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यमन पर अमेरिका का हमला, युद्ध को दूसरे देशों में फैलाने की साज़िश तो नहीं ?”

यमन पर अमेरिका का हमला, युद्ध को दूसरे देशों में फैलाने की साज़िश तो नहीं ?”

इज़रायल-हमास युद्ध के तीन महीने पूरे हो चुके हैं। इस युद्ध में ग़ाज़ा पट्टी के 23000 आम नागरिक मारे जा चुके हैं, जिनमें 8 हज़ार से ज़्यादा मासूम बच्चे शामिल हैं। घायलों की संख्या 55 हज़ार से ज़्यादा है। ग़ाज़ा पट्टी पर इज़रायली हमले की लगातार आलोचना हो रही है। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, समेत सभी यूरोपीय देशों की जनता अपनी ही सरकार के विरुद्ध अपने देशों में विरोध प्रदर्शन कर रही है।

इन सभी यूरोपीय देशों की जनता इज़रायली हमले को फ़िलिस्तीनियों का नरसंहार बता रही है। साथ ही साथ अपनी सरकार के विरूद्ध भी विरोध प्रदर्शन कर रही है। अमेरिका में बाइडेन सरकार के प्रति वहां की जनता में ज़बरदस्त आक्रोश पाया जा रहा है। अमेरिका और ब्रिटेन की जनता ने अपनी अपनी सरकार से ग़ाज़ा पट्टी में फिलिस्तीनियों के नरसंहार और इज़रायल की सहायता तुरंत बंद करने की मांग की है।

अमेरिका और ब्रिटेन जो यूक्रेन युद्ध में रूस को युद्ध अपराधी बता रहे थे अब खुलकर फिलिस्तीनियों के नरसंहार में इज़रायल का समर्थन कर रहे हैं। खुद को शांतिप्रिय बताने वाले और आतंकवाद को, इस्लामिक आतंकवाद बताने वाले खुल्लम खुल्ला इज़रायली आतंकवाद और इज़रायली अत्याचार में शामिल हो गए हैं।

प्रश्न यह उठता है कि अमेरिका और ब्रिटेन, यमन पर हमला क्यों कर रहे हैं? क्या ग़ाज़ा पट्टी का युद्ध वह पूरी दुनिया में फैलाना चाहता है? क्या वह पूरी दुनियां से शांति ख़त्म कर देना चाहता है? क्या वह इज़रायल के सामने बेबस है? अमेरिका अगर आतंकवाद का विरोधी है तो वह इज़रायली आतंकवाद पर खामोश क्यों है? जबकि अमेरिका की जनता इस मुद्दे पर बाइडेन सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन कर रही है।

इतना तो तय है कि ग़ाज़ा पट्टी पर इज़रायली हमला, और वहां के बच्चों, बूढ़ों, महिलाओं पर वहशियाना हमले या तो अमेरिका के इशारे पर हो रहा है, या फिर अमेरिका खुद इस प्रकार के नरसंहार का समर्थक है, वर्ना वह बार-बार संयुक्त राष्ट्र द्वारा युद्ध-विराम प्रस्ताव को वीटो द्वारा रोक नहीं लगाता। यह भी ग़ौर करने वाली बात है कि अमेरिकी रष्ट्रपति बाइडेन एक तरफ तो इज़रायल से यह कहते हैं कि इस युद्ध से हमारे विरुद्ध जनता में आक्रोश बढ़ जाएगा दूसरी तरफ वह ब्रिटेन के साथ मिलकर यमन पर हमला कर देते हैं।

अब सभी के दिमाग़ में यही प्रश्न उठ रहा है कि यमन पर हमले का मक़सद क्या है? अमेरिका का मक़सद शांति स्थापित करना है या फिर पूरी दुनिया से शांति भांग करना? अगर उसने यह हमला, लाल सागर में हूतियों द्वारा अमेरिकी, इज़रायली जहांजों को निशाना बनाए जाने के विरोध में किया है तो फिर उसने इज़रायल पर दबाव बनाकर युद्ध समाप्त क्यों नहीं किया? क्योंकि हूतियों ने अमेरिकी, इज़रायली जहाजों पर हमले, ग़ाज़ा पट्टी के आम नागरिकों के नरसंहार के विरोध में किए हैं।

ग़ाज़ा पट्टी में युद्ध रोकने की जगह, अमेरिका का यमन पर हमला यह सिद्ध करता है कि अमेरिका का मक़सद फिलिस्तीनी राष्ट्र नाम की चीज़ को समाप्त करना है। इसी बात की तरफ़ ईरान के सर्वोच्च धर्मगुरु आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने इशारा किया था कि, ग़ाज़ा पट्टी पर हमला, अमेरिका के इशारे पर किया गया है।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए IscPress उत्तरदायी नहीं है।

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