ग़ाज़ा युद्ध-विराम पर हमें कोई नया प्रस्ताव नहीं मिला: हमास
ग़ाज़ा में युद्ध-विराम से जुड़ी पर्दे के पीछे की बातचीत की खबरों के बीच, हमास ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा कि, न तो हमें कोई प्रस्ताव मिला है और न ही कोई बातचीत चल रही है। फ़ार्स न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, हमास आंदोलन ने बयान जारी कर कहा कि, कुछ मीडिया रिपोर्टों के विपरीत, अब तक उसे किसी भी क्षेत्रीय मध्यस्थ से कोई नया प्रस्ताव नहीं मिला है।
बयान में कहा गया कि 9 सितंबर को दोहा में हमास के सदस्यों की हत्या की असफल कोशिश के बाद से वार्ता रोक दी गई थी और अब तक फिर से शुरू नहीं हुई है। हमास ने यह भी स्पष्ट किया कि, अगर उसे मध्यस्थों की ओर से कोई नया प्रस्ताव मिलेगा, तो वह उसे सकारात्मक और जिम्मेदाराना रवैये से देखेगा, बशर्ते उसमें फ़िलिस्तीनी जनता के राष्ट्रीय अधिकार सुरक्षित रहें।
इस बीच, हाल के दिनों में हमास के रुख़ को लेकर नए युद्ध-विराम प्रस्तावों पर विरोधाभासी रिपोर्टें सामने आई हैं। वहीं, हमास के वरिष्ठ नेता और वार्ता प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख “ख़लील अल-हय्या” ने शनिवार को साफ़ कहा कि, ग़ाज़ा में युद्ध-विराम के लिए हमास को कोई नया प्रस्ताव नहीं मिला है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि हमास को युद्ध-विराम पर किसी भी तरह की नई बातचीत के लिए कोई प्रस्ताव प्राप्त नहीं हुआ है।
बता दें कि, पूरी दुनिया से युद्ध-विराम की मांग उठने के बावजूद नेतन्याहू की सरकार अड़ियल रवैया अपनाए हुए है। अंतरराष्ट्रीय दबाव को दरकिनार कर वह लगातार युद्ध जारी रखने की कोशिश कर रही है। आलोचकों का कहना है कि, नेतन्याहू प्रशासन “बंधकों” के बहाने का सहारा लेकर ग़ाज़ा पर स्थायी कब्ज़ा जमाना चाहता है, ताकि फिलिस्तीनी जनता की आज़ादी को हमेशा के लिए कुचल सके।
वहीं दूसरी ओर, अमेरिका का दोहरा चेहरा भी खुलकर सामने आ रहा है। डोनाल्ड ट्रंप और अमेरिकी नेता ऊपर से “समझौते” और “शांति” की बातें करते हैं, लेकिन हकीकत यह है कि वॉशिंगटन ग़ाज़ा में हो रहे नरसंहार को न सिर्फ़ नज़रअंदाज़ कर रहा है, बल्कि खुले तौर पर इज़रायल को हथियार, तकनीक और राजनीतिक छूट भी मुहैया करवा रहा है। दरअसल, अमेरिका का असली मक़सद इस पूरे युद्ध के ज़रिये पश्चिम एशिया में अपनी साम्राज्यवादी पकड़ बनाए रखना और इज़रायल को क्षेत्रीय गुंडे की तरह इस्तेमाल करना है।
एक तरफ़ फिलिस्तीनी बच्चे मलबे के ढेर में दबकर अपनी जान गंवा रहे हैं, अस्पताल और मस्जिदें बमबारी से खंडहर में तब्दील हो रही हैं, और दूसरी तरफ़ अमेरिकी सत्ता इन अपराधों को “सुरक्षा” और “आत्मरक्षा” का नाम देकर इज़रायल को बचाने में लगी है। यही कारण है कि आज पूरी दुनिया का ग़ुस्सा सिर्फ़ इज़रायल पर नहीं, बल्कि अमेरिका पर भी है — जिसने खुद को लोकतंत्र और मानवाधिकारों का ठेकेदार बताया, लेकिन ग़ाज़ा की बर्बादी में सीधे साझेदार बना हुआ है।

