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हम इज़रायल का मुक़ाबला भी कर सकते हैं, उसे हरा भी सकते हैं: हिज़्बुल्लाह  

हम इज़रायल का मुक़ाबला भी कर सकते हैं, उसे हरा भी सकते हैं: हिज़्बुल्लाह 
हिज़्बुल्लाह लेबनान के डिप्टी सेक्रेटरी जनरल शेख़ नईम क़ासिम ने मुहर्रम के मौके पर बैरूत के दहिया स्थित सैयदुश्शुहदा कॉम्प्लेक्स में भाषण देते हुए कहा कि हिज़्बुल्लाह की ताक़त, इज़रायल का सामना करने और उसे पराजित करने में सक्षम है।
उन्होंने कहा कि हालिया ‘ऊली अल-बास’ नामक युद्ध में हिज़्बुल्लाह के लड़ाकों ने 75 हज़ार हथियारों से लैस इज़रायली सैनिकों के सामने डटकर लड़ाई की और ईश्वर ने उन्हें विजय दी।
शेख़ नाइम क़ासिम ने कहा, “हमने ‘हम अपने वादे पर कायम हैं’ का नारा दिया ताकि ये जताया जा सके कि, हम शहीद सैयद हसन नसरुल्लाह और अन्य शहीदों की तरह सम्मानजनक जीवन जीते हैं और उन्हीं के रास्ते पर चलते रहेंगे।”
उन्होंने कहा कि जब भी घेराबंदी और दबाव बढ़ता है, हमारा ईमान और विश्वास और भी मज़बूत होता है। हमें यह यक़ीन होना चाहिए कि ख़ुदा हमारी मदद करता है, और जो मुसीबतें आती हैं वे हमारे इम्तिहान के लिए हैं। इसलिए हमें सब्र करना चाहिए, क्योंकि जीत हमेशा सब्र करने वालों को मिलती है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि हिज़्बुल्लाह ने ग़ाज़ा और फ़िलिस्तीन के लोगों का समर्थन किया और यह समर्थन एक नैतिक, राजनीतिक और धार्मिक ज़रूरत थी। उन्होंने युद्ध-विराम समझौते को एक नए चरण की शुरुआत बताते हुए कहा कि, अब ज़िम्मेदारी राज्य की है। “हम अंत तक डटे रहे और दुश्मन को गंभीर चोट पहुँचाई।”
शेख़ नईम क़ासिम ने यह भी कहा, “क्या कोई समझदार व्यक्ति अपनी ताक़त के स्रोतों को ख़त्म कर देता है, जबकि इज़रायली अभी भी युद्ध-विराम का उल्लंघन कर रहे हैं और अपने हमले जारी रखे हुए हैं?”
उन्होंने दक्षिण लेबनान के नबातिया क्षेत्र पर इज़रायली हमलों की निंदा करते हुए कहा कि लेबनानी सरकार को अपने दायित्व निभाने चाहिए। “क्या वे सोचते हैं कि हम हमेशा चुप रहेंगे? यह उनकी ग़लतफ़हमी है। हम वह क़ौम हैं जो कभी अपमान को बर्दाश्त नहीं करती।”
उन्होंने अंत में दोहराया, “हम इज़रायल का मुक़ाबला कर सकते हैं और उसे हरा सकते हैं।”
इसके अलावा उन्होंने ईरानी सेना और नागरिकों की शहादत पर ईरान के सर्वोच्च नेता, जनता, सेना और इस्लामी रिवोल्यूशनरी गार्ड्स को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि शहीद लेफ्टिनेंट जनरल मोहम्मद सईद इज़दी (हाज रमज़ान) हमारे बीच जिए और वह बलिदान व सेवा का प्रतीक थे। “उन्होंने अपने देश को छोड़कर फ़िलिस्तीन के मसले को प्राथमिकता दी और उसकी मदद की।”
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