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इज़रायल ‘ग़ाज़ा कवरेज’ पर इंटरनेशनल मीडिया से पाबंदी हटाए: UNRWA

इज़रायल ‘ग़ाज़ा कवरेज’ पर इंटरनेशनल मीडिया से पाबंदी हटाए: UNRWA

UNRWA प्रमुख ने कहा कि मीडिया पर रोक, झूठी जानकारी फैलाने वाले प्रोपेगेंडा को बढ़ावा देती है, जिससे चश्मदीदों और अंतरराष्ट्रीय मानवतावादी संगठनों की रिपोर्टों पर सवाल उठने लगते हैं। फिलिस्तीनी शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी UNRWA के प्रमुख फिलिप लाज़ारिनी ने शुक्रवार को ग़ाज़ा में अंतरराष्ट्रीय मीडिया की पहुंच पर लगे इज़रायली प्रतिबंध को तुरंत हटाने की मांग की।

उन्होंने चेतावनी दी कि सूचना पर यह blackout झूठी जानकारी और भ्रम फैलाने वाली मुहिम को बढ़ावा दे रहा है, जिससे चश्मदीदों और मानवतावादी एजेंसियों के बयानों पर विश्वास कमजोर हो रहा है।

लाज़ारिनी ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म X पर कहा कि पिछले 650 दिनों से ग़ाज़ा की मीडिया कवरेज पर रोक लगी हुई है, जबकि वहां के नागरिक लगातार ज़ुल्म और तबाही का शिकार हो रहे हैं। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि ग़ाज़ा पट्टी में अंतरराष्ट्रीय पत्रकारों को दाख़िल होने की अनुमति दी जानी चाहिए। उन्होंने बताया कि इस संघर्ष के दौरान अब तक 200 से ज़्यादा फ़िलिस्तीनी पत्रकार मारे जा चुके हैं। उनका कहना था कि मीडिया पर रोक की वजह से ग़लत सूचनाओं की मुहिम को बढ़ावा मिलता है, जिससे ज़मीनी हक़ीक़त पर आधारित रिपोर्टों और आंकड़ों की साख पर सवाल उठने लगते हैं।

ग़ाज़ा में इज़रायली नरसंहार
ग़ौरतलब है कि, ग़ाज़ा पट्टी में पिछले 21 महीनों से जारी इज़रायली हमलों में अब तक 59 हज़ार से ज़्यादा फ़िलिस्तीनी मारे जा चुके हैं, जिनमें बड़ी संख्या में बच्चे और महिलाएं शामिल हैं। मानवाधिकार विशेषज्ञों का मानना है कि वास्तविक मौतों का आंकड़ा ग़ाज़ा प्रशासन की ओर से जारी रिपोर्ट से कहीं ज़्यादा — लगभग दो लाख के क़रीब हो सकता है। इस नरसंहार के दौरान इज़रायल ने ग़ाज़ा के ज़्यादातर इलाकों को मलबे में बदल दिया है और वहां की लगभग 22 लाख की आबादी को बेघर कर दिया है। इसके अलावा, ज़रूरी मानवीय राहत सामग्री की आपूर्ति भी रोक दी गई है, जिससे इलाके में भयानक मानव संकट पैदा हो गया है।

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