तुर्की और सीरिया भूकंप पीड़ितों की मदद में दोहरा बर्ताव क्यों ?
सीरिया और तुर्की में आए विनाशकारी भूकंप के बाद तबाही की भयावहता धीरे-धीरे साफ होती जा रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, तुर्की और सीरिया में भूकंप से नष्ट हुई इमारतों के खंडहरों से शवों को निकालने का काम तीसरे दिन भी जारी है। मरने वालों की संख्या 11,000 से अधिक हो गई है। भूकंप के बाद से अब तक दर्जनों झटके दर्ज किए जा चुके हैं।
तुर्की के अधिकारियों का कहना है कि इस विनाशकारी भूकंप से 13.5 मिलियन से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं। सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र कहारनमारस, गजियांटेप, सान्लिउर्फा, दियारबाकिर, अदाना, मालट्या, उस्मानिया, हटाय और किलिस हैं, जबकि अलेप्पो, इदलिब-एन-हामा और लताकिया प्रांत सीरिया में सबसे अधिक प्रभावित हैं।
सीरिया में स्थिति बदतर
सीरिया में भूकंप के तेज़ झटकों के कारण हज़ारों इमारतें ध्वस्त हुई हैं। 12 साल से चल रहे गृह युद्ध और संघर्ष के कारण यह देश अलग थलग पड़ गया है, यहाँ के कई शहरोंऔर क़स्बों में भारी तबाही हुई है। मलबे के ढेर से मदद के लिए चीख़ने चिल्लाने की आवाज़ अब शांत हो चुकी है।
मदद का इंतेज़ार कर रहे लोग अब निराश हो चुके हैं। सीरिया दो क्षेत्रों में विभाजित है एक क्षेत्र पर सरकार तो दूसरे पर विद्रोहियों का क़ब्ज़ा है जहाँ मौत का आंकड़ा तेज़ी से बढ़ रहा है। हैरत की बात तो यह है कि मानवीय सहायता में भी सीरिया को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उस तरह की मदद नहीं मिल रही है जिस तरह की मदद तुर्की को मिल रही है।
तुर्की आर्थिक रूप से मज़बूत देश है जहाँ हर तरह की व्यवस्था मौजूद है, वहां हॉस्पिटल, एम्बुलेंस, और दवाओं का अभाव नहीं है जबकि सीरिया राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सियासत की वजह से पहले ही तबाह हो चुका है, वहां हर चीज़ का आभाव है। वहां पहले से ही लोग भुखमरी से मर रहे थे।
हॉस्पिटल,और दवाओं की कमी पहले से थी, वहां हवाई हमलों के कारण पहले ही लोग बेघर हो चुके थे ,अब यह नयी आपदा उनके सरों पर बम फटने की तरह है। मीडिया में सीरिया भूकंप का उल्लेख सिर्फ तुर्की के साथ हो रहा,अगर तुर्की में भूकंप न आता तो शायद सीरिया का नाम सिर्फ़ अख़बार की सुर्ख़ी बनकर रह जाता, सीरिया में दर्द से कराह रही आवाज़ें अब निराशा की वजह से खामोश हो रही हैं।
शायद उन्हें लगता है कि उनका जन्म सिर्फ़ ज़ुल्म सहने के लिए हुआ है, उनकी जान की कोई क़ीमत नहीं है, अगर उनकी जान क़ीमत होती तो आईएसआईएस के बहाने हर रोज़ सीरिया पर हमला नहीं किया जाता, लाशों के ढेर नहीं लगाए जाते। मानवता के नाम पर दोहरा रुख़ क्यों अपनाया जा रहा है? मीडिया में सीरिया भूकंप के पीड़ितों को उस तरह की कवरेज क्यों नहीं मिल रही जिस तरह तुर्की को मिल रही? डब्ल्यूएचओ ने सीरिया में कितनी मदद भेजी?
अलबत्ता यहाँ पर भारत सरकार की प्रशंसा और सराहना करना ज़रूरी है जिसने मानवता की सहायता के लिए बिना भेद भाव के हाथ आगे बढ़ाया और दोनों जगह (सीरिया तुर्की) की समान रूप से मदद की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आदेश पर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सीरिया और तुर्की दोनों देशों के पीड़ितों की मदद के लिए राहत सामग्री भेजकर उनके साथ खड़े रहने का भरोसा दिलाया है। भारत सरकार के इस प्रयास की जितनी भी सराहना की जाए कम है।


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