FATF ने पहलगाम आतंकी हमले पर पाक को लताड़ा
पहलगाम आतंकी हमले के बाद से दुनियाभर में पाकिस्तान का आतंकी चेहरा बेनकाब हो गया है। एक बार फिर से पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में डालने की मांग की जा रही है। इस बीच वैश्विक आतंकी फंडिंग पर निगरानी रखने वाली संस्था FATF (फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स) ने 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले की कड़ी निंदा की है। इस हमले में पाकिस्तान समर्थित आतंकियों ने 26 निर्दोष लोगों की हत्या कर दी थी।
सोमवार को जारी बयान में FATF ने कहा, “ऐसे हमले बिना धन और नेटवर्क के संभव नहीं हो सकते।” एफएटीएफ का यह बयान सीधे तौर पर पाकिस्तान पर निशाना है।अक्टूबर 2022 में पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट से हटाया गया था। अगर भारत फिर से पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में वापस शुमार करने में कामयाब हो जाता है तो उस पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक निगरानी और प्रतिबंध और बढ़ सकते हैं। इससे उसके लिए विदेशी निवेश और पूंजी प्रवाह पर असर पड़ेगा।
FATF सूची मनी लॉन्ड्रिंग, आतंकवादी वित्तपोषण और अन्य वित्तीय अपराधों से निपटने के लिए देशों की स्थिति को दर्शाती हैं। FATF एक अंतर-सरकारी निकाय है जो 1989 में स्थापित किया गया था और वैश्विक वित्तीय प्रणाली की सुरक्षा के लिए नीतियां और मानक निर्धारित करता है। एफएटीएफ को सूचियां हैं- ब्लैक लिस्ट और ग्रे लिस्ट।
ब्लैक लिस्ट में उन देशों को डाला जाता है जो मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवादी वित्तपोषण को रोकने के लिए FATF के मानकों का बिल्कुल भी पालन नहीं करते। इस सूची में शामिल देशों पर कड़े वित्तीय प्रतिबंध लगाए जाते हैं और उन्हें कड़ी निगरानी में रखा जाता है। ग्रे सूची में वे देश शामिल होते हैं जिनमें मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवादी वित्तपोषण को रोकने में कुछ कमियां हैं, लेकिन वे सुधार के लिए FATF के साथ सहयोग कर रहे हैं। इन देशों को अपनी वित्तीय प्रणाली में सुधार करने के लिए समयबद्ध कार्य योजना दी जाती है।
भारत पाकिस्तान को FATF की ग्रे सूची में डलवान के लिए सदस्य देशों से बातचीत कर समर्थन जुटा रहा है। अगर पाकिस्तान का नाम फिर से ग्रे सूची में शामिल हो जाता है तो इससे उसे बहुत नुकसान होगा। इसे पाकिस्तान पर आर्थिक संकट गहराएगा, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठा गिरेगी और वित्तीय लेनदेन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। उसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक एशियाई विकास बैंक और यूरोपीय संघ जैसे संस्थानों से ऋण लेने में कठिनाई होगी।

