“वन नेशन वन इलेक्शन” जेपीसी का हिस्सा बन सकती हैं प्रियंका गांधी: सूत्र
प्रधानमंत्री मोदी द्वारा प्रस्तावित “वन नेशन, वन इलेक्शन” बिल की समीक्षा के लिए गठित संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) में कांग्रेस पार्टी से प्रियंका गांधी वाड्रा के शामिल होने की संभावना है। सूत्रों के अनुसार, प्रियंका गांधी के साथ-साथ कांग्रेस के अन्य सांसदों, मनीष तिवारी, सुखदेव भगत और रणदीप सुरजेवाला, को भी इस पैनल में शामिल किए जाने पर विचार हो रहा है। यह पैनल एक साथ चुनाव कराने के कानून की समीक्षा करेगा।
इस बीच, ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस ने अपने लोकसभा सांसद कल्याण बनर्जी और राज्यसभा सदस्य साकेत गोखले के नाम पैनल के लिए प्रस्तावित किए हैं। तृणमूल कांग्रेस ने भी इस बिल को लेकर आपत्ति जताई है और इसे संघीय ढांचे के खिलाफ बताया है।
प्रियंका गांधी वाड्रा ने इन बिलों को “संविधान विरोधी” बताया था। उन्होंने कहा कि यह हमारी राष्ट्र की संघीयता के खिलाफ है। हम इस बिल का विरोध कर रहे हैं। इस बीच, ममता बनर्जी की नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस ने लोकसभा के सदस्य कल्याण बनर्जी और राज्यसभा के सदस्य साकेत गोखले के नाम प्रस्तावित पैनल के लिए सुझाए हैं।
विपक्ष और केंद्र सरकार के बीच जोरदार बहस के बाद मंगलवार को लोकसभा में एक साथ चुनाव कराने की प्रक्रिया से जुड़े दो बिल पेश किए गए। कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्ष ने इस कानून को “संविधान विरोधी” करार दिया। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने स्पष्ट किया कि यह कानून राज्यों की शक्तियों से छेड़छाड़ नहीं करेगा।
हंगामे के बीच केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा को बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कैबिनेट को यह जानकारी दी है कि इस बिल को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजा जाएगा। वोटों के विभाजन के बाद बिल पेश किया गया। बिल के पक्ष में 263 और विरोध में 198 वोट पड़े।
विपक्षी कांग्रेस, डीएमके, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, एनसीपी-एसपी, शिवसेना-यूबीटी और एआईएमआईएम ने इस बिल को पेश करने पर आपत्ति जताई।
क्या है “वन नेशन, वन इलेक्शन”?
“वन नेशन, वन इलेक्शन” का विचार पूरे देश में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की वकालत करता है। सरकार का दावा है कि इससे समय और पैसे की बचत होगी और देश में चुनावों के चलते बार-बार होने वाले राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवधान खत्म होंगे।
हालांकि, विपक्ष का कहना है कि यह कानून संविधान की संघीयता और राज्यों के अधिकारों के खिलाफ है। उनके मुताबिक, इससे राज्यों को अपनी स्वायत्तता खोने का खतरा है और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।