फ्रांस द्वारा, ग़ाज़ा में इज़रायली क्रूरता को “आत्मरक्षा” क़रार देना कितना सही??

फ्रांस द्वारा, ग़ाज़ा में इज़रायली क्रूरता को “आत्मरक्षा” क़रार देना कितना सही??

फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने एक बार फिर ग़ाज़ा में हो रहे इज़रायली हमलों और फ़िलिस्तीनियों के नरसंहार को “इज़रायल की आत्मरक्षा” करार दिया है, जिससे इस मुद्दे पर उनके दृष्टिकोण और पश्चिमी देशों की नीतियों पर सवाल उठने लगे हैं। मंगलवार रात मोरक्को की यात्रा पर आए मैक्रों ने वहां की संसद में दिए गए भाषण के दौरान 7 अक्टूबर 2023 को हमास के प्रतिरोध आंदोलन द्वारा किए गए “तूफान अल-अक्सा” अभियान की कड़ी आलोचना की और इसे आतंकवादी हमला बताया, जबकि वह ग़ाज़ा में इज़रायल द्वारा फिलिस्तीनियों के खुल्लम खुल्ला नरसंहार और क्रूरता पर इज़रायल का बचाव करते नज़र आए।

उन्होंने कहा कि इज़रायल को अपनी रक्षा करने का अधिकार है, और फ्रांस इस मुद्दे पर इज़रायल के साथ खड़ा है। 40 हज़ार से ज़्यादा फ़िलिस्तीनियों की शहादत और लाखों की संख्या में आम नागरिकों के घायल होने के बाद भी मैक्रों का, इज़रायल को खुल्लम खुल्ला समर्थन यह साबित करता है कि, यूरोपीय शासकों की नज़र में इंसानियत का कोई महत्त्व नहीं है। युद्ध-विराम का उनका बयान केवल दिखावा है। मैक्रों ने इज़रायल के अत्याचार और क्रूरता को आत्म रक्षा का नाम ज़रूर दिया है लेकिन, उन्होंने यह नहीं बताया कि, यह कौन सी ‘आत्मरक्षा’ है जिसमे इज़रायल ने 20000 से ज़्यादा मासूम बच्चों को क़त्ल कर दिया?

इज़रायल ने अपने क्रूर हमलों में हज़ारों की संख्या में औरतों, मर्दों, और जवानों को क़त्ल कर दिया। हज़ारों की संख्या में बच्चे यतीम और औरतें विधवा हो गईं। हमास के बहाने पूरे ग़ाज़ा पट्टी को इज़रायल ने शमशान बना दिया। उसने अस्पतालों और स्कूलों को भी आत्म रक्षा के नाम पर ध्वस्त कर दिया। ऑक्सीजन की कमी से न जाने कितने नवजात बच्चों ने बेड पर ही दम तोड़ दिया। इज़रायली अत्याचार यहीं ख़त्म नहीं हुआ उसने शरणार्थी शिविर पर भी बमबारी की जिसके कारण न जाने कितने बच्चे, औरत, मर्द ज़िंदा जल गए। शरणार्थी शिविर पर हमला कौन सी आत्म रक्षा थी? क्या फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों इतने भोले हैं कि, उन्हें अत्याचार, क्रूरता और आत्मरक्षा में अंतर भी नहीं मालूम? क्या उन्हें मलबे दबे हुए आम नागरिक और मासूम बच्चे दिखाई नहीं दे रहे हैं?

अमेरिका, ब्रिटैन, फ्रांस,स्पेन, ऑस्ट्रेलिया के छात्र, इज़रायली प्रशासन और नेतन्याहू के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन कर रहे है, जिसके कारण सैकड़ों छात्रों को गिरफ़्तार कर लिया गया। क्या इन छात्रों को नहीं मालूम कि, आत्मरक्षा क्या है? क्या यूरोपीय देशों की जनता, जो फिलिस्तीन के समर्थन में और इज़रायल के विरोध में प्रदर्शन कर रही है उसे नहीं मालूम की ‘आत्म रक्षा क्या है? अगर उन्हें नहीं मालूम तो फ्रांस के राष्ट्रपति को चाहिए कि वह ऐसी सभीयूनिवर्सिटी और कॉलेज को बंद कर दें जहां के छात्रों को यह भी नहीं मालूम कि आत्म रक्षा क्या है ? अपने देश के उन तमाम प्रदर्शनकारियों को मृत्युदंड दे दें,जो ग़ाज़ा पट्टी में होने वाले अत्याचार का विरोध कर रहे हैं, क्योंकि इन सबको नहीं मालूम कि, ‘आत्म रक्षा’ क्या है??

मोरक्को की मीडिया ने इस बयान को विस्तार से प्रकाशित करते हुए कहा कि मैक्रों ने ग़ाज़ा में हो रहे संघर्ष के संदर्भ में इज़रायली शासन द्वारा नागरिक इलाकों पर किए गए हमलों के बावजूद उसे आत्मरक्षा करार दिया। हालांकि, अपनी छवि को संतुलित बनाए रखने की कोशिश में, मैक्रों ने यह भी कहा कि “ग़ाज़ा में मानवीय त्रासदी और निर्दोष नागरिकों की पीड़ा को किसी भी स्थिति में उचित नहीं ठहराया जा सकता।” उन्होंने कहा कि इज़रायली हमलों के कारण बड़े पैमाने पर फिलिस्तीनी नागरिक प्रभावित हो रहे हैं, और इससे पैदा हो रही मानवीय स्थिति को लेकर उन्हें गहरी चिंता है।

फ्रांस के राष्ट्रपति ने संघर्ष-विराम की मांग करते हुए कहा कि युद्ध के इस माहौल में मानवता को दरकिनार नहीं किया जा सकता। उन्होंने शासन से बंधकों की रिहाई, फिलिस्तीनी नागरिकों की सुरक्षा और ग़ज़ा में मानवीय सहायता की तत्काल जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि सभी पक्षों को अंतरराष्ट्रीय कानून का सम्मान करना चाहिए और युद्ध-विराम की दिशा में काम करना चाहिए ताकि निर्दोष नागरिकों का जीवन सुरक्षित रह सके। लेकिन उन्होंने इस पर कोई बयान नहीं दिया कि, इज़रायल ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा भेजे जाने वाली राहत सामग्री पर जो प्रतिबंध लगाया है, उस पर क्या कार्यवाई होनी चाहिए??

इसके अतिरिक्त, मैक्रों ने इज़रायल द्वारा लेबनान पर किए जा रहे हमलों की भी आलोचना की और इन हमलों को रोकने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि फ्रांस पिछले कई हफ्तों से अमेरिकी साझेदारों और अन्य अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ मिलकर इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए प्रयासरत है। मैक्रों ने कहा कि क्षेत्र में बढ़ते संघर्ष को रोकने के लिए सभी संबंधित पक्षों को मिलकर काम करना चाहिए ताकि यह हिंसा और अधिक न फैले। इन सबके बाद प्रश्न यही है कि, इज़रायल के खुल्लम खुल्ला अत्याचार के बावजूद, सभी यूरोपीय देश खामोश तमाशाई क्यों बने हैं? संयुक्त राष्ट्र मूक दर्शक क्यों बना हुआ है? इज़रायल के सामने सभी असहाय क्यों नज़र आ रहे हैं ? क्या सभी यूरोपीय देश ग़ाज़ा पट्टी में फिलिस्तीनियों के नरसंहार में, इज़रायल के साथ बराबर के भागीदार हैं ??

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए IscPress उत्तरदायी नहीं है।

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