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क़स्साम ब्रिगेड ने इज़रायली क़ैदियों को रिहाई से पहले घरवालों से कराया वीडियो कॉल

क़स्साम ब्रिगेड ने इज़रायली क़ैदियों को रिहाई से पहले घरवालों से कराया वीडियो कॉल

ग़ाज़ा में कैदियों की अदला-बदली के पहले चरण में हमास की सैन्य शाखा ‘कताएब इज़्ज़ुद्दीन अल-क़स्साम’ ने एक ऐसा मानवीय कदम उठाया जिसने दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींच लिया। सोमवार सुबह क़स्साम ब्रिगेड ने सात इज़रायली क़ैदियों को अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस के हवाले किया। लेकिन इस रिहाई से पहले संगठन ने इन सभी क़ैदियों को अपने परिवारों से वीडियो कॉल करने की अनुमति दी।

यह पहला मौका था जब किसी सशस्त्र संगठन ने अपने विरोधियों के प्रति इस तरह का व्यवहार दिखाया। क़ैदियों को अपने परिवारों से बात करने, उनके चेहरे देखने और भावनात्मक रूप से जुड़ने का मौका मिला। इस घटना ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया में व्यापक प्रतिक्रिया उत्पन्न की और हमास के इस क़दम को “अमानवीयता के बीच इंसानियत की झलक” के रूप में देखा गया।

रिपोर्टों के अनुसार, रिहाई से पहले इन सात क़ैदियों को सुरक्षित स्थानों पर लाया गया, जहाँ उनसे वीडियो कॉल कराई गई। कई क़ैदियों की आंखों में आँसू थे जबकि उनके परिवार भी भावनाओं से भरे हुए दिखे। इस पहल ने ग़ाज़ा संघर्ष के मानवीय पहलू को एक नए दृष्टिकोण से दुनिया के सामने रखा।

यह भी उल्लेखनीय है कि यह पहली बार नहीं है जब क़स्साम ब्रिगेड ने इस तरह का क़दम उठाया हो। इससे पहले हुई कैदियों की अदला-बदली में भी हमास ने रिहा किए जाने वालों को प्रतीकात्मक उपहार दिए थे — जिनमें क़ैद के दौरान की तस्वीरें, ग़ाज़ा की झलकियाँ और ‘आज़ादी प्रमाणपत्र’ शामिल थे। कुछ मामलों में उन्हें प्रतीकात्मक लॉकेट और अन्य स्मृति चिन्ह भी दिए गए थे।

इज़रायली मीडिया ने लंबे समय तक फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध बलों की छवि को नकारात्मक रूप में पेश किया है। ऐसे में हमास की यह पहल उस प्रचार का जवाब भी मानी जा रही है।

जानकारी के मुताबिक, इज़रायल ने हालिया युद्ध-विराम समझौते में यह शर्त रखी थी कि, क़ैदियों की सुपुर्दगी के दौरान किसी भी तरह का औपचारिक समारोह आयोजित न किया जाए, ताकि मीडिया में प्रतिरोध बलों के व्यवहार की असल तस्वीर न उभर सके। बावजूद इसके, क़स्साम ब्रिगेड ने अपनी मानवीय नीति का प्रदर्शन करते हुए इस प्रक्रिया को गरिमा और सम्मान के साथ पूरा किया।

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