ग़ाज़ा में तीन मुस्लिम देशों के सैनिक भेजने की संभावना
अमेरिका के सूत्रों ने जानकारी दी है कि तीन मुस्लिम देश, जिनमें अज़रबैजान भी शामिल है, ग़ाज़ा में स्थिरता कायम करने वाली अंतरराष्ट्रीय फोर्स में शामिल होने को लेकर उच्चस्तरीय बातचीत कर रहे हैं। यह कदम युद्ध के बाद के दौर के लिए वाशिंगटन की नई योजना का हिस्सा बताया जा रहा है।
अमेरिकी वेबसाइट ‘पॉलिटिको’ की रिपोर्ट के अनुसार, इन तीनों देशों के नाम फिलहाल उन संभावित साझेदारों की सूची में हैं जो युद्ध-विराम के बाद ग़ाज़ा में स्थानीय शासन और सुरक्षा व्यवस्था को बहाल करने में भूमिका निभा सकते हैं। हालांकि, अमेरिकी सुरक्षा अधिकारियों का कहना है कि अभी तक किसी भी देश ने इस मिशन की औपचारिक जिम्मेदारी नहीं ली है, लेकिन बातचीत काफ़ी आगे बढ़ चुकी है और इन देशों ने इस योजना में भाग लेने की गंभीर इच्छा जताई है।
रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की प्रस्तावित योजना के तहत वाशिंगटन अपने अरब और मुस्लिम साझेदार देशों के साथ मिलकर एक अस्थायी अंतरराष्ट्रीय फोर्स गठित करेगा। इस बल का काम ग़ाज़ा में कानून व्यवस्था बहाल करना, और फ़िलिस्तीनी पुलिस के चयनित अधिकारियों को प्रशिक्षण देना होगा। योजना में मिस्र और जॉर्डन की भी अहम भूमिका बताई जा रही है, ताकि क्षेत्रीय देशों की भागीदारी के ज़रिए इस मिशन को स्थानीय समर्थन मिल सके।
अमेरिका ने यह भी स्पष्ट किया है कि इस बल में अमेरिकी सैनिक शामिल नहीं होंगे, बल्कि यह पूरी तरह से सहयोगी मुस्लिम देशों द्वारा संचालित मिशन होगा। यह घोषणा ऐसे समय में आई है जब अमेरिका पर यह आरोप लग रहा है कि वह ग़ाज़ा की तबाही के बाद अब “पोस्ट-वार कंट्रोल स्ट्रक्चर” बनाने की कोशिश कर रहा है, ताकि क्षेत्र में अपनी रणनीतिक पकड़ बनाए रखे।
इसी बीच, कुछ दिन पहले इज़रायली मीडिया ने दावा किया था कि इंडोनेशिया के राष्ट्रपति कब्ज़े वाले फ़िलिस्तीन की यात्रा पर जा सकते हैं। हालांकि, इंडोनेशियाई सरकार ने इन रिपोर्टों को झूठा और ग़लत बताया और कहा कि, तेल अवीव यात्रा की कोई योजना नहीं है।
यह पूरा घटनाक्रम इस बात की ओर संकेत करता है कि वाशिंगटन, युद्ध के बाद ग़ाज़ा के प्रशासन और सुरक्षा पर क्षेत्रीय मुस्लिम देशों की भागीदारी बढ़ाने की कोशिश कर रहा है, ताकि अंतरराष्ट्रीय आलोचनाओं को कम किया जा सके और क्षेत्र में अपनी नीति को लागू रखा जा सके।

