अधिकतर लेबनानी जनता, हिज़्बुल्लाह के हथियार सौंपने के ख़िलाफ़
एक ताज़ा सर्वेक्षण ने दिखा दिया है कि, लेबनान की जनता अब पूरी तरह जागरूक है और हिज़्बुल्लाह के हथियार सौंपने के ख़िलाफ़ है। असलियत यह है कि इज़रायल और उसके समर्थक अमेरिका ने बार-बार लेबनान पर हमले किए, ज़मीनें क़ब्ज़ा किया और फिर “हथियार छोड़ो” जैसी बातें कर, दुनिया को गुमराह करने की कोशिश की।
पत्रिका (अंतरराष्ट्रीय डेटा मैगज़ीन) के इस सर्वेक्षण में साफ़ हुआ कि 58% से अधिक लेबनानी तब तक हिज़्बुल्लाह के हथियार सौंपने के विरोधी हैं, जब तक इज़रायल अपने क़ब्ज़े से पीछे न हटे और हमले बंद न करे। यह इस बात का सबूत है कि, लेबनान की जनता को इज़रायल और अमेरिका की असली चाल समझ में आ चुकी है।
सबसे मज़बूत विरोध शिया समुदाय की ओर से दर्ज किया गया, जिनमें 96% से अधिक ने हथियार सौंपने का विरोध किया। द्रूज़ और मारोनी समुदाय के बड़े हिस्से ने भी यही रुख़ दिखाया। इसका मतलब है कि लेबनान की अलग-अलग कौमें इज़रायल की चालबाज़ियों को पहचान चुकी हैं।
63% प्रतिभागियों ने साफ़ कहा कि अगर सरकार, समय-सीमा तय कर भी दे, तब भी हथियार सौंपने से इज़रायल न पीछे हटेगा और न ही हमले रोकेगा। यही अमेरिका-इज़रायल की राजनीति है—दूसरों से हथियार फेंकवाओ और फिर उन पर हमला जारी रखो।
81% से ज़्यादा लोगों ने कहा कि हिज़्बुल्लाह बिना किसी ठोस गारंटी के कभी भी हथियार नहीं छोड़ेगा। और 54% का मानना है कि लेबनानी सेना भी हिज़्बुल्लाह के ख़िलाफ़ टकराव में नहीं जाएगी। असल सवाल यह है: जब अमेरिका खुद पूरी दुनिया में हथियार बेचकर युद्ध फैलाता है, और इज़रायल हर बार युद्ध-विराम तोड़कर लेबनान पर हमला करता है, तो क्या लेबनान की जनता अपने अकेले सहारे—यानी “प्रतिरोध के हथियार”—को छोड़ देगी? जवाब साफ़ है: कभी नहीं।

