इज़रायल दुनिया को अपनी संपत्ति समझने लगा: शाह अब्दुल्ला
अम्मान: जॉर्डन के शाह अब्दुल्ला द्वितीय ने संयुक्त राष्ट्र की 79वीं महासभा में एक महत्वपूर्ण भाषण दिया, जिसमें उन्होंने वर्तमान वैश्विक स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि मानवता के इतिहास में हमेशा से संघर्ष होते रहे हैं, लेकिन आज की स्थिति पहले से कहीं अधिक ख़तरनाक और पेचीदा है। उनका कहना था कि मौजूदा समय में जो संकट उभर रहे हैं, वे न केवल वैश्विक शांति के लिए बल्कि संयुक्त राष्ट्र जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की वैधता और भूमिका के लिए भी गंभीर खतरा बन रहे हैं।
शाह अब्दुल्ला ने खासतौर पर मध्य पूर्व और फिलिस्तीन के मुद्दे पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने इज़रायल पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि इज़रायली सरकार ने सभी नैतिक और कानूनी सीमाएं पार कर दी हैं। 7 अक्टूबर से ग़ाज़ा में इज़रायली हमलों के बारे में बात करते हुए उन्होंने इसे मानवता के खिलाफ एक बड़ा अत्याचार करार दिया। उन्होंने कहा कि इस तरह के हिंसक कृत्यों को किसी भी परिस्थिति में जायज नहीं ठहराया जा सकता।
शाह अब्दुल्ला ने स्पष्ट किया कि फिलिस्तीनी जनता 57 से अधिक वर्षों से अन्याय, अत्याचार और ज़बरन कब्जे का सामना कर रही है। इज़रायली सरकारें शांति के रास्ते को छोड़कर बार-बार टकराव का रास्ता चुनती रही हैं, क्योंकि इज़रायल खुद को एक विशेषाधिकार प्राप्त राष्ट्र मानता है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि इज़रायल की नीतियों और कार्यवाहियों ने पूरी दुनिया को एक असंतुलन और अव्यवस्था की ओर धकेल दिया है।
उन्होंने कहा कि अरब दुनिया हमेशा से शांति के बदले में इज़रायल के साथ संबंध सामान्य करने के लिए तैयार रही है, लेकिन इज़रायल ने इसके बजाय हिंसा और विवाद का मार्ग चुना। शाह अब्दुल्ला ने कहा कि यह ज़रूरी है कि इज़रायल को उसके कृत्यों के लिए जवाबदेह ठहराया जाए और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इज़रायल पर कड़ा रुख अपनाना चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र की भूमिका पर सवाल
शाह अब्दुल्ला ने संयुक्त राष्ट्र की भूमिका पर भी सवाल उठाए और कहा कि यह संगठन उन लक्ष्यों को प्राप्त करने में असमर्थ रहा है, जिनके लिए इसकी स्थापना की गई थी। उन्होंने यह भी कहा कि संयुक्त राष्ट्र की संरचना और कार्यप्रणाली में बदलाव की सख्त जरूरत है, ताकि यह वर्तमान और भविष्य के वैश्विक संकटों का प्रभावी ढंग से सामना कर सके। बता दें कि, इससे पहले सऊदी अरब के विदेशमंत्री ने भी संयुक्त राष्ट्र की कार्य प्रणाली पर प्रश्न उठाते हुए इसमें सुधार की बात कही थी।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अगर अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस स्थिति का समाधान नहीं करता, तो यह न केवल वैश्विक शांति और स्थिरता के लिए खतरा बनेगा, बल्कि नैतिक और कानूनी मूल्यों की भी भारी हानि होगी। शाह अब्दुल्ला का यह बयान वैश्विक मंच पर मध्य पूर्व के मसले को फिर से चर्चा के केंद्र में लाने का एक प्रयास माना जा रहा है।