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मिस्र और इज़रायल ट्रंप को ग़ाज़ा युद्ध-विराम के लिए अपना सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान देंगे

मिस्र और इज़रायल ट्रंप को ग़ाज़ा युद्ध-विराम के लिए अपना सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान देंगे

अमेरिका की ओर से ग़ाज़ा युद्ध के दौरान हथियारों की आपूर्ति में सक्रिय भूमिका निभाने के बावजूद, मिस्र और इज़रायल ने सोमवार को घोषणा की है कि वे, डोनाल्ड ट्रंप को ग़ाज़ा में युद्ध-विराम कराने की भूमिका के लिए अपना सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान देंगे।

फ़ारस न्यूज़ एजेंसी के अंतरराष्ट्रीय डेस्क के अनुसार, मिस्र के राष्ट्रपति भवन की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि, राष्ट्रपति अब्दुल फ़तह अल-सीसी ने डोनाल्ड ट्रंप को देश का सर्वोच्च सम्मान “ऑर्डर ऑफ द नाइल” प्रदान करने का निर्णय लिया है।काहिरा ने इस निर्णय का कारण बताते हुए कहा कि यह सम्मान ट्रंप को “क्षेत्रीय शांति को बढ़ावा देने और हालिया ग़ाज़ा युद्ध-विराम को संभव बनाने में निभाई गई भूमिका” के लिए दिया जा रहा है।

बयान के अनुसार, यह सम्मान शर्म अल-शेख सम्मेलन के दौरान, जिसमें कई वैश्विक नेता शामिल होंगे, औपचारिक रूप से ट्रंप को प्रदान किया जाएगा। इसी समय, इज़रायल के राष्ट्रपति कार्यालय ने भी घोषणा की है कि इसहाक़ हर्ज़ोग ट्रंप को “राष्ट्रपति पदक (Presidential Medal)” देने का निर्णय ले चुके हैं। यह इज़रायल का सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान है, जो पहले भी बराक ओबामा जैसे कुछ विदेशी नेताओं को दिया जा चुका है।

तेल अवीव के बयान में कहा गया:
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उस समझौते को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई जिसके परिणामस्वरूप ग़ाज़ा में कुछ इज़रायली बंधकों की रिहाई हुई और आगे की शांति वार्ताओं के लिए आधार तैयार हुआ। हालाँकि, अमेरिकी संस्था “कॉस्ट ऑफ वॉर प्रोजेक्ट” की रिपोर्ट बताती है कि ग़ाज़ा युद्ध शुरू होने के बाद से अमेरिका ने इज़रायल को 21 अरब डॉलर से अधिक की सैन्य सहायता दी है — जिसमें हथियार, गोला-बारूद और रक्षा प्रणाली शामिल हैं।

रिपोर्टों के अनुसार, अब तक इस युद्ध में 67,800 से अधिक लोग शहीद और 1,70,000 से अधिक घायल हुए हैं। इनमें से 20,000 से अधिक बच्चे हैं — यानी कुल मृतकों का लगभग 30 प्रतिशत। मानवीय नुकसान के साथ-साथ ग़ाज़ा की बुनियादी ढांचे को भी भारी तबाही झेलनी पड़ी है।

इज़रायली हमलों से ग़ाज़ा को अब तक 70 अरब डॉलर से ज़्यादा का नुकसान हुआ है।पिछले दो सालों में 670 स्कूल और 193 विश्वविद्यालय एवं शिक्षण संस्थान पूरी तरह नष्ट हो चुके हैं। इसके अलावा, 20 लाख से अधिक लोग बेघर हो गए हैं और मानवीय सहायता तक पहुंच अत्यंत सीमित हो गई है।

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