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भारत से नज़दीकी बढ़ाने को लालायित तालिबान , पाकिस्तान भरोसे नहीं रहना चाहता

भारत से नज़दीकी बढ़ाने को लालायित तालिबान, पाकिस्तान भरोसे नहीं रहना चाहता अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर क़ब्ज़ा जमाने वाला तालिबान भारत को लेकर अपना रुख बदल रहा है।

भारत को लेकर तालिबान हालाँकि अभी तक कोई स्पष्ट रवैया नहीं अपना रहा है लेकिन यह भी स्पष्ट है कि वह भारत से दूर भी नहीं रहना चाहता। तालिबान की अंतरिम सरकार में विदेश मंत्री का पदभार संभाल रहे अमीर खान मुत्तक़ी के पाकिस्तान दौरे से कुछ पहले उनका एक सहयोगी एक मध्यस्थ के पास यह पता करने पहुंचा था कि इस्लामाबाद में तालिबान नेताओं को भारत से संबंधित कोई मामला उठाना चाहिए या नहीं।

अफगान विदेश मंत्री के इस सहयोगी ने भारत की ओर से अफगानिस्तान को मिलने वाले 50,000 मीट्रिक टन गेहूं की आपूर्ति के लिए पाकिस्तान के क्षेत्र को लेकर वार्ता के बारे में सूचित किया था। साथ ही तालिबान ने अफगानिस्तान पर क़ब्ज़े के बाद काबुल में फंसे सैंकड़ों भारतियों और भारत में मौजूद अफ़ग़ान नागरिकों की वापसी के लिए यात्रा व्यवस्था करने की जरूरत के बारे में बताया था।

अफगान विदेश मंत्री ने अपनी तीन दिवसीय पाकिस्तान यात्रा में अपने पाकिस्तानी समकक्ष शाह महमूद कुरैशी, प्रधानमंत्री इमरान खान जैसे वरिष्ठ नेताओं के साथ बात करते हुए उपरोक्त दोनों मुद्दों को विस्तारपूर्वक उठाया था जिसके नतीजे में इमरान खान ने 22 नवंबर को घोषणा की थी कि इस्लामाबाद, नई दिल्ली को अपने क्षेत्र के माध्यम से अफगानिस्तान के गेंहू भेजने की अनुमति देने के लिए तैयार है। साथ ही पाकिस्तान अफगान नागरिकों को वाघा बॉर्डर के रास्ते स्वदेश वापसी के रास्ते भी खोलेगा जो इलाज के लिए भारत गए हुए थे और अफगानिस्तान के हालिया घटनाक्रम के नतीजे में अपने देश पलट कर नहीं आ सके हैं।

भारत की ओर से अफगान संकट पर क्षेत्रीय देशों की बैठक और अफगान विदेश मंत्री की भारत को लेकर पाकिस्तान में की गई वार्ता को अलग-अलग दृष्टिकोण से देखा जा रहा है। कहा जा रहा है कि तालिबान भारत और पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों में संतुलन बनाने की जद्दोजहद कर रहा है।

तालिबान प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने भारत की ओर से हाल ही में अफगानिस्तान पर बुलाई गई क्षेत्रीय बैठक को अफगानिस्तान के हित में बेहतर बताया था और इस बैठक की नीति को दोहराते हुए कहा था कि अफगानिस्तान की धरती को किसी भी देश के खिलाफ इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। उन्होंने कहा था कि तालिबान को इस बैठक के बारे में ना तो कोई आपत्ति है ना ही कोई चिंता की बात है।

तालिबान प्रवक्ता ने कहा था ” हालाकि हम इस बैठक में उपस्थित नहीं है लेकिन हम यकीन के साथ मानते हैं कि यह हमारे हित में बेहतर है। इस सम्मेलन में भाग ले रहे देशों को अफगानिस्तान की सुरक्षा स्तिथि में सुधार तथा हमारी सुरक्षा के बारे में सोचना चाहिए। इन देशों को अफगानिस्तान में सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए तालिबान सरकार की मदद करनी चाहिए।

तालिबान की नीयत को लेकर कोई भी अंदाज़ा लगाना मुश्किल है लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि वह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि काबुल, पाकिस्तान और भारत के बीच संतुलन चाहता है। तालिबान के लिए बेहतर भी यही है कि वह पूरी तरह से पाकिस्तान पर आश्रित न हो।

बात करें तालिबान पर भारत सरकार के रुख की, तो भारत पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि वह तालिबान शासन को मान्यता देने की जल्दबाजी में नहीं है। भारत सरकार स्पष्ट रूप से कह चुकी है कि अफगानिस्तान की धरती का किसी आतंकी गतिविधि के लिए इस्तेमाल ना हो तथा काबुल में एक समावेशी सरकार का गठन होना चाहिए।

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