Site icon ISCPress

‘हिंदी भाषा’ के विरोध ने उद्धव और राज ठाकरे को एक कर दिया

‘हिंदी भाषा’ के विरोध ने उद्धव और राज ठाकरे को एक कर दिया
महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ा मोड़ तब आया जब हिंदी भाषा को लेकर उठे विवाद ने वर्षों से अलग राह पर चल रहे ठाकरे बंधुओं — उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे — को एकजुट कर दिया। पहली बार ऐसा हो रहा है कि दोनों नेता किसी राजनीतिक मंच पर एक साथ नजर आएंगे। मौका है राज्य सरकार द्वारा पहली से पाँचवीं कक्षा तक हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा के रूप में लागू करने के फैसले के खिलाफ प्रदर्शन का।
इस बात की पुष्टि शिवसेना (उद्धव गुट) के नेता और सांसद संजय राऊत ने शुक्रवार को की। उन्होंने बताया कि 5 जुलाई को एक संयुक्त मोर्चा निकाला जाएगा, जिसकी तारीख और स्थान दोनों नेताओं के बीच आपसी सहमति से तय होंगे। महाराष्ट्र की राजनीति में यह घटना ऐतिहासिक मानी जा रही है, क्योंकि पिछले दो दशकों में दोनों भाई कभी भी सार्वजनिक रूप से एक मंच पर साथ नहीं आए थे।
गौरतलब है कि महाराष्ट्र सरकार ने 16 अप्रैल को एक सरकारी आदेश (GR) जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि राज्य के मराठी और इंग्लिश मीडियम स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य किया जाएगा। इस निर्णय का राज्यभर में विरोध हुआ, खासकर क्षेत्रीय और भाषायी अस्मिता की राजनीति करने वाले संगठनों ने इसे ‘हिंदी थोपने’ की कोशिश करार दिया।
विवाद बढ़ने पर सरकार ने संशोधित आदेश जारी किया, जिसमें कहा गया कि हिंदी अब अनिवार्य नहीं, बल्कि वैकल्पिक होगी। छात्रों को दूसरी भारतीय भाषा चुनने का विकल्प दिया जाएगा, बशर्ते कक्षा में कम से कम 20 छात्र आवेदन करें।
इस फैसले के विरोध में एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे ने पहले 6 जुलाई को दक्षिण मुंबई के गिरगांव चौपाटी से ‘विराट मोर्चा’ निकालने की घोषणा की थी। वहीं, उद्धव ठाकरे ने 7 जुलाई को आज़ाद मैदान में होने वाले एक अन्य प्रदर्शन को समर्थन देने का ऐलान किया था, जिसे सामाजिक कार्यकर्ता दीपक पवार आयोजित कर रहे थे।
लेकिन दो अलग-अलग मोर्चों से जनता में भ्रम की स्थिति बनने लगी और प्रशासन भी चिंतित हो गया। इसी पृष्ठभूमि में दोनों नेताओं ने अपने कार्यक्रमों को मिलाकर एक संयुक्त मोर्चा करने का निर्णय लिया — जो ना सिर्फ एक रणनीतिक कदम है, बल्कि महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया समीकरण भी बना सकता है।
Exit mobile version