संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के ईरान-विरोधी रुख पर वैश्विक आक्रोश
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा ईरान पर से प्रतिबंध हटाने वाले प्रस्ताव को खारिज किए जाने पर दुनिया भर के साइबर कार्यकर्ताओं और विश्लेषकों ने कड़ा विरोध जताया है। उनका कहना है कि यह फैसला पश्चिमी देशों के दोहरे मापदंड और इज़रायली दबाव का स्पष्ट प्रमाण है।
फ़ार्स न्यूज़ एजेंसी के अंतरराष्ट्रीय विभाग से जुड़े गैर-ईरानी कार्यकर्ताओं ने याद दिलाया कि दशकों से चले आ रहे पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद ईरान ने विज्ञान, तकनीक और रक्षा क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हासिल की है। उनके मुताबिक, यूरोप और अमेरिका का यह रवैया न केवल अन्यायपूर्ण है बल्कि मध्य पूर्व में अस्थिरता को बढ़ावा देने वाला भी है।
रिपोर्ट के अनुसार, सुरक्षा परिषद ने शुक्रवार को ईरान पर लगे अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध हटाने की मांग वाले मसौदे को खारिज कर दिया। यह मतदान उस 30-दिवसीय प्रक्रिया का हिस्सा था, जिसे पिछले महीने ब्रिटेन, फ़्रांस और जर्मनी ने शुरू किया था। इन देशों ने दावा किया था कि, तेहरान ने उनकी शर्तों का पालन नहीं किया, इसलिए प्रतिबंधों को फिर से लागू किया जाना चाहिए।
विशेषज्ञों का मानना है कि, यह कदम केवल पश्चिमी राजनीति का एक औज़ार है, जिससे इज़रायल को फायदा पहुँचाया जा रहा है। आलोचकों ने इसे “ज़ायोनी लॉबी का प्रभाव” करार देते हुए कहा कि, यदि पश्चिम सचमुच वैश्विक सुरक्षा चाहता है तो उसे ग़ाज़ा में जारी नरसंहार करने वाले इज़रायल पर प्रतिबंध लगाना चाहिए।
कई उपयोगकर्ताओं ने सुझाव दिया कि, ईरान पर इस तरह का दबाव वास्तव में उसे आत्म-निर्भर और मज़बूत बनने की ओर धकेल रहा है। उनका कहना है कि इस अन्यायपूर्ण व्यवहार का सबसे प्रभावी जवाब यह होगा कि, ईरान एनपीटी (परमाणु अप्रसार संधि) से बाहर निकले और अपनी परमाणु क्षमता को और विकसित करे।
साथ ही, कार्यकर्ताओं ने यह भी कहा कि, ग़ाज़ा में इज़रायल की आक्रामकता और नरसंहार पर अमेरिका, यूरोप और यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र की चुप्पी दिखाती है कि पश्चिमी ताक़तों के लिए मानवाधिकार और अंतर्राष्ट्रीय कानून केवल राजनीतिक हथियार हैं।
ईरान समर्थकों के अनुसार, यह समय है कि इस्लामी और स्वतंत्र राष्ट्र मिलकर एकजुट हों और पश्चिमी पाखंड का मुकाबला करें, ताकि वैश्विक न्याय और असली शांति की राह खोली जा सके।

