ग़ाज़ा में मदद की उम्मीद में खड़े मासूमों पर गोलियों की बौछार, 18 शहीद, 200 से ज़्यादा घायल
गुरुवार को ग़ाज़ा एक बार फिर इज़रायली बर्बरता का गवाह बना, जब मानवीय सहायता की प्रतीक्षा कर रहे निहत्थे फ़िलिस्तीनी नागरिकों पर इज़रायली सेना ने अंधाधुंध फायरिंग कर दी। यह हमला उस समय हुआ जब सैकड़ों भूखे, बेघर और ज़ख़्मी लोग राहत केंद्रों के बाहर कतारों में खड़े होकर मदद का इंतज़ार कर रहे थे। इस क्रूर हमले में कम से कम 18 नागरिक शहीद हो गए, जबकि 200 से अधिक लोग घायल बताए जा रहे हैं।
फ़िलिस्तीनी न्यूज़ एजेंसी ‘सफा’ ने बताया कि हमले नतसारीम कॉरिडोर के पास और ग़ाज़ा के उत्तर-पश्चिमी हिस्से, अल-सुदानिया क्षेत्र में हुए। ये वही स्थान हैं जहाँ अंतरराष्ट्रीय संगठनों द्वारा सहायता वितरण केंद्र बनाए गए थे। स्थानीय चिकित्सा सूत्रों के मुताबिक, केवल नतसारीम क्षेत्र में ही 13 नागरिकों की जान इज़रायली गोलियों ने ले ली, जबकि दर्जनों लोग गंभीर रूप से घायल हुए।
वहीं, अल-सुदानिया में भी कुछ ऐसी ही दिल दहलाने वाली तस्वीरें सामने आई हैं। यहां पर सहायता सामग्री का इंतज़ार कर रहे लोगों पर अचानक गोलियों की बौछार कर दी गई, जिससे पाँच लोग मौके पर ही शहीद हो गए। कई अन्य घायलों को तुरंत शिफा अस्पताल ले जाया गया, जिनमें कई की हालत नाज़ुक है।
मानवाधिकार संगठन ‘डॉक्टर्स विदआउट बॉर्डर्स’ (MSF) ने पहले ही चेतावनी दी थी कि अब ग़ाज़ा में राहत केंद्रों तक पहुँचना “मौत की ओर बढ़ना” बन चुका है। इज़रायली फौज न केवल रिहायशी इलाकों को निशाना बना रही है, बल्कि अब उन जगहों पर भी हमला कर रही है जहाँ भूखे और घायल लोग थोड़ी राहत की आस लिए खड़े होते हैं।
यह घटना इज़रायली शासन की उस बेरहम मानसिकता को उजागर करती है, जिसमें एक पूरे समुदाय को संगठित रूप से भूखा रखना, डराना और मारना शामिल है। ग़ाज़ा आज दुनिया की सबसे बड़ी खुली जेल बन चुका है — और उसमें मदद मांगना अब इज़रायल के लिए “गुनाह” बन चुका है, जिसकी सज़ा मौत है।

