हाल ही में इराक यात्रा के दौरान आतंक ग्रस्त शहरों को निकट से देखने वाले पोप फ्रांसिस ने आतंकी संगठनों को हथियार देने को लेकर हथियार निर्माताओं एवं तस्करों की निंदा की।
पोप ने अपने इराक के दौरे पर खुशी जाहिर करते हुए इसे वर्षों से चले आ रहे संघर्ष, आतंकवाद और महामारी के कारण उपजे हालात के बीच मुस्लिमों और ईसाइयों के बीच उम्मीद का प्रतीक बताया है। कोविड-19 के कारण ऑनलाइन आयोजित किए गए अपने साप्ताहिक संबोधन में उन्होंने वैटिकन की जनता से कहा, ‘इराक की जनता को शांतिपूर्ण तरीके से जिंदगी जीने का अधिकार है।’ रविवार को 84 वर्षीय पोप ने मूसेल के उत्तरी शहर में स्थित घरों और चर्च के मलबों को देखा जहां 2014 से 2017 तक इस्लामिक स्टेट का कब्जा था।
पोप ने कहा कि ‘इराक यात्रा के दौरान मैंने खुद से सवाल किया, ‘आतंकियों को हथियार कौन बेचता है? आज उन आतंकियों को हथियार कहां से मिल रहा है जो हर जगह नरसंहार को अंजाम दे रहे हैं। यह सवाल है जिसका जवाब किसी को देना होगा। बता दें कि इससे पहले पोप ने कहा था कि हथियार बनाने वालों व तस्करों को एक दिन ईश्वर को जवाब देना होगा।
पोप ने अपनी इराक यात्रा के दौरान शिया धर्मगुरु आयतुल्लाह सीस्तानी से भी मुलाक़ात की। याद रहे कि आयतुल्लाह सीस्तानी की अपील के बाद इराकी जवानों ने स्वंयसेवी समूह की शक्ल में मैदान में उतर कर इस देश को दाइश के चंगुल से छुड़ाने में सबसे प्रभावी भूमिका निभाई थी। पोप ने नैनवा प्रान्त में इस्लामिक स्टेट आतंकी समूह से पीड़ित ईसाई समुदाय के लोगों से भी मुलाकात की। इराक का ईसाई समुदाय, दुनिया के पुराने समुदायों में से एक है। अमेरिकी हमलों व दाइश आतंकियों के कारण जिस समुदाय की जनसंख्या 1.5 मिलियन होती थी वह अब मात्र 3 लाख रह गई है।