मोसाद जैसी एजेंसी, ईरानी ऑपरेशन के सामने बेनक़ाब: अल-मयादीन
मशहूर अरब मीडिया चैनल अल-मयादीन ने ईरान की हालिया खुफिया कार्रवाई का विश्लेषण करते हुए कहा है कि यह सिर्फ एक सामान्य सुरक्षा सेंध नहीं थी, बल्कि यह इज़रायली खुफिया एजेंसी ‘मोसाद’ की दशकों पुरानी ताक़त और डर के प्रतीक की बुनियादों पर एक विनाशकारी प्रहार था। रिपोर्ट में कहा गया कि इस ऑपरेशन के ज़रिए ईरान ने बहुस्तरीय प्रतिरोध की नई रणनीतिक परिभाषा तय की है।
खुफिया दस्तावेज़ों की जब्ती,एक रणनीतिक भूकंप
महमूद अल-असअद ने लिखा कि यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं कि ईरान की खुफिया एजेंसी द्वारा अंजाम दिया गया यह ऑपरेशन इज़रायल के लिए एक “रणनीतिक भूकंप” है। ईरान के राष्ट्रीय मीडिया के अनुसार, इस ऑपरेशन में हज़ारों अति गोपनीय दस्तावेज़, विशेष रूप से इज़रायल की परमाणु परियोजनाओं और संवेदनशील परमाणु स्थलों से जुड़े, पूरी सुरक्षा के साथ ईरान स्थानांतरित किए गए।
घोषणा का समय और पृष्ठभूमि
यह खुलासा उस समय हुआ जब अमेरिका और ईरान के बीच पांचवें दौर की वार्ता समाप्त हुए दो सप्ताह ही हुए थे। इन वार्ताओं में अमेरिका ने ओमान के ज़रिए एक प्रस्ताव भेजा था, जिसमें ईरान से यूरेनियम संवर्धन रोकने और विदेश में एक क्षेत्रीय संवर्धन केंद्र बनाने का सुझाव था। ईरान ने इसे “काल्पनिक”, “एकतरफा” और “अव्यवहारिक” बताया।
ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह खामेनेई ने इस प्रस्ताव को देश की संप्रभुता और राष्ट्रीय हितों के ख़िलाफ़ करार दिया। उधर, इस ऑपरेशन की घोषणा IAEA (अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी) की गवर्निंग बोर्ड बैठक से ठीक पहले की गई, जिसमें यूरोपीय देश ईरान के खिलाफ प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रहे थे। ईरान ने IAEA प्रमुख राफाएल ग्रोसी की रिपोर्ट को “पूर्वाग्रही और इज़रायली सूचना आधारित” बताया।
संदेश और रणनीतिक परिणाम
महमूद अल-असद ने ऑपरेशन के छह अहम संदेशों और संभावित असर की बात कही:
1-सैन्य प्रतिरोध का संदेश
अगर अमेरिका और इज़रायल ने ईरान के परमाणु स्थलों पर हमला करने की योजना बनाई, तो ईरान के पास अब इज़रायली परमाणु स्थलों की सटीक जानकारी है और वह जवाबी कार्रवाई करने में सक्षम है।
2-राजनीतिक दबाव का जवाब
यह ऑपरेशन ईरान को वार्ता में ऊपरी स्थिति में लाता है और अमेरिका को एकतरफा प्रस्ताव थोपने के बजाय व्यावहारिक समाधान खोजने पर मजबूर करता है।
3-क़ानूनी दबाव
इज़रायल का परमाणु कार्यक्रम, जिसे वह हमेशा छुपाता रहा है, अब IAEA के सामने उजागर हो सकता है, जिससे पश्चिमी देशों को दोहरा रवैया छोड़ना पड़ेगा।
4-क्षेत्रीय प्रभाव
इज़रायली परमाणु खतरे का खुलासा अरब और इस्लामी देशों के लिए चेतावनी होगा, जिससे इज़रायल की क्षेत्रीय स्थिति कमज़ोर होगी।
5-तकनीकी व खुफिया प्रभुत्व
यह ऑपरेशन तकनीकी रूप से बेहद उन्नत था और यूक्रेन या लेबनान में हुए हालिया ऑपरेशनों से भी बड़ा साबित हुआ है।
6-इज़रायल के अंदर का संकट
यह घटना इज़रायल की आंतरिक राजनीति, सेना और सुरक्षा एजेंसियों में अविश्वास और टकराव को और गहरा करेगी, जिससे नेतन्याहू सरकार की स्थिति और भी डगमगाएगी।यह अभूतपूर्व खुफिया अभियान ईरान के लिए एक शानदार जीत और इज़रायल के लिए एक शर्मनाक पराजय है। मोसाद जैसी एजेंसी, जिसे दशकों से अजेय माना जाता रहा है, अब ईरानी ऑपरेशन के सामने बेनकाब हो चुकी है।

