हमारी सेना गंभीर स्तर पर जवानों और हथियारों की कमी का शिकार है: इज़रायली अफ़सर
ग़ाज़ा में जारी युद्ध ने इज़रायली फ़ौज की असलियत खोलकर रख दी है। एक वरिष्ठ इज़रायली अफ़सर ने स्वीकार किया है कि, सेना अब गहरे संकट में है और जवानों से लेकर उपकरण तक हर स्तर पर भारी फ़रसाइश (थकावट और टूटने) का सामना कर रही है। यह इज़हार अपने आप में इस बात का सबूत है कि इज़रायल की ताक़त का दावा केवल एक मिथक था, जो लंबे युद्ध के दबाव में बिखर चुका है।
हिब्रू वेबसाइट वाला ने सेना के एक वरिष्ठ ज़मीनी अफ़सर के हवाले से लिखा है कि, ग़ाज़ा पट्टी में लगातार जारी लड़ाइयों ने इज़रायली सेना को थका दिया है, उसकी क्षमताएँ घट रही हैं और ऑपरेशनों की कारगर शक्ति दिन-ब-दिन कमज़ोर हो रही है। अफ़सर ने माना कि निरंतर सैन्य अभियान ने लड़ाकू यूनिटों को नाकारा बना दिया है और यह स्थिति सेना के लिए अब एक गंभीर संकट बन चुकी है।
यह स्वीकारोक्ति केवल थकान या संसाधनों की कमी तक सीमित नहीं है। यह दरअसल इज़रायली सैन्य मशीन की असली हक़ीक़त को उजागर करती है—वही मशीन जो दशकों से पूरे क्षेत्र को दहशत और खून-खराबे में झोंकती रही। आज वही फ़ौज अपने ही बनाए दलदल में फँस चुकी है।
ख़बर यह भी है कि इज़रायली सेना की गोलानी ब्रिगेड के छह जवानों ने ग़ाज़ा में नए ऑपरेशन में जाने से साफ इनकार कर दिया। अपने ही सैनिकों का मनोबल टूट जाना इस बात का साफ़ सबूत है कि यह जंग इज़रायल के लिए केवल मैदान-ए-जंग में नहीं, बल्कि उसके घर के अंदर भी हार बन चुकी है। उन सैनिकों को जेल की सज़ा देकर इज़रायल ने दिखा दिया है कि, वह अपनी फ़ौज को ज़बरदस्ती धकेल रहा है, जबकि हकीक़त यह है कि अब उसके पास न रणनीति है, न जज़्बा।
करीब दो साल से जारी ग़ाज़ा युद्ध ने न सिर्फ़ इज़रायल की सैन्य क्षमता को खोखला कर दिया है, बल्कि उसकी राजनीति और समाज में भी गहरी दरारें डाल दी हैं। यह वही इज़रायल है जो खुद को अजेय और अडिग बताता था, लेकिन आज उसका हर क़दम ग़ाज़ा की रेत में धँसता जा रहा है। असल सवाल यह है कि, जो फ़ौज अपने जवानों का हौसला भी बरक़रार नहीं रख पा रही, वह पूरे क्षेत्र पर हुक़ूमत करने का दावा कैसे कर सकती है? इज़रायल का यह संकट दुनिया के सामने एक बार फिर साबित करता है कि क़ब्ज़ा और ज़ुल्म की बुनियाद कभी मज़बूत नहीं हो सकती।

