में कहा था कि दोनों (महिला और पुरुष) बराबर होने चाहिए। कोई भी महिलाओं को जबरदस्ती या दबाव से शादी करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है।
तालिबान के सर्वोच्च नेता हैबतुल्लाह अखुंजादा ने इस फैसले की घोषणा की थी। बता दें कि पर अगस्त में तालिबान के कब्जे के बाद से देश की अमेरिका में मौजूद अरबों डॉलर की संपत्ति सीज़ कर दी गयी है तथा इस देश को मिलने वाली अंतरराष्ट्रीय मदद बहाल नहीं हुई है और अर्थव्यवस्था खस्ताहाल है।
गरीब, रूढ़िवादी देश में जबरन विवाह बहुत प्रचलित है क्योंकि आंतरिक रूप से विस्थापित लोग कम उम्र की अपनी बेटियों की शादी पैसे लेकर कर देते हैं। इस धन का उपयोग कर्ज चुकाने और अपने परिवारों के भरण पोषण के लिए किया जाता है। तालिबान के आदेश में शादी के लिए न्यूनतम उम्र का उल्लेख नहीं किया गया है, हालांकि पहले यह 16 साल निर्धारित थी।