ईरान इस युद्ध से और मज़बूत बनकर उभरा है: इज़रायली मीडिया
एक तरफ़ जहां ज़ायोनी शासन ईरान के परमाणु कार्यक्रम और सैन्य बुनियाद को खत्म करने का सपना देख रहा था, वहीं दूसरी तरफ़ ईरान ने जमीनी और सामरिक दोनों स्तरों पर ऐसा करारा जवाब दिया कि, खुद इज़रायल को मानना पड़ा है कि, “ईरान अब और भी ज़्यादा मज़बूत बनकर उभरा है। इज़रायली मीडिया की ताज़ा स्वीकारोक्तियाँ इस बात का स्पष्ट संकेत हैं कि इस युद्ध में असली विजेता ईरान रहा है।
अख़बार मैअरिव का यह कहना कि “ईरान ने क्षेत्रीय समीकरण बदल दिए हैं”, यह युद्ध इस बात की खुली गवाही है कि, ईरान अब सिर्फ़ एक देश नहीं, बल्कि एक रणनीतिक शक्ति है जिसकी गूंज पूरे मध्य पूर्व में सुनाई दे रही है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि, ईरान ने यह युद्ध अपने बल पर बिना किसी के समर्थन के लड़ा है जबकि, इज़रायल को अमेरिका का खुला समर्थन प्राप्त था।
जब इज़रायल ने सोचा कि वह ईरान के ऊपर चढ़ाई कर उसे झुका देगा, तब ईरान ने मिसाइलों की बारिश के साथ न सिर्फ़ अपना बचाव किया बल्कि अपने दुश्मनों को यह दिखा दिया कि इस सरज़मीन को धमकाकर कुछ हासिल नहीं किया जा सकता। यह युद्ध शायद नेतन्याहू के लिए, उनके जीवन की सबसे बड़ी भूल साबित होने वाला है।
इज़रायली संसद के ही एक सदस्य अमीत हालवी ने यह कबूल किया कि “ईरानी सत्ता बची हुई है और मिसाइल चलाने की ताक़त अभी भी उसके पास है” यह शब्द किसी हारे हुए दुश्मन के मुंह से निकले हुए सच्चे बयान हैं।
ईरान ने इस पूरे संघर्ष में संयम, आत्मरक्षा और निर्णायक प्रतिरोध का संतुलन दिखाया। उसने दुनिया को यह याद दिलाया कि, वह सिर्फ़ अपने मुल्क की हिफ़ाज़त ही नहीं करता, बल्कि फ़िलिस्तीन जैसे दबे-कुचले लोगों की आवाज़ भी बनता है।
इस स्वीकारोक्ति के बाद अब न सिर्फ़ इज़रायल, बल्कि उसके पश्चिमी समर्थकों, ख़ासकर अमेरिका, को यह समझ लेना चाहिए कि ईरान कोई अकेला या कमज़ोर देश नहीं, बल्कि वह एक वैचारिक, सैन्य और रणनीतिक शक्ति है, जो हर आक्रमण का जवाब देने के लिए तैयार है।

