आख़िरकार ट्रंप ने ग़ाज़ा में मानवीय त्रासदी को क़बूला, मगर समाधान नदारद
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार को ग़ाज़ा में जारी भीषण मानवीय संकट को स्वीकार किया है। ट्रंप ने माना कि ग़ाज़ा में लोग भूख से मर रहे हैं, लेकिन उन्होंने इस त्रासदी से निपटने के लिए न तो कोई स्पष्ट नीति पेश की और न ही अमेरिका की भूमिका पर कोई आत्ममंथन किया।
तसनीम न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, ट्रंप ने कहा: “हम ग़ाज़ा पर नज़र रखे हुए हैं और चाहते हैं कि उन लोगों की मदद की जाए जो वहाँ भूख से मर रहे हैं।” यह बयान उस समय आया है जब ग़ाज़ा में इज़रायली हमलों और नाकेबंदी के कारण हालात पहले से कहीं ज़्यादा भयावह हो चुके हैं।
ग़ाज़ा पट्टी में अक्टूबर 2023 से शुरू हुआ युद्ध, अब तक का सबसे जानलेवा संघर्ष बन चुका है। इज़रायल, जिसे अमेरिका का पूर्ण समर्थन प्राप्त है, ‘हमास को खत्म करने’ के नाम पर व्यापक बमबारी, ज़मीन और समुद्र से घेराबंदी और मानवीय मदद पर पाबंदी लगा चुका है।
संयुक्त राष्ट्र और अन्य राहत संगठनों के अनुसार, अब तक इस संघर्ष में हज़ारों आम नागरिक, जिनमें बड़ी संख्या में महिलाएं, बच्चे और बुज़ुर्ग शामिल हैं, मारे जा चुके हैं। करीब 15 लाख लोग बेघर हो चुके हैं। ग़ाज़ा में भुखमरी अपने चरम पर है, बच्चों में गंभीर कुपोषण की रिपोर्टें हैं और अधिकांश अस्पताल या तो नष्ट हो चुके हैं या काम नहीं कर पा रहे।
इसके बावजूद, अमेरिका ने इज़रायल को अरबों डॉलर की सैन्य मदद दी है और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में बार-बार युद्ध-विराम और मानवीय राहत की मांग वाली प्रस्तावों को वीटो किया है।
ट्रंप का यह कबूलनामा ऐसे समय में आया है जब उनकी ही पार्टी और प्रशासन इज़रायल के हर कदम का खुल्लमखुल्ला समर्थन करते आए हैं। ट्रंप ने पहले भी कहा था कि अमेरिका को ग़ाज़ा पर नियंत्रण हासिल करना चाहिए। मानवाधिकार संगठनों और कई अंतर्राष्ट्रीय नेताओं ने अमेरिका के इस रवैए को दोहरा मापदंड और मानवता के खिलाफ़ समर्थन बताया है।
हालांकि ट्रंप ने ग़ाज़ा के हालात को ‘भयावह’ बताया है, लेकिन जब तक अमेरिका अपने समर्थन की दिशा नहीं बदलता, तब तक ग़ाज़ा में मौत और भूख का सिलसिला थमने की उम्मीद नहीं की जा सकती।

