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फ्रांस में सरकार बनाने के लिए रस्साकशी तेज

फ्रांस में सरकार बनाने के लिए रस्साकशी तेज

फ्रांस में रविवार को जारी किए गए चुनावी परिणामों के बाद अनिश्चितता की स्थिति बुधवार को भी बनी रही। 577 सदस्यीय राष्ट्रीय विधानसभा (फ्रांस की संसद) में हालांकि किसी भी पार्टी या मोर्चे को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला, फिर भी सबसे ज्यादा सीटें जीतने के बाद लेफ्ट मोर्चा सरकार बनाने के लिए सक्रिय हो गया है। लेफ्ट विचारधारा वाली पार्टियों के गठबंधन ‘न्यू पॉपुलर फ्रंट’ (एनपीएफ) ने प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के चयन की कोशिशें तेज कर दी हैं। उसने राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के निवर्तमान प्रधानमंत्री गैब्रिएल एताल के इस्तीफे को स्वीकार न करने के फैसले की आलोचना करते हुए इसे चुनाव में जनादेश के खिलाफ बताया है।

फ्रांस की 577 सदस्यीय राष्ट्रीय विधानसभा में सरकार बनाने के लिए 289 सीटें चाहिए। 7 जुलाई के परिणामों के बाद कुल मिलाकर 3 मोर्चे उभरकर सामने आए हैं। लेफ्ट पार्टियों के गठबंधन ‘एनपीएफ’ ने 182 सीटों पर जीत हासिल की है, जबकि राष्ट्रपति मैक्रों की रिनीसान्स पार्टी को 162 सीटें मिली हैं। दक्षिणपंथी पार्टियों के गठबंधन को 143 सीटें मिली हैं। हालांकि राष्ट्रीय विधानसभा त्रिशंकु है और कोई भी मोर्चा “289” के जादुई आंकड़े तक नहीं पहुंच सका है, फिर भी लेफ्ट मोर्चा 182 सीटों के साथ सबसे बड़ा मोर्चा बनकर उभरा है, इसलिए वह सरकार बनाने के लिए पूरी तरह से तत्पर है। उसने राष्ट्रपति मैक्रों से सरकार बनाने का अधिकार तुरंत देने की मांग की है।

फ्रांस में राजनीतिक गतिरोध का खतरा

फ्रांस के आधुनिक इतिहास में ऐसे चुनावी परिणामों की कोई मिसाल नहीं है जिसमें राष्ट्रीय विधानसभा में किसी को भी बहुमत नहीं मिला हो। रविवार के परिणामों ने यूरोपीय संघ की इस दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में राजनीतिक गतिरोध का खतरा पैदा कर दिया है। राष्ट्रीय विधानसभा 3 खेमों में बंट चुकी है, जिससे देश में स्थिर सरकार के गठन की सभी राहें बंद हो गई हैं। एक तरफ जहां लेफ्ट मोर्चा सरकार बनाने के लिए नव निर्वाचित विधायकों को अपनी ओर आकर्षित करके अपनी संख्या बढ़ाने की कोशिश कर रहा है, वहीं राष्ट्रपति मैक्रों की पार्टी भी नव निर्वाचित सदस्यों को अपने खेमे में शामिल करने की कोशिश कर रही है।

मैक्रों की पार्टी के नेता अरोर बर्गे ने समाचार एजेंसी ‘रायटर’ से बातचीत के दौरान एनपीएफ को सरकार न बनाने देने का संकेत देते हुए कहा है कि “मुझे लगता है कि न्यू पॉपुलर फ्रंट का विकल्प मौजूद है।” ‘फ्रांस-2’ टीवी से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा है कि “मुझे लगता है कि फ्रांस की जनता एनपीएफ की सरकार नहीं चाहती। वे नहीं चाहते कि उन पर लागू किए गए टैक्स में वृद्धि हो।” महत्वपूर्ण बात यह है कि तीसरा मोर्चा दक्षिणपंथी कट्टरपंथी विचारधारा वाली पार्टियों का है। अरोर बर्गे ने उनसे हाथ मिलाने की संभावना का संकेत देते हुए कहा है कि इस (सरकार बनाने के लिए) कट्टरपंथी रिपब्लिकन को समझौते में शामिल किया जा सकता है। ‘रायटर’ ने अपने सूत्रों के हवाले से खबर दी है कि नव निर्वाचित सदस्यों के फोन लगातार बज रहे हैं और उन्हें वफादारियां बदलने के लिए राजी करने की कोशिश की जा रही है।

लेफ्ट के लिए सरकार बनाना आसान नहीं

बायां मोर्चा चूंकि बाईं विचारधारा वाली विभिन्न पार्टियों का गठबंधन है, इसलिए इसके लिए सरकार बनाना आसान नहीं है। सबसे पहले तो इसे सदन में बहुमत के आंकड़े तक पहुंचने के लिए नए सदस्यों का समर्थन चाहिए, दूसरी बात यह कि खबर लिखे जाने तक यह प्रधानमंत्री के पद के लिए किसी नाम पर सहमति नहीं बना सका है और न ही संभावित कैबिनेट के सदस्यों पर सहमति बन पाई है। इस बीच दक्षिणपंथी 72 वर्षीय नेता जॉन लॉक मेलोंशों का नाम प्रधानमंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे नजर आ रहा है। उन्हें इजरायल विरोधी के रूप में देखा जाता है। फ्रांस का यहूदी समाज उन पर आरोप लगाता है कि वे इजरायल विरोधी और यहूदी विरोधी हैं, जो हमास संगठन की निंदा करने की मांग को ठुकराते हैं और इजरायल पर सामूहिक नरसंहार का आरोप लगाते हैं।

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