ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई का हज के मौके पर हाजियों को संदेश
ईरान: आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने हज करने वालों को एक संदेश में, एकता और आध्यात्मिकता को हज के दो मौलिक स्तंभ और इस्लामी उम्मत की गरिमा और सुख के दो कारकों के रूप में वर्णित किया और जागरूकता और स्वच्छंदता के इस्लामी उदय और मुकाबले के उदाहरणीय प्रभावों पर जोर देते हुए कहा, पश्चिमी अहंकार दुनिया में हमारे संवेदनशील क्षेत्र में और हाल ही में पूरी दुनिया में दिन प्रतिदिन कमजोर हो रहा है, तथापि दुश्मन की चाल को कभी भी अनदेखा नहीं करना चाहिए और हमें प्रयास और सतर्कता के साथ, भविष्य बनाने के लिए सबसे बड़ी पूंजी, उम्मीद और आत्मविश्वास, बढ़ाना चाहिए।
इस्लामी क्रांति के नेता का संदेश, शुक्रवार को हुज्जत-उल-इस्लाम वल-मुस्लिमीन नवाब (हज और तीर्थयात्रा के मामलों में सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि और ईरानी तीर्थयात्रियों के प्रमुख) ने मैदाने अरफ़ात में पढ़ा, जो इस प्रकार है:
बिस्मिल्लाह-अर्रहमान-अर्रहीम
सारी तारीफ़े पूरी कायनात के मालिक के लिए, अल्लाह का दुरूद व सलाम हो सबसे अज़ीम पैग़म्बर मोहम्मद मुस्तफ़ा, उनकी पाक नस्ल और चुने हुए साथियों पर।इब्राहीमी हज के आम एलान और आलमी दावत ने एक बार फिर तारीख़ की गहराइयों से पूरी दुनिया को संबोधित किया और अल्लाह का ज़िक्र करने वाले मुशताक़ दिलों में हलचल मचा दी।
दावत देने वाले की आवाज़ पूरी इंसानियत के एक एक शख़्स के लिए हैः (और लोगों में हज का एलान कर दीजिए) और काबा, सभी इंसानों का मुबारक मेज़बान व मार्गदर्शक हैः (बेशक सबसे पहला घर जो लोगों (की इबादत) के लिए बनाया गया, वही है जो मक्के में है, बड़ी बर्कत वाला और पूरी कायनात के लिए मरकज़े हिदायत है।)
सभी इंसानों की तवज्जो के केन्द्रीय बिन्दु और मुख्य ध्रुव की हैसियत रखने वाला काबा और इस्लामी जगत के विविधताओं से भरे इलाक़ों की एक छोटी तस्वीर की हैसियत रखने वाला हज का प्रोग्राम, मानव समाज के उत्थान और सभी इंसानों की शांति व सुरक्षा की गारंटी बन सकता है। हज पूरी इंसानियत को रूहानी बुलंदी और अख़लाक़ी ऊंचाइयों के चरम बिंदु पर पहुंचा सकता है और यह आज के इंसान की अहम ज़रूरत है।
हज, आज और कल के इंसान की अख़लाक़ी गिरावट के लिए साम्राज्यवाद और यहूदीवाद की तरफ़ से रची गई सभी साज़िशों को नाकाम और बेअसर बना सकता है। आलमी सतह पर यह असर डालने के लिए ज़रूरी शर्त यह है कि मुसलमान पहले क़दम के तौर पर हज के हयात-बख़्श पैग़ाम को पहले ख़ुद सही तरीक़े से सुनें और उस पर अमल करने में कोई कसर न छोड़े।
इस हुक्म के बुनियादी स्तंभ एकजुटता और रूहानियत हैं। इत्तेहाद और रूहानियत इस्लामी जगत की भौतिक व आध्यात्मिक तरक़्क़ी की गारंटी है और यह पूरी दुनिया पर अपनी चमक बिखेर सकती है। एकता का मतलब वैचारिक व व्यवहारिक रिश्ता है, यह दिलों, ख़यालों और नज़रियों में निकटता पैदा होने के अर्थ में है, इसका मतलब इल्म और तजुर्बे की बुनियाद पर सहयोग है, यह इस्लामी मुल्कों के आर्थिक रिश्ते के अर्थ में है, मुस्लिम हुकूमतों के बीच आपसी भरोसे और सहयोग के अर्थ में है, यह जाने-पहचाने संयुक्त दुश्मनों के मुक़ाबले में एक दूसरे की मदद करने के अर्थ में है, एकता का मतलब यह है कि दुश्मन की ओर से तैयार की गयी साज़िश, इस्लामी मसलकों या इस्लामी दुनिया की मुख़्तलिफ़ क़ौमों, नस्लों, ज़बानों और संस्कृतियों को एक दूसरे के मुक़ाबले पर न ला सके।
एकता का मतलब यह है कि मुसलमान क़ौमें एक दूसरे को, आपसी रिश्तों, बातचीत और मेल-मिलाप से पहचानें, न कि दुश्मनों की तरफ़ से कराए जाने वाले, फ़ितने पर आधारित, परिचय से पहचानें। एक दूसरे के संसाधनों और सलाहियतों से आगाह हों और उनसे फ़ायदा उठाने के लिए प्रोग्राम तैयार करें।
एकता का मतलब यह है कि इस्लामी जगत के साइंटिस्ट और यूनिवर्सिटियां एक दूसरे के कांधे से कांधा मिलाएं, इस्लामी मसलकों के धर्मगुरू एक दूसरे को अच्छे जज़्बे, सहिष्णुता और इंसाफ़ पसंदी की नज़र से देखें और एक दूसरे की बातें सुनें। हर मुल्क और हर मसलक के विद्वान, अवाम को एक दूसरे के संयुक्त बिन्दुओं से परिचित कराएं और उन्हें आपसी भाईचारे और मिल जुलकर रहने के लिए प्रेरित करें।
इसी तरह एकता इस मानी में है कि इस्लामी मुल्कों में राजनैतिक व सांस्कृतिक हस्तियां पूरे समन्वय से, सामने उभर रहे नए वर्ल्ड ऑर्डर के हालात के लिए तैयारी करें, दुनिया के नए तजुर्बे में, जो मौक़ों और ख़तरों से भरा हुआ है, इस्लामी जगत के लिए उसकी शान के मुताबिक़ पोज़ीशन को अपने हाथों और अपने इरादे से सुनिश्चित करें और पहले विश्व युद्ध के बाद पश्चिमी सरकारों के ज़रिए पश्चिम एशिया में की गई राजनैतिक व भौगोलिक तब्दीलियों के कड़वे अनुभव को दोहराने की इजाज़त न दें।