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सीरिया-इज़रायल संबंध स्थापित करने के बहाने मिडल ईस्ट में फिर साज़िश

सीरिया-इज़रायल संबंध स्थापित करने के बहाने मिडल ईस्ट में फिर साज़िश

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर मध्य पूर्व की सियासत में हलचल मचा दी है। फ़ार्स न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, ट्रंप ने दावा किया है कि, वे सीरिया और इज़रायल के बीच संबंध स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं। यह बयान ऐसे समय में आया है जब उन्होंने सीरियाई विद्रोही गुट “हयात तहरीर अल-शाम” के सरग़ना अबू मोहम्मद अल-जूलानी से मुलाकात की — वही जूलानी जिसे कभी अमेरिका ने आतंकी घोषित किया था और जिसके सिर पर 10 मिलियन डॉलर का इनाम रखा था।

विश्लेषकों का कहना है कि डोनाल्ड ट्रंप की यह “शांति पहल” दरअसल एक नया भू-राजनीतिक खेल है। अमेरिका का मक़सद सीरिया को ईरान-विरोधी धुरी में शामिल करना और इज़रायल की सुरक्षा को और मजबूत करना है। रशा टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रंप ने यह भी कहा कि वे “इज़रायल के साथ मिलकर सीरिया के साथ एक समझौते” पर काम कर रहे हैं — यानी सीरिया की संप्रभुता पर खुला अमेरिकी हस्तक्षेप।

पिछले एक दशक में वॉशिंगटन ने सीरिया में जो किया, वह सबके सामने है: पहले विद्रोही गुटों को हथियार और आर्थिक मदद दी, फिर उन्हीं को आतंकवादी घोषित किया, और अब उन्हीं के ज़रिए सीरिया की सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश की जा रही है।

ट्रंप का यह नया रुख दरअसल उसी पुरानी अमेरिकी नीति का हिस्सा है जिसमें “शांति” के नाम पर कब्ज़े की राजनीति छिपी होती है। वॉशिंगटन हर जंग का ठेकेदार और हर सुलह का व्यापारी बनना चाहता है। सीरिया के लिए इसका मतलब साफ है — एक और साज़िश, एक और दबाव, और एक और कोशिश उसे ईरान से दूर करने की। इस पूरे घटनाक्रम से साफ है कि अमेरिका के लिए “मिडल ईस्ट में अमन” केवल एक कूटनीतिक जुमला है, असल मक़सद क्षेत्र में अपने हितों को बचाना और इज़रायल को केंद्र में रखकर नई सियासी बाज़ी खेलना है।

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