पत्रकारों को ग़ाज़ा में प्रवेश की इजाज़त मिलनी चाहिए: फ्रांस
इज़रायल द्वारा ग़ाज़ा पर जारी क्रूर हमलों और जनसंहार को 654 दिन बीत चुके हैं। इस पूरे समय के दौरान ग़ाज़ा पर मीडिया की स्वतंत्र पहुंच न होने के कारण अंतरराष्ट्रीय समुदाय को वहां की असली तस्वीर देखने नहीं मिल पा रही है। ऐसे में अब फ्रांसीसी विदेश मंत्री जीन नोएल बैरट ने पहली बार खुलकर इस मुद्दे पर आवाज़ उठाई है। उन्होंने ग़ाज़ा में पत्रकारों की “स्वतंत्र और निष्पक्ष एंट्री” की मांग की है। उन्होंने कहा, पत्रकारों को जाने दीजिए, ताकि सच्चाई सामने आए।
फ्रांसीसी रेडियो को दिए एक इंटरव्यू में बारो ने साफ़ कहा:
“ग़ाज़ा में जो कुछ भी हो रहा है, उसे जानने और दिखाने का हक़ दुनिया को है। पत्रकारों को वहां जाने से रोकना, सच्चाई को दबाने जैसा है। हमें स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारों को ग़ाज़ा में प्रवेश देने की जरूरत है ताकि वे दिखा सकें कि ज़मीन पर असलियत क्या है।”
ग़ाज़ा: दुनिया का सबसे भूखा इलाका
ग़ाज़ा के हालात अब इस कदर बिगड़ चुके हैं कि संयुक्त राष्ट्र की मानवीय संस्था OCHA ने हाल ही में बयान दिया: “ग़ाज़ा के लोग फिलहाल धरती पर सबसे ज़्यादा भूखे इंसान हैं। लगातार बमबारी, नाकाबंदी और राहत सामग्री की बंद आपूर्ति के चलते ग़ाज़ा में न तो खाना है, न पानी, न दवा। बच्चों और महिलाओं की मौत अब भूख और इलाज की कमी से हो रही है।
रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स का बयान:
ग़ाज़ा पत्रकारों के लिए नर्क बन चुका है। मीडिया संस्था रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स (RSF) ने कहा है कि इज़रायली हमलों के कारण ग़ाज़ा पत्रकारों के लिए दुनिया का सबसे ख़तरनाक इलाक़ा बन गया है। अब तक कई स्थानीय और विदेशी पत्रकार मारे जा चुके हैं, जबकि सैकड़ों घायल हुए हैं।
फ्रांस ने AFP के स्टाफ को निकालने की तैयारी की
बारो ने इस इंटरव्यू में यह भी बताया कि फ्रांस सरकार एजेंस फ्रांस-प्रेसे (AFP) के कुछ स्थानीय कर्मचारियों को ग़ाज़ा से बाहर निकालने की कोशिश में है। “हमें उम्मीद है कि अगले कुछ हफ्तों में हम अपने कुछ पत्रकार साथियों को ग़ाज़ा से सुरक्षित निकाल सकेंगे।”
फ्रांस की दोहरी भूमिका पर सवाल
हालांकि, फ्रांस की इस लेट-लतीफ़ प्रतिक्रिया और कथनी-करनी पर सवाल उठ रहे हैं। यह वही फ्रांस है जिसके राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, ग़ाज़ा में नरसंहार शुरू होने के कुछ ही हफ्तों बाद इज़रायल गए थे और वहां बेंजामिन नेतन्याहू को गले लगाया था — बिल्कुल वैसा ही जैसा जो बाइडेन ने किया था।
क्या अब पश्चिम जागेगा?
फ्रांस के विदेश मंत्री का यह बयान ऐसे समय पर आया है जब ग़ाज़ा में इंसानियत का दम घुट रहा है, और दुनिया की बड़ी मीडिया एजेंसियां भी सीमित या झूठी जानकारी के सहारे अपनी रिपोर्टिंग कर रही हैं। ऐसे में सवाल यह है कि क्या फ्रांस की यह मांग सिर्फ प्रतीकात्मक है या वाकई में वो इज़रायल पर पत्रकारों की एंट्री को लेकर कोई ठोस दबाव बनाएगा?

