क़ासिम सुलैमानी, एक ऐसा जनरल, जिस पर पूरे ईरान को गर्व था

 क़ासिम सुलैमानी, एक ऐसा जनरल, जिस पर पूरे ईरान को गर्व था

सरदार क़ासिम सुलैमानी ईरानी फ़ौज का एक ऐसा जनरल था, जिस पर केवल ईरानी फ़ौज को ही नहीं, बल्कि पूरे ईरान को गर्व था। सरदार सुलैमानी ईरानी फ़ौज का वो जांबाज़ सिपाही था जिसका नाम सुनकर ही दुश्मनों के पसीने छूट जाते थे। यह शहीद पूर्ण रूप से ईरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह सैयद अली ख़ामेनेई का अनुयायी था और कभी भी उनकी मर्ज़ी के बग़ैर आगे नहीं बढ़ता था। शहीद सुलैमानी, अली ख़ामेनेई के वफादार सिपाही थे। वे हमेशा प्रयास करते थे कि जो कुछ भी सर्वोच्च नेता कहते थे, उसका पालन करें और उसे लागू करें। यही उनकी वैश्विक लोकप्रियता के सबसे प्रमुख कारणों में से एक है।”

शहीद सुलैमानी की सबसे बड़ी विशेषता है उनका निःस्वार्थ होना
“शहीद सुलैमानी की सबसे बड़ी विशेषता उनका खालिसपन था। वे हमेशा अपने काम सिर्फ अल्लाह के लिए करते थे, और यही उनकी शहादत क सबब बना। “मज़बूत ईमान और इस्लाम धर्म में गहरी आस्था शहीद सुलैमानी की अन्य विशेषताओं में शामिल थी। यह महान शहीद, इस्लाम धर्म को पुनर्जीवित करने और इसे ऊंचा उठाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक देता था ।”

शहीद सुलैमानी ने ईरान के सुप्रीम लीडर के निर्देशों के तहत 2011 में सीरिया में उस समय अपनी उपस्थिति दर्ज की थी, जब सीरिया आईएसआईएस के चंगुल में फंसा हुआ था। उस समय अमेरिका, ब्रिटेन, इज़रायल जैसे शक्तिशाली देश भी आईएसआईएस के सामने असहाय नज़र आ रहे थे। सीरिया के राष्ट्रपति, सेना और शासन ने ईरान से मदद की अपील की ताकि दुश्मनों से मुकाबला करने में सहायता मिल सके।”

“शहीद सुलैमानी ने सीरिया में उपस्थिति दर्ज की और आईएसआईएस के खिलाफ लड़ाई लड़ी और जीत हासिल की। आज, अगर वे जीवित होते, तो शायद ही विद्रोही गुट इतनी आसानी से सीरिया में क़ब्ज़ा कर पाते। सिर्फ सीरिया में ही नहीं। सीरिया के बाद क़ासिम सुलैमानी की सूझबूझ और नेतृत्व क्षमता ने इराक से भी आईएसआईएस को खदेड़ दिया। यही वह कारण था जिसने क़ासिम सुलैमानी का क़द इतना बड़ा कर दिया कि, वह सिर्फ ईरान में ही नहीं बल्कि पूरी दुनियां में हर उस इंसान की आँख का तारा बन गए जो ज़ुल्म, अन्याय और अत्याचार से नफ़रत करता है।

शायद इसीलिए उनकी नमाज़े जनाज़ा पढ़ाते समय ईरान के सुप्रीम लीडर सैयद अली ख़ामेनेई की आँखों में आंसू आ गए थे। इसी कारण उनकी नमाज़े जनाज़ा को अंतर्राष्ट्रीय मीडिया ने भी कवरेज दी। भारत के मशहूर हिंदी समाचार पत्र “अमर उजाला” ने अपनी हेडलाइन में लिखा था:
क़ासिम सुलैमानी के जनाज़े में ख़ामेनेई की आँखों से जो गिरा, वह आंसू नहीं अंगारा था। “अमर उजाला” की इस हेडलाइन का मतलब लोगों को तब समझ में आया जब ईरानी फ़ौज ने सुप्रीम लीडर के आदेश पर सरदार सुलैमानी की शहादत का बदला लेने के लिए इराक में स्थित अमेरिकी एयरबेस पर हमला कर दिया। इस हमले के बाद इराक में अमेरिकी दूतावास से वहां के राजदूत को हेलीकाप्टर से भागते हुए भी देखा गया था।

