ग़ाज़ा:में 10 महीनों के इज़रायली हमलों में 16,456 बच्चे और 11,088 महिलाएं शहीद
ग़ाज़ा पट्टी: ग़ाज़ा में पिछले 10 महीनों से जारी इज़रायली हमलों ने भयंकर तबाही मचाई है। इन हमलों में जान गंवाने वालों की संख्या लगभग 40,000 तक पहुंच गई है। इनमें से 27,000 से अधिक लोग बच्चे और महिलाएं हैं, जो इन हमलों के निर्दोष शिकार बने हैं। इज़रायल की ओर से की जा रही बमबारी और हमलों में मरने वालों में 16,456 बच्चे और 11,088 महिलाएं शामिल हैं। इज़रायल ने इन हमलों में हमास के लड़ाकों को निशाना बनाने का दावा किया है, लेकिन हकीकत यह है कि बड़ी संख्या में मासूम बच्चों और महिलाओं ने अपनी जान गंवाई है।
सोमवार को इज़रायली हमलों के 311वें दिन ग़ाज़ा प्रशासन ने नए आंकड़े जारी किए, जिसमें बताया गया कि 7 अक्टूबर से शुरू हुए इज़रायली हमलों के चलते ग़ाज़ा की कुल आबादी का 1.8% हिस्सा पूरी तरह से खत्म हो गया है। इज़रायल की इस बर्बरता का परिणाम यह है कि हर दिन दर्जनों मासूम जानें जा रही हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, अब तक कुल 39,897 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं और 92,152 लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं। इनमें से 24% शहीदों की उम्र 18 से 29 साल के बीच है, जो कि युवा पीढ़ी को सबसे अधिक प्रभावित कर रही है।
ग़ाज़ा प्रशासन ने बताया कि इज़रायल ने अब तक 3,486 बड़े हमले किए हैं, जिनमें से हर एक हमले ने बड़ी तबाही मचाई है। इन हमलों में न केवल महिलाएं और बच्चे मारे गए हैं, बल्कि स्वास्थ्य कर्मी, पत्रकार, और सिविल डिफेंस के सदस्य भी शिकार बने हैं। आंकड़ों के मुताबिक, 885 मेडिकल स्टाफ, 168 पत्रकार, और 79 सिविल डिफेंस के कर्मियों की मौत हो चुकी है। फिलिस्तीनी सांख्यिकी केंद्र के अनुसार, इज़रायली हमलों में मारे गए 75% लोगों की उम्र 30 साल से कम है। इस आंकड़े से साफ होता है कि ग़ाज़ा में युवा आबादी पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ा है, जो भविष्य के लिए गंभीर चिंता का विषय है।
ग़ाज़ा के लोग पिछले 10 महीनों से लगातार इज़रायली नरसंहार की भेंट चढ़ चुके हैं। हज़ारों घर तबाह हो चुके हैं, स्कूल और अस्पतालों पर भी बम गिराए गए हैं, जिससे जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। स्थिति इतनी गंभीर हो चुकी है कि बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करना भी मुश्किल हो गया है। इस मानवता के संकट में विश्व समुदाय की निष्क्रियता भी सवालों के घेरे में है। इज़रायल के इन लगातार हमलों के बावजूद ग़ाज़ा के लोग अभी भी अपने अधिकारों और ज़मीन की रक्षा के लिए डटे हुए हैं। यह संघर्ष एक ऐसे भविष्य के लिए है जहां उनके बच्चों को शांति और सुरक्षा मिल सके। लेकिन फिलहाल, ग़ाज़ा में हर दिन एक नई त्रासदी के रूप में सामने आ रहा है।