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नेतन्याहू द्वारा लाया गया विवादित जुडिशरी कानून, इज़रायली सुप्रीम कोर्ट से ख़ारिज

नेतन्याहू द्वारा लाया गया विवादित जुडिशरी कानून, इज़रायली सुप्रीम कोर्ट से ख़ारिज

हमास को ख़त्म करने की क़सम खाने वाले इज़रायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू,अभी तक हमास को तो ख़त्म नहीं कर सकें लेकिन उनके देश की सुप्रीम कोर्ट ने उनके द्वारा लाए गए विवादित जुडिशरी कानून को ख़त्म करके उन्हें ज़ोर का झटका दे दिया है। नेतन्याहू के लिए यह झटका उतना ही घातक है, जितना घातक उनका ग़ाज़ा के मज़लूम और बेगुनाह नागरिकों पर मिसाइल अटैक है।

इज़रायल की सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला ऐसे वक्त पर आया है, जब हमास के साथ जंग लड़ रही IDF ने ग़ाज़ा पट्टी से कुछ सैनिकों को हटाने का फैसला किया है। अदालत के आदेश के बाद प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को विपक्ष की आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। ग़ाज़ा पट्टी पर उनकी अंधाधुंध बमबारी पर उनके ही देश की जनता विरोध प्रदर्शन कर रही, अब विपक्ष को भी उनको घेरने का मौक़ा मिल गया है।

इज़रायल की सुप्रीम कोर्ट ने नेतन्याहू की दक्षिणपंथी सरकार द्वारा पारित एक बहुत विवादित कानून को रद्द कर दिया है। इसके तहत नेतन्याहू ने अदालत की कुछ पावर को वापस ले लिया था। इसके खिलाफ इज़रायल में देशव्यापी विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया था। जुलाई 2023 में पारित इस कानून को नेतन्याहू और उनके धार्मिक और राष्ट्रवादी सहयोगियों के गठबंधन द्वारा प्रस्तावित व्यापक न्यायिक सुधार का हिस्सा बताया गया था।

अदालत के सामने लाए गए कानून ने सरकार और मंत्रियों के फैसलों को रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के पास मौजूद सभी पावर में से कुछ को हटा दिया था। इसने “अनुचित” समझे जाने वाले निर्णयों को रद्द करने की अदालत की क्षमता छीन ली थी। अदालत ने सोमवार को कहा कि 15 में से आठ न्यायाधीशों ने विवादित कानून को रद्द करने के पक्ष में फैसला सुनाया।

यह कदम नेतन्याहू और उनके कट्टरपंथी सहयोगियों के लिए एक महत्वपूर्ण झटका है। जिन्होंने तर्क दिया था कि कानून की वैधता और अन्य प्रमुख निर्णयों पर अंतिम फैसला सुप्रीम कोर्ट के बजाय राष्ट्रीय संसद का होना चाहिए। लेकिन जजों ने कहा कि नेसेट या संसद के पास “सर्वशक्तिमान” शक्ति नहीं है।

नेतन्याहू और उनके सहयोगियों ने एक साल पहले सत्ता संभालने के तुरंत बाद न्यायपालिका में ओवरहाल योजना की घोषणा की। इसमें जजों की पावर पर अंकुश लगाने, संसदीय निर्णयों की समीक्षा करने की सुप्रीम कोर्ट की क्षमता को सीमित करने से लेकर जजों की नियुक्ति के तरीके को बदलने का प्रस्ताव किया गया।

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