इज़रायल का मक़सद हमास को ख़त्म करना नहीं बल्कि ग़ाज़ा पर क़ब्ज़ा करना है
ग़ाज़ा पर इजरायल की बर्बरता और बमबारी 29 दिनों से जारी है, इज़रायली सेना ग़ाज़ा पर लगातार और अंधाधुंध बमबारी कर रही है। उसको इससे कोई मतलब नहीं कि, उसकी इस क्रूरता से कितने मासूम बच्चे मर रहे हैं। कितनी औरतों की गोद उजड़ रही है और कितनी औरतें विधवा हो रही हैं। इजरायल के अत्याचारों को देखकर ऐसा लगता है कि उसका मक़सद हमास को ख़त्म करना नहीं है बल्कि ग़ाज़ा को तबाह करके उस पर क़ब्ज़ा करना है।
उसने फ़िलिस्तीनियों पर यह अत्याचार पहली बार नहीं किया है बल्कि इस से पहले भी वह लगातार फ़िलिस्तीनियों पर अत्याचार करता रहता था। हमास के बहाने वह वह खुल्लम खुल्ला आतंकवाद को अंजाम दे रहा है, जिसमें यूरोपीय संघ खुलकर उसका समर्थन कर रहे हैं जबकि यही यूरोपीय संघ, अमेरिका, रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले की निंदा कर रहे थे। उस वक़्त यही महान शक्तियां यूक्रेन के मज़लूम और बेक़सूर लोगों के मारे जाने पर ज़ोर ज़ोर से चिल्ला रहे थे। और मानवता की दोहाइयाँ दे रहे थे।
कहां चली गई वह मानवता ? कहां दब गईं वह आवाज़ें जो यूक्रेन के घायलों पर उठ रही थीं ? कहां गए वह लोग जिन्हें रूस का हमला इंसानियत के विरुद्ध लग रहा था ? क्या उन्हें इज़रायल का अत्याचार दिखाई नहीं दे रहा? क्या उन्हें मासूम बच्चों की लाशें नज़र नहीं आ रहीं? क्या उन्हें मलबे के ढेर में दबे वह लोग नज़र नहीं आ रहे हैं जिनकी लाशें चीख़ चीख़ कर कह रही हैं कि हमारी ग़लती क्या थी ? हमें क्यों मार दिया गया ? और हमारी मौत पूरी दुनियां ख़ामोश क्यों है ? कहां गए वह अरब देश जो हमारा साथ देने की बात करते थे ? क्या उनका वादा खोखला और झूठा था ?
क्या इज़रायल के अत्याचार को रोकने वाला कोई नहीं है? क्या हमारी ज़िन्दगी की कोई क़ीमत नहीं थी ? क्यों हमें मौत के घाट उतार दिया गया ? और क्यों हमारी ज़मीन पर नाजायज़ क़ब्ज़ा करने वाला इज़रायल हमारे घरों को उजाड़ रहा है? इज़रायल ने हमास पर हमले के बहाने जो अत्याचार शुरू किया था वह प्रतिदिन और भयानक होता जा रहा है। इज़रायल के अत्याचार का आलम यह है कि उसके ज़ुल्म से अब अस्पताल, स्कूल, मस्जिद, शरणार्थी शिविर, एम्बुलेंस और यहां तक कि कब्रिस्तान भी सुरक्षित नहीं हैं। वह कायरता पूर्वक इन स्थानों पर भी लगातार हमला कर रहा है।
इज़रायल के अत्याचार से साफ़ प्रतीत हो रहा है कि वह ग़ाज़ा को फ़िलिस्तीनियों से ख़ाली करके पूरे फ़िलिस्तीन पर एकतरफ़ा क़ब्ज़ा करना चाह रहा , उसके इस घिनौने अपराध में अमेरिका,ब्रिटेन, फ्रांस के साथ साथ वह इस्लामिक देश भी शामिल हैं जो ख़ामोश बैठे तमाशा देख रहे हैं। या फिर केवल बयान देकर औपचारिकता पूरी कर रहे हैं। अब चाहे वह तुर्की हो या सऊदी अरब, या फिर दुबई और बहरैन हों। जबकि इन देशों की जनता खुलकर फ़िलिस्तीन का समर्थन कर रही है और इज़रायल के ख़िलाफ़ सड़कों पर उतर कर विरोध प्रदर्शन कर रही है, यहां तक कि अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस में भी हज़ारों की संख्या में लोग इज़रायल के अत्याचार के विरुद्ध, विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए IscPress उत्तरदायी नहीं है।