ISCPress

एक महीने पूरे होने पर भी राजस्थान में नहीं हो सका मंत्रिमंडल गठन

एक महीने पूरे होने पर भी राजस्थान में नहीं हो सका मंत्रिमंडल गठन

राजस्थान विधानसभा चुनाव नतीजे के करीब एक महीने बाद भी मंत्रिमंडल गठन का नहीं हो सका है। भाजपा को बगावत का डर सता रहा है और मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा का दिल धक-धक हो रहा है, क्योंकि तमाम विधायकों के दिल में मंत्री बनने की हसरत पल रही है। वसुंधरा गुट भी फिलहाल खामोशी के साथ नफा-नुकसान का अनुमान लगा रहा है।

भाजपा ने राजस्थान के साथ मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी जीत हासिल की थी। वहां समय पर मंत्रिमंडल हैं का गठन हो चुका है। लेकिन राजस्थान में मंत्रिमंडल गठन में देरी रणनीति के तहत है या बगावत के कारण, इसका राजनीतिक पंडित अंदाजा लगा रहे हैं।

यही भाजपा है, जब तेलंगाना में नया सीएम चुनने में देर हो रही थी तो उसने कांग्रेस पर कटाक्ष का कोई मौका चूका नहीं। लेकिन राजस्थान में राजनीति जिस तरफ जा रही है, वो दिलचस्प है। ऐसा लगता है कि कई शिकारी, शिकार फंसने का इंतजार कर रहे हैं।

अब वसुंधरा राजे के आसपास की हलचल भी अब कम हो गई है क्योंकि विधायक पार्टी के सबसे बड़े नेता के रूप में उनके कद के बावजूद, किसी का पक्ष लेने के जोखिम से बच रहे हैं। वसुंधरा का दरबार सूना हो गया है। पार्टी के एक नेता ने कहा- “यह नई भाजपा है, हर कोई अनजान है। हमारा नारा है ‘भाजपा है तो भरोसा है’, लेकिन जब बात आती है कि पार्टी नेतृत्व किसे चुनेगा तो कोई भरोसा नहीं है। हम केवल प्रार्थना कर सकते हैं।”

राजस्थान में पहली बार विधायक बने भजन लाल शर्मा का नाम बतौर सीएम आने पर सभी लोग हैरान हो गए थे। केंद्रीय मंत्री पर्यवेक्षक की हैसियत से आलाकमान की पर्ची लेकर जयपुर गए थे, जहां पूर्व सीएम वसुंधरा राजे ने पर्ची से भजनलाल का नाम पुकारा। विधायक दल की बैठक की सिर्फ औपचारिकता हुई थी। भजनलाल के साथ दीया कुमारी और प्रेम चंद बैरवा ने डिप्टी सीएम की शपथ ली लेकिन अभी तक कोई विभाग आवंटित नहीं किया गया है।

नतीजों के बाद कालीचरण सराफ राजे खेमे का एक और प्रमुख चेहरा बनकर उभरे थे। वो प्रोटेम स्पीकर पद के दावेदार थे लेकिन अंतिम क्षणों में आरएसएस के नेता वासुदेव देवनानी को स्पीकर बनाया गया।

चुनाव के बाद राजस्थान भाजपा में कई क्षत्रप उभर आए हैं। इस वजह से ज्यादा दिक्कत आ रही है। सूत्र कहते हैं कि भाजपा आलाकमान अब वसुंधरा और राजेंद्र राठौड़ खेमे से मिलकर चलना चाहता है। नजर लोकसभा चुनाव पर है। हालांकि राठौड़ इस बार भी हार गए। लेकिन पार्टी ने अभी उन्हें नजरन्दाज नहीं किया है।

राज्य के चार धार्मिक नेताओं में से कम से कम एक महंत प्रताप पुरी, बाबा बालकनाथ, बालमुकुंदाचार्य और ओटाराम देवासी  के अलावा केंद्रीय नेताओं जैसे गजेंद्र सिंह शेखावत, ओम माथुर और राज्य के अन्य लोगों की सिफारिशों को भी नई मंत्रिपरिषद में जगह मिल सकती है।

भाजपा के लिए क्षेत्रीय संतुलन बनाना भी आसान नहीं है। सीएम और दोनों डिप्टी सीएम सभी नेता जयपुर जिले का प्रतिनिधित्व करते हैं। हालांकि, भाजपा नेताओं का कहना है कि तीनों को जयपुर का प्रतिनिधित्व कहना गलत है क्योंकि सीएम शर्मा मूल रूप से भरतपुर से हैं, जबकि दीया कुमारी सवाई माधोपुर और बैरवा राजसमंद से हैं। लेकिन तीनों लंबे समय से जयपुर में ही रहते आ रहे हैं।

राजस्थान भाजपा में इन तमाम समीकरणों से ऊपर है वसुंधरा राजे का कद। भाजपा आलाकमान उन्हें अलग करके भी न भूल पा रहा है और न एडजस्ट कर पा रहा है। यही वजह है कि वो वसुंधरा से डरा हुआ है। पिछले दिनों चर्चा के तौर पर राजस्थान में ये बातें सत्ता के गलियारों में चली थीं कि जो विधायक मंत्री नहीं बने, वे वसुंधरा के पास आएंगे। वसुंधरा का खेल मंत्रिमंडल गठन के बाद शुरू होगा।

कांग्रेस नेता और पूर्व सीएम अशोक गहलोत बार-बार संकेत देते रहे हैं कि वसुंधरा उनकी दीदी हैं और वो दीदी को हर तरह की मदद देने को तैयार हैं। गहलोत ने यह भी कहा था कि दीदी ने एक बार उन्हें भी विधायकों की पेशकश की थी। इस बीच लोकसभा चुनाव नजदीक आ चुका है। क्या वसुंधरा इतने अपमान के बाद भी लोकसभा चुनाव में चुप बैठ जाएंगी।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए IscPress उत्तरदायी नहीं है।

Exit mobile version