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ग़ाज़ा में इजरायली दरिंदगी और बर्बरता का नंगा नाच बिना रोक-टोक जारी

ग़ाज़ा में इजरायली दरिंदगी और बर्बरता का नंगा नाच बिना रोक-टोक जारी

ग़ाज़ा में मानवीय संकट और भी गंभीर होता जा रहा है। शहीदों की संख्या लगातार बढ़ रही है। ग़ाज़ा में मारे जाने वाले लोगों की संख्या केवल वे नहीं हैं जो हर रोज़ इजरायली बर्बरता के परिणामस्वरूप जान गंवाते हैं, बल्कि असली संख्या हमारे अनुमानों से कई गुना अधिक है, क्योंकि खंडहरों में दबी हुई हज़ारों लाशें हमें दिखाई नहीं दे रही हैं। पिछले शुक्रवार को ग़ाज़ा के नज़दीकी इलाके में 60 विकृत लाशें बरामद हुईं। सिविल डिफेंस के अनुसार इससे पहले पचास लाशें मिली थीं। ग़ाज़ा के नागरिक रक्षा की टीमें जीवित बचे लोगों को बचाने में सक्रिय हैं। खंडहरों में लाशों के मिलने का सिलसिला जारी है। अब तक दुनिया यही समझ रही है कि ग़ाज़ा में शहीद होने वालों की संख्या वही है जो स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों पर आधारित है, यानी 38 हज़ार के आसपास। लेकिन हाल ही में एक ऐसी चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है जिसके अनुसार ग़ाज़ा में अब तक पौने दो लाख से अधिक फ़लस्तीनी शहीद हो चुके हैं। यह खुलासा लंदन से प्रकाशित होने वाले अंतरराष्ट्रीय चिकित्सा जर्नल “लांसेट” ने किया है।

ग़ाज़ा में इजरायली दरिंदगी और बर्बरता का नंगा नाच बिना रोक-टोक जारी है। हर रोज़ मीडिया में इसकी दिल दहला देने वाली खबरें प्रकाशित होती हैं, लेकिन अब हम इन खबरों के इतने आदी हो चुके हैं कि उन पर शायद ही कभी ध्यान देते हैं। हाँ, अगर कोई चौंकाने वाली खबर सामने आती है तो उस पर जरूर चर्चा होती है। ऐसी ही एक खबर पिछले 8 जुलाई को जेद्दा से प्रकाशित होने वाले ‘अरब न्यूज़’ ने प्रकाशित की जिसमें बताया गया कि ग़ज़ा में जारी इजरायली बर्बरता के परिणामस्वरूप अब तक एक लाख 86 हज़ार मौतें हो चुकी हैं। यह खबर दरअसल लंदन से प्रकाशित होने वाले अंतरराष्ट्रीय चिकित्सा जर्नल ‘लांसेट’ के हवाले से प्रकाशित हुई, जिसे बाद में कुछ भारतीय मीडिया ने भी प्रकाशित किया। यह खबर इसलिए चौंकाने वाली थी क्योंकि अब तक फ़लस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से ग़ज़ा में जारी बर्बरता के परिणामस्वरूप जो मौतें हुई हैं, उनकी संख्या 38 हज़ार के आसपास बताई जा रही है और इसमें हर रोज़ कुछ न कुछ वृद्धि हो रही है। लेकिन ‘लांसेट’ ने जो आंकड़े प्रकाशित किए वे वास्तव में चिंताजनक हैं।

‘लांसेट’ वैश्विक स्तर पर एक प्रतिष्ठित चिकित्सा जर्नल है और उसके आंकड़ों को किसी भी तरह झुठलाया नहीं जा सकता। जर्नल का कहना है कि ग़ाज़ा में पिछले 9 महीने से जारी इजरायली हमलों में मरने वालों की वास्तविक संख्या एक लाख 86 हज़ार से अधिक है। ‘लांसेट’ ने बताया है कि “युद्ध में मौतें केवल वे नहीं होतीं जो हमलों की ज़द में आकर सीधे तौर पर होती हैं बल्कि उन मौतों को भी गिना जाना चाहिए जो युद्ध के कारण उत्पन्न स्थिति की वजह से होती हैं।”

दुनिया जानती है कि पिछले साल अक्टूबर में इजरायल ने ग़ाज़ा पर जो आग बरसानी शुरू की थी उसके परिणामस्वरूप 23 लाख आबादी की यह घिरी हुई पट्टी मानवीय बेबसी और लाचारी का एक ऐसा केंद्र बन गई है जहां जीवित रहने के सभी साधन समाप्त कर दिए गए हैं। बुनियादी ढांचा पूरी तरह तबाह हो चुका है। अस्पतालों से लेकर, शरणार्थी शिविरों तक हर जगह तबाही के सिवा कुछ नहीं है। यों तो ग़ाज़ा में पहले ही लोग अत्यंत कष्टमय जीवन व्यतीत कर रहे थे, लेकिन इजरायल की नंगी आक्रामकता के परिणामस्वरूप वहां जीवित रहने के सारे कारण समाप्त कर दिए गए हैं। वहां खाने-पीने और दवाओं की ही संकट नहीं है बल्कि रहने-सहने की सभी राहें अवरुद्ध कर दी गई हैं। ग़ाज़ा एक खंडहर की तरह दुनिया के सामने है और वहां जीवित रहना सबसे कठिन काम है।

