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ईरान की कूटनीतिक जीत से बिन सलमान के सामने नए समीकरण

ईरान की कूटनीतिक जीत से बिन सलमान के सामने नए समीकरण

इज़रायली अख़बार इज़रायल हायोम ने लिखा है कि, जैसे-जैसे इज़रायल पर दबाव बढ़ रहा है, सऊदी अरब ने क्षेत्रीय रिश्तों में नया रास्ता अपनाया है। विश्लेषकों के अनुसार यह बदलाव  ईरान की एक बड़ी कूटनीतिक जीत है।

फारस न्यूज़ एजेंसी के अंतरराष्ट्रीय डेस्क के मुताबिक़, इज़रायल हायोम ने रिपोर्ट दी कि, बेंजामिन नेतन्याहू की सरकार ने सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को बताया है कि, वह फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण के साथ सहयोग बढ़ाने या रियाद के साथ सामान्यीकरण की प्रक्रिया आगे बढ़ाने में दिलचस्पी नहीं रखते।

अख़बार ने लिखा: “7 अक्टूबर से पहले सऊदी अरब, इज़रायल के साथ सामान्यीकरण समझौते पर हस्ताक्षर करने और अब्राहम समझौतों में शामिल होने के करीब था, लेकिन अब यहूदी नए साल से ठीक पहले रियाद, फ़्रांस के साथ मिलकर फ़िलिस्तीन को एक देश के रूप में मान्यता दिलाने की अंतरराष्ट्रीय पहल की अगुवाई कर रहा है। इस बीच इज़रायल के साथ सामान्यीकरण का मुद्दा हाशिये पर चला गया है।”

इज़रायल हायोम के मुताबिक़, यह बदलाव “हमास और ईरान के लिए एक बड़ी कूटनीतिक उपलब्धि है।”

अमेरिकी और अरब राजनयिक सूत्रों ने बताया कि इस बदलाव का अंतिम कारण इज़रायल के रणनीतिक मामलों के मंत्री रॉन डेरमर और सऊदी क्राउन प्रिंस के दफ़्तर के बीच हुई टेलीफोन कॉल थी, जो दोहा वार्ताओं के टूटने के बाद हुई। इस बातचीत में ईरान की इज़रायल के साथ 12 दिन की जंग के बाद की स्थिति, इज़रायल के सीरिया से संपर्क, लेबनान का हाल और विशेषकर ग़ाज़ा युद्ध पर चर्चा हुई। रियाद ने इज़रायल से युद्ध ख़त्म करने और बाद की स्थिति की रणनीति के बारे में सवाल किया।

रिपोर्ट के अनुसार, डेरमर ने ज़ोर दिया कि इज़रायल पूरी तरह हमस को हराने और उसके दोबारा लौटने से रोकने के लिए दृढ़ है, और युद्ध के बाद ग़ाज़ा में फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण की किसी भी भूमिका को अस्वीकार करता है। जब यह संदेश क्षेत्र के सबसे शक्तिशाली अरब नेता को दिया गया, तो इसका ख़ास महत्व था।

सूत्रों का कहना है कि मोहम्मद बिन सलमान ने साफ़ तौर पर संदेश समझ लिया कि, “इज़रायल किसी भी तरह की राजनीतिक प्रक्रिया के लिए तैयार नहीं है, न प्रतीकात्मक तौर पर और न ही व्यावहारिक रूप से, भले ही एक निहत्था फ़िलिस्तीनी राज्य क्यों न हो।”

क्राउन प्रिंस ने फिर से अरब लीग की शांति पहल और सऊदी प्रस्ताव की शर्तें याद दिलाईं, जिनमें फ़िलिस्तीनी राज्य की स्थापना, प्रतिरोध का निरस्त्रीकरण और “कट्टरपंथ से मुकाबला” शामिल हैं। लेकिन रियाद का निष्कर्ष यह था कि इज़रायल इस राह पर चलने को तैयार नहीं है।

इज़रायल हायोम ने लिखा कि अरब देशों के समर्थन से जुड़ी सऊदी योजना फिलहाल स्थगित है और सामान्यीकरण की प्रक्रिया रुक गई है। जबकि युद्ध से पहले डेरमर रियाद-तेल अवीव संपर्क में सक्रिय थे और दोनों पक्ष साझा बयान जारी करने की तैयारी कर रहे थे।

एक अरब राजनयिक ने अख़बार को बताया: “सऊदी अरब अब अपने भविष्य के क्षेत्रीय दृष्टिकोण में इज़रायल को शामिल नहीं कर रहा और वाशिंगटन के साथ मिलकर यह दृष्टि तैयार कर रहा है।”

कुछ अरब राजनयिकों का अनुमान है कि युद्ध के बाद इज़रायल का रुख बदल सकता है, क्योंकि ट्रंप प्रशासन एक “बड़े क्षेत्रीय समझौते” में दिलचस्पी रखता है जिसमें ग़ाज़ा का पुनर्निर्माण और उसे एक पर्यटन केंद्र में बदलना शामिल है। उनका कहना है कि अगर इज़रायल नरम रवैया अपनाए तो फ़िलिस्तीन को अंतरराष्ट्रीय मान्यता दिलाना आसान होगा।

ग़ाज़ा युद्ध के बाद
अख़बार ने लिखा कि इस समय इज़रायल “युद्ध के अगले दिन” को लेकर गंभीर बातचीत कर रहा है। डेरमर ने दो हफ़्ते पहले वाशिंगटन में वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारियों से मुलाकात की थी। इन वार्ताओं में सऊदी अरब, अमीरात और मिस्र भी शामिल थे।

इज़रायल हायोम ने बताया कि मौजूदा हालात में सऊदी अरब और अमीरात, इज़रायल से सहमत हैं कि, ग़ाज़ा की भावी सरकार में फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण को भूमिका नहीं मिलनी चाहिए। ये देश और मिस्र “फ़िलिस्तीनी चरमपंथ को पूरी तरह ख़त्म करने” पर ज़ोर दे रहे हैं।

अख़बार ने यह भी खुलासा किया कि दक्षिण ग़ाज़ा में मानवीय इलाक़ों के लिए एक योजना लागू की जा रही है, जिसमें अंतरराष्ट्रीय संगठनों और अरब देशों की भागीदारी है। इस योजना के तहत सऊदी अरब शैक्षिक और पाठ्यक्रम कार्यक्रमों की ज़िम्मेदारी लेगा और अमीरात “सहिष्णुता और सह-अस्तित्व” से जुड़ा सामग्री फैलाने का काम करेगा।

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