ग़ाज़ा को नीलाम नहीं किया जा सकता मिस्टर ट्रंप
ग़ाज़ा में मानव इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदी और हमास की कामयाबी के बाद, इज़रायल और संयुक्त राज्य अमेरिका अब इसका बदला लेने की तैयारी कर रहे हैं। जहां नवनिर्वाचित अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ग़ाज़ा को खरीदकर उसका मालिक बनने की शर्मनाक इच्छा व्यक्त की है, वहीं इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने फिलिस्तीनियों को सऊदी अरब और अन्य पड़ोसी देशों में बसाने की बात कही है। संयुक्त राज्य अमेरिका और इज़रायल वे शक्तियां हैं जिन्होंने पिछले 80 वर्षों से फिलिस्तीनियों का जीवन असंभव बना दिया है और पूरे क्षेत्र को नर्क में बदल दिया है। इज़रायल ने ग़ाज़ा की ईंट- ईंट तक को नष्ट कर दिया है, यहां तक कि, उसने स्कूलों और अस्पतालों पर भी बमबारी की, जिसके नतीजे में हज़ारों मरीज़ों और डॉक्टरों ने दम तोड़ दिया। हज़ारों नवजात बच्चों ने ऑक्सीजन की कमी से आईसीयू में दम तोड़ दिया।
ग़ाज़ा इस समय दुनिया के सबसे बड़े कब्रिस्तान के रूप में हमारे सामने है। यहाँ खंडहर के अलावा कुछ नहीं बचा है। पंद्रह महीने की इज़रायली क्रूरता, बर्बरता, आतंक और उत्पीड़न ने ग़ाज़ा को एक खंडहर में बदल दिया है, जहां ज़िंदगी के निशान मिट चुके हैं। इस लंबी बर्बरता के बाद जब पिछले महीने युद्ध-विराम लागू हुआ तो उम्मीद जगी थी कि अब दुनिया ग़ाज़ा के पुनर्वास की दिशा में आगे बढ़ेगी और फिलिस्तीनियों से उनकी जमीन पर किए गए जुल्म और बर्बरता के लिए माफी मांगी जाएगी। लेकिन ऐसा करने की बजाय दुनिया का सबसे सबसे ताक़तवर देश अमेरिका, ग़ाज़ा को खरीद कर उसका मालिक बनने की बात कर रहा है। ग़ाज़ा के मज़लूमों, मासूम बच्चों, और वहां के निवासियों के नरसंहार के बाद इज़रायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने बहुत ही ढिठाई और बेशर्मी से कहा है कि, 7 अक्टूबर 2023 के बाद कोई फिलिस्तीनी राज्य नहीं रहेगा।
यह बयान इज़रायली राज्य के पीएम, नेतन्याहू ने दिया है। ऐसा राज्य, जिसने अवैध रूप से फ़िलिस्तीनियों की असली जमीन पर कब्जा कर लिया है और यहूदी बस्तियाँ बना ली हैं। मुसलमानों का फिलिस्तीन के साथ एक अटूट रिश्ता है। यहाँ पर मुसलमानों की श्रद्धा और सम्मान का तीसरा प्रमुख केंद्र क़िब्ल -ए-अव्वल है। दुनिया भर के मुसलमान क़िब्ल -ए-अव्वल की बहाली के लिए प्रतिबद्ध हैं।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि हमास ने पिछले पंद्रह महीनों में इज़रायल को छठीं का दूध याद दिला दिया है। इज़रायल की तमाम आक्रामकता के बावजूद, उसने आत्मसमर्पण नहीं किया और आखिरकार इज़रायल को अपने बंधकों को रिहा करने के लिए बातचीत की मेज पर आने के लिए मजबूर कर दिया। यह वास्तव में इज़रायल की सबसे बड़ी हार और हमास की सबसे बड़ी जीत है। भविष्य में और भी ख़तरे का सामना करने का डर, इज़रायल को बचे हुए फ़िलिस्तीन को मिटाने के लिए मजबूर कर रहा है। क्या इज़रायल वाकई फ़िलिस्तीन को मिटा पाएगा? या फिर यह ज़ायोनिज़्म का एक सपना है जो कभी साकार नहीं होगा।
दुनिया जानती है कि फिलिस्तीनी दुनिया के एकमात्र गौरवशाली लोग हैं, जो पिछले 80 वर्षों से सबसे भयानक अत्याचार और बर्बरता का सामना करने के बावजूद अपने प्यारे वतन की रक्षा के लिए डटे हुए हैं। कोई और राष्ट्र होता तो अपनी धरती छोड़कर कहीं और चला जाता या फिर गुलामी का जीवन स्वीकार कर लेता, लेकिन ये फिलिस्तीनी हैं, जो अपने वतन की एक इंच जमीन से भी पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। हाल ही में, जब इज़रायल ने अमेरिका की मदद से ग़ाज़ा पर लगातार बमबारी की और वहां के जीवन के निशान मिटा दिए, तब भी एक भी फिलिस्तीनी नागरिक ऐसा नहीं था जिसने दया की भीख मांगी हो। पूरे-पूरे गांव उजाड़ दिए गए। हजारों फिलिस्तीनियों ने शहादत का जाम पिया। पूरे-पूरे परिवार मौत के मुंह में चले गए। सीमित अनुमानों के मुताबिक, ग़ाज़ा में शहीदों की संख्या पचास हजार से अधिक है, जबकि स्वतंत्र स्रोतों ने यह संख्या ढाई लाख से अधिक बताई है। लाखों घायलों में महिलाएं, बच्चे, बूढ़े और जवान सभी शामिल हैं। लोगों का सब कुछ लूट चुका है, लेकिन एक भी कमजोर आवाज सुनाई नहीं दी है।
