सऊदी-ईरानी राजनयिक संबंधों को बहाल करने का महत्व

सऊदी-ईरानी राजनयिक संबंधों को बहाल करने का महत्व

सात साल के नाख़ुशगवार संबंधों के बाद, मध्य पूर्व की दो प्रमुख शक्तियों, सऊदी अरब और ईरान ने शुक्रवार, 10 मार्च, 2023 को अचानक घोषणा की कि वे अपने बीच संबंध बहाल करने के लिए सहमत हो गए हैं। सऊदी अरब और ईरान के बीच इस संबंध बहाली पर पिछले एक साल से बातचीत चल रही थी और इराक और ओमान इस मामले में मध्यस्थ की भूमिका निभा रहे थे, लेकिन कोई खास प्रगति नहीं दिख रही थी।

मध्य पूर्व मामलों के विश्लेषकों को भी कभी नहीं लगा कि इन दोनों प्रतिद्वंद्वी शक्तियों के बीच चल रही बातचीत का कोई महत्वपूर्ण परिणाम निकलेगा। इसका मुख्य कारण यह था कि कोई भी मज़बूत और शक्तिशाली देश उनके बीच मध्यस्थता की जिम्मेदारी नहीं निभा रहा था, जो दोनों देशों को समान रूप से प्रभावित कर सके और संदेह और अविश्वास की स्थिति में गारंटर के रूप में कार्य कर सके।

इस कमी की भरपाई तब हुई जब चीन ने अप्रत्याशित रूप से न केवल सऊदी अरब और ईरान के बीच मध्यस्थता की भूमिका निभाने में अपनी रुचि व्यक्त की, बल्कि स्वयं चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इस प्रयास को सफल बनाने में असामान्य रुचि ली और अंत में एक सकारात्मक परिणाम मिला।

यह सफलता कितनी अप्रत्याशित थी, इसका अंदाजा सऊदी अरब के जाने-माने विश्लेषक अब्दुल रहमान अल-रशीद के उस लेख से लगाया जा सकता है, जिसमें उन्होंने इस घटनाक्रम पर टिप्पणी की थी और लिखा था कि “सऊदी अरब और ईरान के बीच बीजिंग में जो समझौता हुआ है वह हर प्रकार से एक बहुत बड़ी घटना है,”

वह कहते हैं, “यह एक बम की तरह है जो फट गया है और ध्वनि लगातार सुनाई दे रही है और भविष्य में इसका प्रभाव हमारी अपेक्षाओं से कहीं अधिक होगा। हमें इसकी गहराई और इसके तमाम पहलुओं और भविष्य में होने वाली संभावनाओं का इंतजार करना होगा। लेकिन साथ ही उन्होंने आगाह भी किया कि चूंकि यह ईरानी मामला है, इसलिए सावधानी के पक्ष को हमेशा ध्यान में रखा जाना चाहिए।

अब्दुल रहमान अल-रशीद के इस आखिरी वाक्य से अंदाजा लगाया जा सकता है कि सऊदी अरब और ईरान के बीच अविश्वास का माहौल कितना गहरा है. यह अविश्वास का गहरा वातावरण है जो पूरे मध्य पूर्व क्षेत्र की आत्मा बना हुआ है। इसके लिए दोनों देश मुस्लिम जगत के नेतृत्व पर अपने दावे को लेकर इतने गंभीर हैं कि हमेशा एक-दूसरे के खिलाफ खड़े नजर आते हैं।

इन दो शिया और सुन्नी देशों की लगातार प्रतिद्वंद्विता चल रही थी लेकिन अब यह उम्मीद की जा सकती है कि प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर ये दोनों ताकतें एक साथ आकर मुस्लिम दुनिया में मौजूदा अशांति और अस्थिरता की स्थिति को समाप्त करने के लिए गंभीर प्रयास करेंगी। इन दोनों देशों द्वारा आपस में संबंध बहाल करने और अपने अपने दूतावास को दोबारा खोलने के एलान के बाद यूरोपीय देशों में खलबली मच गयी है, विशेष रूप से इज़रायल को यह समझौता फूटी आँख नहीं भा रहा है, उसने इस समझौते को अपने लिए ख़तरनाक बताया है।

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