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लेबनान की रक्षा के लिए हमें किसी की इजाज़त की ज़रूरत नहीं: हिज़्बुल्लाह सांसद

लेबनान की रक्षा के लिए हमें किसी की इजाज़त की ज़रूरत नहीं: हिज़्बुल्लाह सांसद

इज़रायल के दक्षिणी लेबनान पर बढ़ते हमलों के बीच, हिज़्बुल्लाह के संसदीय ब्लॉक “प्रतिरोध के लिए वफ़ादारी” के प्रतिनिधि हसन इज़्ज़ुद्दीन ने कहा कि, हिज़्बुल्लाह को अपने देश, अपनी इज़्ज़त और अपनी ज़मीन की रक्षा के लिए किसी से इजाज़त लेने की ज़रूरत नहीं है।

लेबनान के शहर ऐता अल-शाब में शहीदों की माताओं, पत्नियों और नर्सों की मौजूदगी में आयोजित एक राजनीतिक सभा में बोलते हुए, इज़्ज़ुद्दीन ने कहा,
“हम सब अपने शहीदों के क़र्ज़दार हैं। जब हमने मुक़ावमत (प्रतिरोध) का रास्ता चुना था, तब ही हमें पता था कि यह रास्ता आसान नहीं होगा। उस वक़्त इज़रायल ने बेरूत और लेबनान के बड़े हिस्से पर कब्ज़ा कर रखा था, लेकिन हमारे मुजाहिदीनों और शहीदों की कुर्बानियों से हमने दुश्मन को देश से बाहर निकाल फेंका।”

उन्होंने कहा, “दुश्मन युद्ध में अपने किसी भी मकसद में कामयाब नहीं हो सका — न वह प्रतिरोध को खत्म कर सका, न उसे निशस्त्र कर सका, और न ही दक्षिणी लितानी नदी के पार तथाकथित सुरक्षा क्षेत्र बना सका। इज़रायल की ख्वाहिश थी कि वह ‘अवली’ नदी तक और पूरे लेबनान पर क़ब्ज़ा करे, लेकिन वह इसमें नाकाम रहा। हम आज अपनी सरज़मीन और अपनी इज़्ज़त की हिफ़ाज़त के लिए किसी की अनुमति के मोहताज नहीं हैं। दुश्मन अपनी नाकामियों को अब खुलेआम ज़्यादती करके पूरा करना चाहता है, लेकिन हमारे पास प्रतिरोध  का हक़ बरक़रार रहेगा।”

इज़्ज़ुद्दीन ने कहा, “इज़रायल का लालच सिर्फ़ सरहदों तक सीमित नहीं है। जो चीज़ उसके इन मंसूबों के रास्ते में खड़ी है, वो हमारे प्रतिरोध की ताक़त है। यही वजह है कि वह इस ताक़त को खत्म करना चाहता है, क्योंकि उसे मालूम है कि यही प्रतिरोध, लेबनान की असली शक्ति है। आज हर लेबनानी को इस प्रतिरोध पर गर्व है, जो अपने लोगों की रक्षा की क्षमता रखता है।”

उन्होंने आगे कहा, “लेबनान की फौज दुश्मन का सामना करना चाहती है, लेकिन इसके लिए राजनीतिक फ़ैसले की ज़रूरत है। यही वह माहौल है जिसे इमाम मूसा सद्र ने ‘प्रतिरोध समाज’ कहा था — उन्होंने सरकार से कहा था कि, अगर खुद नहीं लड़ सकते, तो कम से कम अपने लोगों को हथियार दे, उन्हें पनाह दे और अपनी सरज़मीन की रक्षा का मौक़ा दे। लेकिन आज यह समाज आर्थिक, मानसिक, सुरक्षा और सैन्य दबावों का सामना कर रहा है। इज़रायल तैब्बा, ऐता अल-जबल, कफ़रदूनिन, तीर दबा और ज़ोतर शर्क़िया जैसे गांवों पर हमले कर रहा है ताकि लोगों के दिलों में डर बैठा सके।”

इज़्ज़ुद्दीन ने ज़ोर देकर कहा, “प्रतिरोध इन धमकियों के आगे झुकेगा नहीं। अफ़सोस की बात है कि जब हमें एकजुट होकर विदेशी ख़तरे का सामना करना चाहिए था, कुछ लोग दुश्मन की आवाज़ में अपनी आवाज़ मिला रहे हैं। लेकिन इस तरह की आवाज़ें  सिर्फ़ हमारी मज़बूती बढ़ाएगी, क्योंकि जब दुश्मन एक मज़बूत मोर्चे से टकराता है, तो पीछे हटने पर मजबूर होता है।”

अंत में उन्होंने कहा, “अमेरिका अब लेबनान की अर्थव्यवस्था को भी घेराबंदी में लेने की कोशिश कर रहा है, ताकि यहां पैसा न पहुंचे — जैसे उसने सैन्य, सुरक्षा और आर्थिक क्षेत्रों में किया। लेकिन इसके भी हल मौजूद हैं। अगर सरकार उन लेबनानी नागरिकों के नुक़सान की भरपाई नहीं करती जिन्हें इज़रायल ने निशाना बनाया है, तो हम अपने लोगों को अकेला नहीं छोड़ेंगे।

यही वह वादा है जो शहीद सैयद हसन नसरुल्लाह ने किया था — कि हम अपने तबाह गांवों को दोबारा बसाएंगे, जैसे 2006 की जंग के बाद किया था। यह वादा आज भी कायम है, और तमाम मुश्किलों के बावजूद पूरा किया जाएगा।”

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