ग़ाज़ा के स्वास्थ्य मंत्रालय ने 7 अक्टूबर के बाद से सोमवार 8 जून तक ग़ाज़ा में इजरायली हमलों में 38 हज़ार 193 लोगों के मारे जाने और 10 हज़ार से अधिक के लापता होने की पुष्टि की है। उसके अनुसार हमलों में लगभग 88 हज़ार लोग घायल हुए हैं, हालांकि ‘लांसेट’ की रिसर्च के अनुसार मौतों की वास्तविक संख्या कई गुना अधिक है, क्योंकि इसमें वे हज़ारों लोग शामिल नहीं हैं, जो मलबे में दबकर मर गए हैं, जो चिकित्सा सुविधाओं के नष्ट हो जाने के कारण मर गए या जिनकी मौत भोजन की आपूर्ति प्रभावित होने या सार्वजनिक ढांचे की अन्य समस्याओं के कारण हुई है।

‘लांसेट’ के अध्ययन में कहा गया है कि इस तरह के संघर्षों में हिंसा के प्रभाव से अप्रत्यक्ष मौतें भी बड़ी संख्या में होती हैं। रिपोर्ट के अनुसार ग़ाज़ा युद्ध अगर तुरंत बंद भी हो जाए तो भी इसके कारण होने वाली मौतों का सिलसिला आने वाले कई महीनों और वर्षों तक जारी रहेगा, जो युद्ध के कारण फैलने वाली बीमारियों, संसाधनों की कमी और अन्य कारणों का परिणाम होंगी। ‘लांसेट’ ने ग़ाज़ा में बुनियादी ढांचे को हुए नुकसान का हवाला देते हुए लिखा है कि “ग़ाज़ा में बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचा नष्ट हो गया है, जिसके कारण मौतों की संख्या कहीं अधिक होने का अंदेशा है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भोजन की कमी, पानी की अनुपलब्धता और आवास की कमी के साथ-साथ फिलिस्तीन के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की सहायक एजेंसी के फंड में कमी आ रही है जिसका सीधा असर युद्ध से प्रभावित आम नागरिकों की जिंदगी पर पड़ेगा।’

ग़ाज़ा युद्ध पर अपनी शोध रिपोर्ट में ‘लांसेट’ ने बताया है कि ‘हालिया संघर्षों में देखा गया है कि हमलों के कारण सीधे तौर पर होने वाली मौतों की तुलना में अप्रत्यक्ष मौतों की संख्या पंद्रह गुना से भी अधिक होती है।’ लांसेट ने ग़ाज़ा के मामले में केवल चार गुना अप्रत्यक्ष मौतों का अनुमान लगाया है। रिपोर्ट के अनुसार हर सीधे तौर पर होने वाली मौत के साथ चार अप्रत्यक्ष मौतों के ‘संरक्षणवादी अनुमान’ को आधार बनाएं तो भी यह अनुमान अविश्वसनीय नहीं है कि ग़ाज़ा युद्ध से एक लाख 86 हज़ार या इससे भी अधिक मौतें हो सकती हैं। ग़ज़ा पर इजरायली हमले शुरू होने से पहले वहां की आबादी 23 लाख थी। इस लिहाज से ‘लांसेट’ की रिसर्च के अनुसार इजरायली हमलों में ग़ाज़ा के आठ प्रतिशत नागरिक मारे जाएंगे।’

यह बात सभी जानते हैं कि ग़ाज़ा का संकट इतना गंभीर है कि इसे पूरी तरह से शब्दों में बयां करना मुश्किल है। सबसे बड़ा संकट अस्पतालों के आसपास हो रहा है। अधिकांश अस्पताल नष्ट कर दिए गए हैं। चिकित्सा कर्मियों और डॉक्टरों की मौत ने पूरे सिस्टम को तहस-नहस कर दिया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की क्षेत्रीय निदेशक डॉक्टर हनान बल्खी का बयान है कि “ग़ाज़ा के स्वास्थ्य प्रणाली की तबाही और वहां के लोगों ने जो गंभीर आघात सहे हैं, वे इतने जटिल हैं कि राहत कर्मियों के लिए उन्हें समझना ही काफी मुश्किल है।” हनान बल्खी का कहना है कि “उनके लिए दुखद कहानियों को सुनना और उनके बारे में बातचीत करना मुश्किल है।” राहत ट्रकों के प्रवेश और सीमित पहुंच की वजह से ग़ज़ा की आबादी के एक बड़े हिस्से को विनाशकारी भुखमरी और अकाल का सामना करना पड़ रहा है। ग़ाज़ा की 96 प्रतिशत आबादी स्थायी रूप से गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना कर रही है और उसकी आधे से अधिक आबादी के पास अपने घर में खाने के लिए कुछ भी नहीं है जबकि बीस प्रतिशत लोग बिना कुछ खाए-पिए दिन और रातें गुजार रहे हैं। ग़ाज़ा की भयावह स्थिति पर वहां के मशहूर पत्रकार जाद हलीस की पोस्ट देखें, जो स्थिति की गंभीरता को उजागर करती है।

“खुदा की कसम!
अगर आप ग़ाज़ा के लोगों पर ढाए जा रहे अत्याचार और तकलीफें देखें तो आप दंग रह जाएंगे, दिमाग यह मानने को तैयार नहीं होगा कि एक इंसान इन तमाम अत्याचार और तकलीफों को सहकर जिंदा कैसे रह सकता है? और इन तकलीफों की तीव्रता से उसकी मौत कैसे नहीं हो गई?!!
खुदा की कसम!
अगर ये तकलीफें और मुश्किलें किसी चट्टान पर बीतें तो वह तकलीफ की तीव्रता से फट जाती, समुद्र पर इतना अत्याचार किया जाता तो वह भाप बन जाता, विशाल पहाड़ों पर अगर इतना अत्याचार किया जाता तो उनमें दरारें पड़ जातीं

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