अमेरिका का स्वभाव अहंकारी और ईरान का स्वतंत्र क्रांति का है: आयतुल्लाह ख़ामेनेई
ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई ने 13 आ़बान (4 नवंबर 2025 ) राष्ट्रीय दिवस – “वैश्विक साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ संघर्ष दिवस” और “विद्यार्थी दिवस” के अवसर पर हज़ारों विद्यार्थियों, छात्रों और युद्ध शहीदों के परिवारों से मुलाक़ात में कहा कि 13 आ़बान 1979 (ईरानी साल ) अमेरिकी दूतावास पर क़ब्ज़ा, इस्लामी क्रांति के ख़िलाफ़ साज़िशों का पर्दाफ़ाश करने वाला ऐतिहासिक दिन था। उन्होंने कहा कि यह दिन “गौरव और विजय” का दिन है, और इसने “अमेरिकी सरकार की वास्तविक पहचान” को उजागर किया।
ईरान और अमेरिका का टकराव, दो सोचों का टकराव है
उन्होंने कहा कि अमेरिका के साथ ईरान का मतभेद “मूलभूत और स्वभाविक” है, जो दोनों पक्षों के हितों के टकराव से जुड़ा है। उन्होंने स्पष्ट किया कि, केवल तभी अमेरिका के सहयोग के प्रस्ताव पर विचार किया जा सकता है — वह भी “निकट भविष्य में नहीं बल्कि बहुत बाद में” — जब वह इज़रायल नामक स्थापित “ज़ायोनी शासन” को पूरी तरह समर्थन समाप्त करे, अपने सभी सैन्य अड्डे इस क्षेत्र से हटा ले और किसी भी देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप बंद करे।
अमेरिकी सहयोग प्रस्ताव तीन शर्तों पर निर्भर
ईरान के सर्वोच्च नेता ने अमेरिकी सहयोग के प्रस्ताव को तीन शर्तों पर निर्भर बताया — इज़रायल से समर्थन समाप्त करना, क्षेत्र से सैन्य ठिकाने हटाना और उसमें हस्तक्षेप बंद करना। आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कहा कि देश की सुरक्षा और समस्याओं के समाधान का एकमात्र रास्ता “मज़बूत बनना” है — प्रशासनिक, वैज्ञानिक, सैन्य और आत्मिक दृष्टि से। उन्होंने ज़ोर दिया कि, सरकार अपने हिस्से के काम को ताक़त और दृढ़ता के साथ पूरा करे।
उन्होंने कहा कि अमेरिका की दुश्मनी ईरान से नई नहीं है। यह 1953 के सीआईए समर्थित तख़्तापलट से शुरू हुई थी, जिसने प्रधानमंत्री डॉ. मोहम्मद मोसद्देक की राष्ट्रीय सरकार को गिरा दिया था। उस समय अमेरिकियों ने पहले मुस्कराहट दिखाई, लेकिन फिर ब्रिटेन के साथ मिलकर तख़्तापलट किया और शाह को वापस सत्ता में लाया। उस घटना ने ईरानी जनता को अमेरिका के साम्राज्यवादी चरित्र से परिचित कराया।
सुप्रीम लीडर ने कहा कि, इस्लामी क्रांति के बाद से अमेरिका ने हर तरह से ईरान के ख़िलाफ़ दुश्मनी दिखाई — आर्थिक प्रतिबंध, युद्ध में सद्दाम हुसैन को भड़काना और सहायता देना, ईरान के यात्री विमान को गिराना, प्रचार युद्ध, और सीधे सैन्य हमले तक, क्योंकि इस्लामी क्रांति की स्वतंत्र पहचान, अमेरिकी अहंकार से मेल नहीं खाती। उन्होंने कहा कि जो लोग “अमेरिका मुर्दाबाद” के नारे को अमेरिका की दुश्मनी का कारण मानते हैं, वे इतिहास को उल्टा लिख रहे हैं। यह दुश्मनी नारे से नहीं, बल्कि स्वभाव से है। अमेरिका का स्वभाव अहंकारी है और ईरान का स्वभाव स्वतंत्र क्रांति का है ।
अमेरिका केवल ईरान को आत्मसमर्पण चाहता है
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कहा, “अमेरिका केवल ईरान को आत्मसमर्पण चाहता है। सभी अमेरिकी राष्ट्रपति यही चाहते थे, बस मौजूदा राष्ट्रपति ने इसे खुलकर कह दिया।” उन्होंने कहा, “इतनी सक्षम, संपन्न और जागरूक जनता वाले देश से आत्मसमर्पण की उम्मीद करना बेतुकी बात है।” उन्होंने कहा कि “भविष्य दूर की बात है,” लेकिन इस समय सभी को समझ लेना चाहिए कि समस्याओं का हल केवल मज़बूती में है। उन्होंने कहा कि, जब दुश्मन देखेगा कि ईरान के साथ टकराव से उसे कोई लाभ नहीं बल्कि नुक़सान होगा, तो वह पीछे हट जाएगा।
जो खुलेआम इज़रायल की मदद कर रहा है, वह ईरान से सहयोग नहीं कर सकता
अमेरिका की ओर से सहयोग की बातों पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि “जो देश खुलेआम इज़रायल की मदद कर रहा है, वह ईरान से सहयोग की बात नहीं कर सकता।” उन्होंने युवाओं को सलाह दी कि वे ज्ञान और जागरूकता में वृद्धि करें, इतिहास के कड़वे और मीठे दोनों अनुभवों का अध्ययन करें और वैज्ञानिक प्रगति को जारी रखें। उन्होंने कहा कि “सैन्य क्षेत्र में ईरान लगातार प्रगति कर रहा है, और यह साबित करेगा कि ईरान को कोई ताक़त झुका नहीं सकती।”

