संघर्ष-विराम की उम्मीद नहीं, नेतन्याहू ‘हमेशा की जंग’ चाहता है: गार्जियन
गार्जियन की विश्लेषणात्मक रिपोर्ट में साइमन टिस्डॉल ने नेतन्याहू की युद्ध-नीति को लेकर एक गंभीर और चेतावनी भरा लेख लिखा है। उनके अनुसार, नेतन्याहू की असल रणनीति संघर्ष-विराम नहीं बल्कि स्थायी युद्ध है। एक ऐसी जंग जो कभी खत्म न हो।
टिस्डॉल के मुताबिक, नेतन्याहू द्वारा ईरानी जनता से अपील कि वे अपनी सरकार के खिलाफ खड़े हों, महज़ एक छलावा है। उसे ईरानी जनता की आज़ादी की चिंता नहीं, बल्कि उसका असली उद्देश्य है ईरान को ऐसा बना देना कि वह हमेशा कमजोर, अस्थिर और बाहरी दबाव के आगे झुका रहे। ठीक वैसा ही जैसा हर साम्राज्यवादी ताक़त चाहती है।
इस विश्लेषण में यह भी कहा गया है कि नेतन्याहू का राजनीतिक अस्तित्व युद्ध पर ही टिका है। अगर जंग रुक जाए, तो उसके हाथ से सत्ता, लोकप्रियता और कानूनी सुरक्षा तीनों फिसल सकते हैं। इसलिए वह युद्ध को अपनी ढाल बनाकर हर बार नए मोर्चे खोलता है।
लेखक याद दिलाते हैं कि किस तरह नेतन्याहू ने गज़ा में जब एकतरफा संघर्ष-विराम हुआ था, तो उसने खुद ही उसे तोड़ दिया। आज वह ग़ज़ा पर रोज़ बम गिरा रहा है, आम फ़िलिस्तीनी नागरिक मारे जा रहे हैं, और साथ ही वह सीरिया व लेबनान पर भी लगातार हमले कर रहा है।
इस पूरे परिप्रेक्ष्य में लेखक सवाल उठाते हैं: जब नेतन्याहू ग़ज़ा, सीरिया और लेबनान में भीषण युद्ध छेड़ चुका है, तो हमें कैसे भरोसा हो कि वह ईरान के साथ नरमी बरतेगा?
टिस्डॉल का साफ़ संदेश है — नेतन्याहू की युद्ध मशीन को न अमन चाहिए, न स्थिरता। उसे चाहिए एक अंतहीन जंग, ताकि वह खुद बचा रहे।

