ग़ाज़ा में अल-कुद्स अस्पताल भी युद्ध के मैदान में तब्दील
ग़ाज़ा में इज़रायली हमले के 38वें दिन सोमवार को जहां बमबारी तेज हो गई, वहीं अल-शिफा अस्पताल के बाद अल-कुद्स अस्पताल भी युद्ध के मैदान में तब्दील हो गया। अस्पताल प्रशासन के मुताबिक, अल-शिफा अस्पताल की तरह ही इजरायली सैनिक अल-कुद्स अस्पताल के परिसर में दिखने वाले हर शख्स को निशाना बना रहे हैं।
लड़ाई का केंद्र उत्तरी ग़ाज़ा में, जहां रविवार को केवल एक अस्पताल काम कर रहा था, स्वास्थ्य मंत्रालय ने सोमवार को कहा कि उत्तरी ग़ाज़ा में कोई भी अस्पताल काम नहीं कर रहा है। उधर, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र को चेतावनी दी है कि ”दुनिया को अब चुप नहीं रहना चाहिए।’ युद्ध रोकने की अपील में यूरोपीय संघ भी शामिल हो गया है, जो इज़रायल के अंध समर्थकों में से है।
फिलिस्तीन में सक्रिय मानवाधिकार संगठन रेड क्रिसेंट ने सोमवार को बताया कि अल-कुद्स अस्पताल के पास भारी गोलाबारी हुई है। संगठन ने कहा, “इस इलाके में बमबारी और भारी विस्फोट की आवाजें सुनी गई हैं।” रेड क्रिसेंट ने इज़रायल के अत्याचारों को उजागर करते हुए कहा कि अस्पताल में फंसे मरीजों को भी बाहर नहीं निकलने दिया जा रहा है। इसके लिए अल-कुद्स अस्पताल जाने वाली हर एंबुलेंस को अल-वास्ता गवर्नरेट के पास रोका जा रहा है या निशाना बनाया जा रहा है।
अल-शिफा अस्पताल को हजारों लोगों ने घेर लिया
ग़ाज़ा का सबसे बड़ा अस्पताल, अल-शिफा अस्पताल, कई दिनों की घेराबंदी के बाद अब चिकित्सा सेवाएं प्रदान करने में सक्षम नहीं है। यहां अस्पताल में शरण लिए 650 मरीज, 500 मेडिकल स्टाफ और 2500 विस्थापित लोग फंस गए हैं। यह जानकारी अस्पताल के निदेशक मोहम्मद ज़क़ूत ने दी है। शनिवार को यहां इलाज करा रहे मरीजों और मेडिकल स्टाफ की संख्या 15,150 थी जबकि शरणार्थियों की संख्या 7,000 बताई गई थी।
ताजा आंकड़ों से पता चलता है कि 2 दिनों में बड़ी संख्या में लोग अस्पताल से बाहर निकलने में कामयाब रहे हैं, लेकिन अभी भी वहां सैकड़ों लोग मौजूद हैं। संयुक्त राष्ट्र के एक अधिकारी ने कहा कि जो मरीज अभी भी अस्पताल में हैं, वे ऐसे हैं जिन्हें ले जाने के लिए विशेष व्यवस्था की जरूरत है। बड़ी संख्या में ऐसे मरीज हैं जिन्हें केवल विशेष एम्बुलेंस में ही ले जाया जा सकता है, इसलिए उन्हें अभी तक स्थानांतरित नहीं किया जा सका है।
अस्पताल में मरीज मर रहे हैं
इज़रायली ज़ुल्म के कारण अस्पताल में मरीज़ों को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराना असंभव हो गया है। ईंधन खत्म होने और बिजली आपूर्ति नहीं होने का नतीजा यह है कि सबसे जरूरी काम भी नहीं हो पा रहे हैं। 3 दिनों में अल-शिफा अस्पताल में इलाज करा रहे 33 मरीजों की मौत हो गई है। इनमें 6 समय से पहले जन्मे बच्चे भी शामिल
हैं।