ग़ाज़ा पट्टी के मध्य क्षेत्र “अल-जुवैदा” में रविवार को इज़रायल ने एक कॉफ़ी हाउस को निशाना बनाकर हवाई हमला किया, जिसमें पाँच बेगुनाह फ़िलिस्तीनी नागरिक शहीद और कई अन्य घायल हो गए। यह हमला उस समय हुआ जब ग़ाज़ा में कथित युद्ध-विराम लागू था, इसलिए इसे समझौते का साफ़ उल्लंघन और अमानवीय आक्रमण माना जा रहा है। स्थानीय सूत्रों के अनुसार, जिस स्थान पर बम गिराया गया, वहाँ आम नागरिक आपसी बातचीत में मशगूल थे — कोई सैन्य ठिकाना नहीं था।
बचाव दलों ने घंटों की मशक्कत के बाद मलबे से शव और घायलों को निकाला। कई घायलों की हालत गंभीर बताई जा रही है। ग़ाज़ा के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, युद्ध-विराम लागू होने के बाद से अब तक इज़रायल के हमलों में 35 नागरिक शहीद और 146 घायल हो चुके हैं। मंत्रालय ने चेतावनी दी है कि, अगर इज़रायल की आक्रामकता नहीं रुकी, तो ग़ाज़ा में मानवीय स्थिति और भयानक हो जाएगी।
यह कोई पहली घटना नहीं है। कुछ दिन पहले भी इज़रायली हमले में 11 नागरिकों की जान गई थी, जिनमें बच्चे और महिलाएँ शामिल थीं। लगातार हो रहे इन हमलों ने युद्ध-विराम की विश्वसनीयता को पूरी तरह मिटा दिया है। नागरिक इलाक़ों, बाज़ारों और आश्रयों पर की जा रही बमबारी से यह स्पष्ट है कि इज़रायल का असली निशाना फ़िलिस्तीनी जनता ही है।
मानवाधिकार संगठनों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इज़रायल की इस हिंसा की कड़ी निंदा की है और कहा है कि यह युद्ध अपराध के ज़िम्मे में आता है। लेकिन अब सवाल यह है कि अंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ सिर्फ़ “चिंता” जताकर कब तक इस अत्याचार को नज़रअंदाज़ करती रहेंगी? जब तक दुनिया इज़रायल को जवाबदेह नहीं ठहराती, तब तक ग़ाज़ा की धरती पर निर्दोष लोगों का ख़ून बहता रहेगा — और “युद्ध-विराम” शब्द सिर्फ़ काग़ज़ों में ही रहेगा।