क़ासिम सुलेमानी की बहादुरी और आईएसआईएस के खिलाफ युद्ध
जनरल क़ासिम सुलेमानी, ईरान की पासदाराने इंकलाब की क़ुद्स फोर्स के कमांडर, न केवल ईरान बल्कि पूरे मध्य पूर्व में बहादुरी और नेतृत्व का प्रतीक माने जाते थे। उनकी पहचान एक निडर योद्धा और वैश्विक आतंकवाद, विशेषकर आईएसआईएस के खिलाफ अडिग नेता के रूप में होती है।

आईएसआईएस के गठन के बाद, मध्य पूर्व में उग्रवाद और आतंकवाद की लहर ने लाखों लोगों की ज़िंदगियों को खतरे में डाल दिया था। इराक और सीरिया के कई हिस्से इस कट्टरपंथी संगठन के कब्जे में थे। आईएसआईएस द्वारा मानवता के खिलाफ किए गए अपराधों, ऐतिहासिक स्थलों की तबाही और अल्पसंख्यकों के जनसंहार ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया था।

ऐसे कठिन हालात में जनरल क़ासिम सुलेमानी एक उद्धारकर्ता के रूप में सामने आए। उन्होंने अपनी रणनीति, साहस और बलिदान के जरिए आईएसआईएस को हराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इराक और सीरिया में उनके नेतृत्व में किए गए अभियानों ने आईएसआईएस के मजबूत ठिकानों को नष्ट किया और प्रभावित क्षेत्रों को आजाद कराया।

जनरल सुलेमानी की युद्धनीति और युद्धक्षेत्र में उनकी मौजूदगी ने, केवल गठबंधन सेनाओं को हिम्मत नहीं दी बल्कि, आतंकवादियों की कमर तोड़ दी। वह अपनी जान की परवाह किए बिना फ्रंटलाइन पर मौजूद रहते और अपनी सेना का हौसला बढ़ाते। उन्होंने ईरान, इराक, सीरिया और अन्य देशों की सेनाओं के बीच एकजुटता पैदा की ताकि आईएसआईएस के खिलाफ एक प्रभावी युद्ध लड़ा जा सके।

उनकी बहादुरी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आईएसआईएस के खतरनाक हमलों के बावजूद वह कभी पीछे नहीं हटे। उन्होंने दुश्मनों के दिलों में डर पैदा किया और अपनी सेनाओं को आखिरी दम तक लड़ने का हौसला दिया। जनरल सुलेमानी की सेवाओं को न केवल ईरान बल्कि इराक और सीरिया के लोग भी आदर की दृष्टि से देखते हैं।जनरल क़ासिम सुलेमानी का बलिदान और साहस ने मध्य पूर्व में आतंकवाद के खिलाफ युद्ध को एक नई दिशा दी। वह ऐसी शख्सियत के रूप में याद किए जाएंगे जिन्होंने अपनी ज़िंदगी मानवता की सेवा और अत्याचार के खिलाफ संघर्ष में समर्पित कर दी।

प्रतिरोध हमेशा बाक़ी रहेगा
क़ासिम सुलैमानी की शहादत को पाँच साल गुज़र चुके हैं, लेकिन उनकी शहादत की गर्मी आज भी प्रतिरोध मोर्चे के लोगों और नौजवानों के दिलों में मौजूद है। 3 जनवरी, 2020 को, ख़ुद को वतन का सिपाही मानने वाले महान शख्स जनरल क़ासिम सुलैमानी का-शहादत दिवस था। वे अपने मक़सद और वतन की राह में शहीद हो गए। “क़ासिम सुलैमानी” की शख्सियत और उनके जीवन के तौर-तरीकों की कुछ खासियतों का ज़िक्र कर उनसे सबक सीखते हुए “सुलैमानी स्कूल ऑफ थॉट (जो इस्लाम और कुरान की समझ है) असली मक़सद की ओर बढ़ा जा सकता है।

