ईरान के पास परमाणु हथियार नहीं होने चाहिए: मैक्रों
फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने सोमवार रात अपने अमेरिकी समकक्ष डोनाल्ड ट्रंप के ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर किए गए दावों को दोहराया। मैक्रों, जो इस समय अमेरिका की आधिकारिक यात्रा पर हैं, ने व्हाइट हाउस में ट्रंप से मुलाकात की। यह बैठक अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के बाद किसी भी वरिष्ठ विदेशी नेता की ट्रंप के साथ पहली आधिकारिक मुलाकात थी। इस दौरान दोनों नेताओं ने विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा की, जिनमें ईरान का परमाणु कार्यक्रम भी प्रमुख विषय रहा।
बैठक के दौरान मैक्रों ने दावा किया, “हम अमेरिका के साथ इस बात पर सहमत हैं कि ईरान को परमाणु हथियार हासिल करने से रोकना आवश्यक है।” उन्होंने कहा कि फ्रांस और अमेरिका दोनों इस मुद्दे पर एकमत हैं और क्षेत्रीय सुरक्षा को मजबूत करने के लिए मिलकर प्रयास कर रहे हैं। मैक्रों के इस बयान को क़तर स्थित समाचार चैनल ‘अल-जज़ीरा’ ने प्रकाशित किया, जिसमें उनके हवाले से कहा गया, “हम मध्य पूर्व में सुरक्षा को मजबूत करने के लिए अमेरिका के साथ मिलकर काम कर रहे हैं।”
ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर अमेरिका और उसके सहयोगी देशों का दोहरा मापदंड
मैक्रों ने दावा किया कि “हम अमेरिका के साथ मिलकर मध्य पूर्व की सुरक्षा को मजबूत कर रहे हैं।” लेकिन यह कथन पश्चिमी पाखंड का एक और उदाहरण है। क्या अमेरिका और फ्रांस को इस बात की जानकारी नहीं कि मध्य पूर्व में सबसे बड़ा परमाणु खतरा खुद इज़रायल है, जिसके पास 90 से अधिक परमाणु हथियार हैं? क्या फ्रांस और अमेरिका ने कभी इज़रायल पर दबाव डाला कि वह अपने परमाणु हथियार नष्ट करे या अंतरराष्ट्रीय परमाणु निगरानी तंत्र का हिस्सा बने?
ईरान के खिलाफ पश्चिमी साजिश
ईरान हमेशा से यह कहता आया है कि उसका परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है और वह कभी भी परमाणु हथियार विकसित करने की योजना नहीं बना रहा। इसके बावजूद, पश्चिमी देश बार-बार इस मुद्दे को उठाकर क्षेत्र में तनाव बढ़ाने का काम कर रहे हैं। 2015 में हुए ईरान परमाणु समझौते (JCPOA) को अमेरिका ने खुद तोड़ दिया और अब वही अमेरिका और उसके सहयोगी देश ईरान पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं। फ्रांस समेत यूरोपीय देशों ने शुरू में इस समझौते को बचाने की कोशिश की थी, लेकिन अंततः वे भी अमेरिका के साथ खड़े हो गए और ईरान पर नए प्रतिबंध लगाने में शामिल हो गए।
यह स्पष्ट है कि फ्रांस और अमेरिका जैसे देश सिर्फ उन्हीं देशों पर दबाव बनाते हैं जो उनके सामने झुकने को तैयार नहीं होते। ईरान एक स्वतंत्र और स्वाभिमानी देश है जिसने हमेशा अपनी संप्रभुता की रक्षा की है। उसका परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह कानूनी और अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत है। पश्चिमी देशों को अपनी दोगली नीति छोड़कर ईरान के खिलाफ झूठे आरोप लगाने बंद करने चाहिए। यह समय है कि दुनिया इस अमेरिकी-फ्रांसीसी प्रोपेगेंडा को पहचानें और पश्चिमी दोहरे मापदंड के खिलाफ आवाज उठाएं।
गौरतलब है कि अमेरिका और फ्रांस लंबे समय से ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर एक जैसी नीतियों का पालन करते आए हैं। हालांकि, 2015 में हुए ईरान परमाणु समझौते (JCPOA) से अमेरिका के हटने के बाद फ्रांस समेत अन्य यूरोपीय देश इसे बचाने के प्रयास कर रहे थे, लेकिन ट्रंप प्रशासन ने इस पर सख्त रुख अपनाया।