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ईरानी दुश्मन के साथ कोई युद्ध-विराम समझौता मौजूद नहीं है: अराक़ची

ईरानी दुश्मन के साथ कोई युद्ध-विराम समझौता मौजूद नहीं है: अराक़ची

ईरान के विदेश मंत्री सैयद अब्बास अराक़ची ने फाइनेंशियल टाइम्स को दिए गए इंटरव्यू में कहा कि, ईरान और दुश्मनों के बीच किसी भी तरह का औपचारिक युद्ध-विराम नहीं हुआ है। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, “हर चीज़ दोबारा शुरू हो सकती है। वे फिर से हमला कर सकते हैं, हम भी जवाब दे सकते हैं। कोई भी औपचारिक युद्ध-विराम मौजूद नहीं है, और सिर्फ ईरान ही नहीं है जिसे चिंतित होना चाहिए।”

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि, ईरान का परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण है। “हमारी परमाणु सुविधाओं को गंभीर नुकसान हुआ है, लेकिन हमारे पास तकनीक है, और तकनीक बम से नष्ट नहीं होती।”

अवा न्यूज़ एजेंसी के मुताबिक, अराक़ची ने इज़रायल और अमेरिका के हमलों की तरफ़ इशारा करते हुए कहा:
हमने यूरेनियम संवर्धन के अधिकार के लिए बड़ी क़ुर्बानियाँ दी हैं। प्रतिबंधों को झेला है, हमारे वैज्ञानिकों की हत्या की गई है, 12 दिनों तक हमने युद्ध किया और 1000 से ज्यादा लोग शहीद हुए। इसलिए अब हम अपने अधिकार से पीछे नहीं हट सकते। 60% यूरेनियम भंडार को लेकर उन्होंने कहा कि, बमबारी के कारण उन्हें सटीक जानकारी नहीं है। “मैं ईमानदारी से कहता हूं कि मुझे नहीं पता। ये उन स्थानों पर रखे थे जो बमबारी में तबाह हो चुके हैं।”

परमाणु वार्ता की बहाली पर उन्होंने साफ़ कहा:
“हम इसलिए बातचीत करते हैं ताकि उन्हें समझाया जा सके कि ‘शून्य संवर्धन’ संभव नहीं है। जब तक वे इस पर अड़े रहेंगे, कोई समझौता नहीं हो सकता।”

उन्होंने यूरोप को चेतावनी दी कि,
अगर यूरोपीय देश ‘ट्रिगर मैकेनिज़्म’ को सक्रिय करते हैं, तो वो खुद को वार्ता से बाहर कर लेंगे। फिर हम उनसे परमाणु मुद्दों पर बातचीत नहीं करेंगे। अराक़ची ने यह भी बताया कि ट्रंप के विशेष दूत वेटकॉफ ने सीधे और परोक्ष रूप से युद्ध के दौरान और बाद में बातचीत का प्रस्ताव दिया।

“अगर अमेरिका की असली चिंता यह है कि, ईरान कभी परमाणु हथियार न बनाए, तो यह आश्वासन दिया जा सकता है। हमारा कार्यक्रम पूरी तरह शांतिपूर्ण है और हम यह भरोसा साझा करने को तैयार हैं। आख़िर में उन्होंने बताया कि, ईरान के अंदर भी अब बातचीत को लेकर दबाव है। लोग मुझसे कहते हैं कि अब अपना और हमारा वक्त बर्बाद मत कीजिए, उनकी चालों में मत आइए। उनका असली मक़सद कुछ और होता है। ऐसे माहौल में लोगों को यक़ीन दिलाना बहुत मुश्किल है कि, बातचीत से समाधान निकल सकता है।”

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