हिज़्बुल्लाह लेबनान, के शहीद कमांडरों में से एक फ़ोआद शकर की बेटी, ख़दीजा ख़दीजा ने “इस्लाम टाइम्स” के रिपोर्टर से बात करते हुए क़ासिम सुलैमानी की शहादत की पाँचवीं बरसी के मौके पर कहा कि, “अगर प्रतिरोध की पहली पंक्ति के सारे कमांडर शहीद हो जाएं, तो भी प्रतिरोध कभी नहीं रुकेगा।” कमांडरों के सबक और शिक्षा हमेशा बनी रहेंगी और पीढ़ियां इस राह पर चलती रहेंगी। प्रतिरोध का मोर्चा हमेशा इज़रायली दुश्मनों पर लटकती हुई तलवार की तरह रहेगा,और यह कभी नाकाम नहीं होगा।

ख़दीजा शकर ने आगे कहा, “हमारे पास जो कुछ भी है, वह हमें आशूरा और कर्बला से मिला है।” जैसा कि इमाम खुमैनी (र.अ.) ने फरमाया, “कर्बला के वाक़ए को देखना ही काफी है।” हम देखते हैं कि ज़ुल्म के खिलाफ़ प्रतिरोध जारी है। आशूरा ने हमें सिखाया कि हमें ज़ुल्म के खिलाफ़ खड़ा होना चाहिए, चाहे इसके लिए खून और बड़ी क़ुर्बानियाँ क्यों न देनी पड़े। यही क़द्रों और उसूलों के हिफ़ाज़त का रास्ता है।

ख़दीजा शकर ने कर्बला की घटना की ओर इशारा करते हुए कहा, “इमाम हुसैन (अ.) ने अपनी शहादत से भविष्य का रास्ता तय किया और ज़ुल्म ख़िलाफ़ एक मज़बूत दीवार खड़ी की। यह दीवार ज़ुल्म के ख़िलाफ़ हमेशा खड़ी रहेगी, चाहे इसका अंजाम जो भी हो।” उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि प्रतिरोध का केंद्र इस क़ुर्बानी से जोश और ऊर्जा प्राप्त करता है और आज़ादी और इज्ज़त हासिल करने के लिए यह इज़रायली दुश्मन और सभी औपनिवेशिक ताक़तों का सामना करता है।

ख़दीजा शकर ने दिलों के कमांडर, शहीद सुलैमानी की शहादत का ज़िक्र करते हुए कहा कि जनरल क़ासिम की शहादत न सिर्फ ईरान के लिए, बल्कि पूरे प्रतिरोध के केंद्र, खासकर लेबनान के लिए एक बड़ी क्षति थी। “क़ासिम सुलैमानी” की शहादत का मेरे वालिद पर गहरा असर हुआ। यह घटना उनके लिए बेहद दर्दनाक थी, क्योंकि ये दोनों प्यारे दोस्त और भाई थे। उन्होंने बताया कि मेरे शहीद पिता हमेशा प्रतिरोध के समर्थन में “सरदार क़ासिम” की अहम भूमिका और औपनिवेशिक साज़िशों का मुक़ाबला करने में उनके मजबूत प्रभाव के बारे में बात करते थे। उन्होंने कहा, “अमेरिकियों ने सरदार क़ासिम को उस वक्त शहीद करने का फैसला किया, जब वे समझ गए कि क़ासिम सुलैमानी की मौजूदगी उनकी औपनिवेशिक साज़िशों और क्षेत्र में अमेरिकी वर्चस्व के भविष्य के लिए बेहद ख़तरनाक है।”

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए IscPress उत्तरदायी नहीं है।

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