ग़ाज़ा में राहत का इंतज़ार कर रहे फ़िलिस्तीनियों पर फिर गोलीबारी, 13 शहीद
ग़ाज़ा एक बार फिर लहूलुहान है। सोमवार को इज़रायली सेना ने ख़ान यूनुस में उन बेगुनाह फ़िलिस्तीनियों पर अंधाधुंध गोलियाँ चला दीं जो राहत सामग्री पाने की आस में घंटों से खड़े थे। फ़िलिस्तीनी सरकारी समाचार एजेंसी ‘वफ़ा’ के मुताबिक़, इस निर्मम हमले में कम से कम 13 नागरिक शहीद हुए और दर्जनों गंभीर रूप से घायल हैं।
खान यूनुस के नासिर मेडिकल कॉम्प्लेक्स से मिली जानकारी बताती है कि कई घायलों की हालत नाज़ुक है, और अस्पतालों में दवाइयों तथा बिजली की भारी कमी के बीच मौत से संघर्ष जारी है।
यह कोई इकलौती वारदात नहीं थी। सोमवार सुबह ही इज़रायली लड़ाकू विमानों ने ग़ाज़ा के ज़ैतून इलाक़े में एक राहत गोदाम को निशाना बनाया, जहाँ नागरिकों के लिए भोजन और दवाएं रखी गई थीं। इस हमले में 10 और फ़िलिस्तीनी नागरिकों की जान चली गई। अल-जज़ीरा की रिपोर्ट के अनुसार, सोमवार सुबह से लेकर अब तक इज़रायली बमबारी में 80 से अधिक फ़िलिस्तीनी मारे जा चुके हैं। यह हमला उन लोगों पर किया गया जो निहत्थे हैं, भूखे हैं, और दुनिया से इंसाफ़ की आस लगाए हुए हैं।
इसी के साथ इज़रायल ने ग़ाज़ा और जबालिया के लोगों को जबरन दक्षिणी इलाके अल-मवासी की तरफ़ कूच करने का आदेश दिया है, जिसे अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन ‘जनसंख्या की जबरन जगह-बदल’ की संज्ञा देते हैं और इसे युद्ध अपराध मानते हैं। ग़ाज़ा अब सिर्फ़ एक भूगोल नहीं, इंसानियत का इम्तिहान बन चुका है। जिस दुनिया ने यूक्रेन पर एक मिसाइल गिरते ही सैंकड़ों प्रतिबंध लगाए, वही दुनिया ग़ाज़ा में रोज़ गिरते बमों पर खामोश है।
यह खामोशी कहीं इस बात का इशारा तो नहीं कि फ़िलिस्तीनी खून की कीमत आज भी सबसे कम आंकी जाती है? अस्पतालों में दवाओं की कमी, बिजली का अभाव और घायलों की तड़पती सांसें इस बात का सबूत हैं कि ग़ाज़ा में अब ज़िंदगी से ज़्यादा मौतें तेज़ी से पहुँच रही हैं। ज़ैतून इलाक़े में राहत गोदाम पर बम गिराकर इज़रायल ने साफ़ कर दिया है कि उसके लिए भूखे बच्चों के दूध के पैकेट और घायल बुज़ुर्गों की दवाएं भी ‘टारगेट’ हैं।

