इज़रायली सेना का ग़ाज़ा निवासियों को तुरंत पूरा शहर ख़ाली करने का आदेश
एक तरफ अमेरिका, ग़ाज़ा पट्टी में जल्द से जल्द सीज़फायर कराने की बात कर रहा है तो दूसरी तरफ इज़रायली सेना का ग़ाज़ा में अत्याचार लगातार बढ़ता जा रहा है। ग़ाज़ा में लगातार नरसंहार करने के बाद इज़रायल ने ग़ाज़ा के लिए नया आदेश जारी किया है। इज़रायली सेना ने आज (मंगलवार) अपनी जारी हिंसक कार्रवाइयों के बीच ग़ाज़ा शहर के सभी निवासियों से अपील की कि वे तुरंत शहर को छोड़कर दक्षिण की ओर चले जाएं।
इज़रायली सेना के हालिया आदेश ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि ग़ाज़ा के लोग न सिर्फ़ अपने घरों से बेदख़ल किए जा रहे हैं बल्कि उनकी ज़िन्दगी भी पूरी तरह असुरक्षित बना दी गई है। पूरा शहर खाली करने का हुक्म देना दरअसल एक सुनियोजित साज़िश है जिसका मक़सद इंसानों को इंसानियत से महरूम करना और एक पूरे क़ौम को उनकी ज़मीन से मिटा देना है।
अब कहाँ जाएं ग़ाज़ा निवासी??
सवाल यह है कि जिन मासूमों के लिए कोई सुरक्षित जगह बाक़ी ही नहीं छोड़ी गई, वह कहाँ जाएँ? मस्जिदें, स्कूल, अस्पताल और शरणार्थी कैम्प—सब जगहों पर इज़रायली बम बरस चुके हैं। कौन सी ऐसी जगह है जहां इज़रायली सेना ने क़त्ले आम नहीं किया है ? इज़रायली सेना ने शरणार्थी शिविरों में पनाह लेने वालों का भी नरसंहार किया है। खाने की लाइन में लगे बच्चों को बेरहमी से मार डाला।
हमास को ख़त्म करने का झूठा दावा
इज़रायली फौज का यह दावा कि वे “हमास का खात्मा” कर रहे हैं, पूरी तरह झूठ और धोखा है। सच तो यह है कि उनकी बंदूकें, टैंक और जहाज़ आम नागरिकों पर तनी हुई हैं। मासूम बच्चों को खाने की लाइन में कतारबद्ध देख कर उन पर गोली बरसाना इस बात का सबूत है कि यह जंग किसी संगठन के ख़िलाफ़ नहीं बल्कि पूरी इंसानियत के ख़िलाफ़ छेड़ी गई है।
ग़ाज़ा के बेघर लोग, जो पहले ही मलबों में रात गुज़ार रहे हैं, अब उन्हें और भी अंधेरे में धकेला जा रहा है। न बिजली, न पानी, न खाना और न ही दवाइयाँ—यह हालात किसी प्राकृतिक आपदा से पैदा नहीं हुए बल्कि इज़रायली नीतियों और अमेरिकी सरपरस्ती का सीधा नतीजा हैं। यह एक सुनियोजित नरसंहार है जिसे दुनिया के सामने “रक्षा” और “सुरक्षा” के नाम पर जायज़ ठहराने की कोशिश की जाती है।
संयुक्त राष्ट्र सिर्फ़ बयानबाज़ी तक सीमित
संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ सिर्फ़ बयानबाज़ी तक सीमित हैं, लेकिन ग़ाज़ा की ज़मीन पर खून की नदियाँ बह रही हैं। ज़ायोनी हुकूमत ने हर उस जगह को निशाना बनाया है जहाँ इंसान जीने की उम्मीद लिए इकट्ठा होते हैं। शरणार्थी कैंप, जो अमन और राहत की निशानी होते हैं, वहां भी सिर्फ़ लाशें और ख़ून बिखरा हुआ है।
फ़ार्स न्यूज़ इंटरनेशनल डेस्क के अनुसार, इज़रायली सेना ने एक बयान जारी कर कहा कि, ग़ाज़ा शहर के लोग अल-रशीद मार्ग से दक्षिण की ओर निकलें। सेना ने दावा किया कि हमास के खिलाफ अभियान के लिए वह ग़ाज़ा शहर में बड़े पैमाने पर काम करेगी, जैसे कि नॉर्दर्न ग़ाज़ा के अन्य इलाक़ों में किया गया है।
बयान में कहा गया: “ग़ाज़ा शहर के सभी नागरिकों और वहां मौजूद लोगों से — चाहे वे पुराने शहर और तुफ़ाह (पूर्व) से हों या समुद्र (पश्चिम) से — कहा जाता है कि वे तुरंत शहर खाली करें।” रशिया टुडे (RT) के अनुसार, इज़रायली सेना ने आगे चेतावनी दी: “जल्द से जल्द अल-रशीद मार्ग से अल-मवासी क्षेत्र में बने तथाकथित ‘मानवीय क्षेत्र’ की ओर चले जाएं। इस इलाके में रहना बेहद ख़तरनाक है।”
इसी बीच, इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने भी ग़ाज़ा निवासियों से शहर छोड़ने की अपील की। उन्होंने सोमवार को दावा किया कि सिर्फ दो दिनों में ग़ाज़ा के 50 टावर ध्वस्त किए गए हैं और यह तो सिर्फ शुरुआत है। हालाँकि नेतन्याहू ने यह नहीं बताया कि, इस कार्यवाई में उन्होंने कितने बेगुनाहों को मार डाला।