ऐसे गर्वित राष्ट्र को खरीदने और उसकी बोली लगाने का काम वही लोग कर सकते हैं जो अपना मानसिक संतुलन खो चुके हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप उनके सरदार लगते हैं, जो खुलकर ग़ाज़ा की बोली लगाकर पूरी दुनिया में अपनी बदनामी कर रहे हैं। पूरी दुनिया ने उनकी इस इच्छा को हास्यास्पद बताकर खारिज कर दिया है। दुर्भाग्य यह है कि ट्रंप ने ग़ाज़ा को खरीदने के अपने घटिया और नापाक इरादों की चारों ओर से निंदा होने के बावजूद अभी भी अपना रुख नहीं बदला है। उन्होंने पिछले सोमवार को एक बार फिर कहा है कि वे ग़ाज़ा को खरीदने और उसकी मिल्कियत हासिल करने के लिए प्रतिबद्ध हैं ताकि हमास वापस न आ सके। उन्होंने कहा कि “वहां वापस जाने के लिए कुछ भी नहीं है, यह जगह विनाश की जगह है, बाकी जगह को भी मिटा दिया जाएगा, सब कुछ तबाह हो चुका है।”
अमेरिकी प्रसारण संस्था सीएनएन के अनुसार, अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा है कि “मेरे विचार में फिलिस्तीनियों या ग़ाज़ा में रहने वाले लोगों को एक बार फिर वापस जाने की अनुमति देना एक बड़ी गलती होगी और हम नहीं चाहते कि हमास वापस आए।” उन्होंने आगे कहा कि “ग़ाज़ा को एक बड़ी रियल एस्टेट साइट के रूप में सोचें और अमेरिका इसका मालिक बनने जा रहा है और हम धीरे-धीरे ऐसा करेंगे।”
पिछले साल फरवरी में जब ग़ाज़ा पर बमों की बारिश हो रही थी और उसके तट पर मौत का नृत्य जारी था, तो नवनिर्वाचित अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप का यहूदी दामाद, जिसने बेशर्मी और बेगैरत की सारी हदें पार करते हुए कहा था कि “ग़ाज़ा का तट बहुत खूबसूरत है और वहां लग्ज़री होटल और विला बन जाएं तो दुनिया भर से लाखों सैलानी आएंगे।” स्पष्ट हो कि ट्रंप का यह दामाद, जिसका नाम जेरेड कुशनर है, एक रियल एस्टेट कंपनी का मालिक और बड़ा पूंजीपति है। उसकी कंपनी सर्बिया और अल्बानिया के युद्ध से तबाह हुए इलाकों में लग्ज़री विला बना रही है। अब ग़ाज़ा का खूबसूरत तट उसकी निगाह में है, जहां वह दुनिया की अय्याशियों का सामान मुहैया कराकर अरबों डॉलर कमाना चाहता है। न्यूयॉर्क का एक और यहूदी रियल एस्टेट पूंजीपति स्टीवन कोहेन भी जेरेड का साथी है, जिसे ट्रंप ने पिछले महीने मध्य पूर्व के लिए अपना विशेष दूत नियुक्त किया है।
यही वजह है कि ट्रंप ने ग़ाज़ा को खरीदने और उसका मालिक बनने की तीव्र इच्छा जाहिर की है। लेकिन लालच के यह सौदागर, उस अमर जज़्बे से वाकिफ नहीं हैं, जो फिलिस्तीनियों का अपनी मातृभूमि के साथ है। दुनिया की कोई ताकत फिलिस्तीनियों के इस लौह जज़्बे को ठंडा नहीं कर सकती। यही वजह है कि हमास ने इन मंसूबों की ख़बर लेकर उन्हें ध्वस्त कर दिया है। हमास के राजनीतिक कार्यालय के सदस्य इज़्ज़त अल-रिश्क ने आश्वासन दिया है कि फिलिस्तीनी जनता, अपने जबरन विस्थापन की सभी योजनाओं को विफल कर देगी। उन्होंने कहा कि “ग़ाज़ा कोई संपत्ति नहीं है जिसकी खरीद-फरोख्त की जाए, बल्कि यह क़ब्ज़े वाली फिलिस्तीनी भूमि का अटूट हिस्सा है।” इज़्ज़त अल-रिश्क ने ट्रंप के बयान को बेमानी ठहराते हुए कहा कि “यह फिलिस्तीन और क्षेत्र के संदर्भ में गहरी अज्ञानता को दर्शाता है।”
इस बीच, हमास ने इज़रायल पर युद्धविराम समझौते का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हुए अधिक कैदियों की रिहाई को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया है। अल-क़स्साम ब्रिगेड के प्रवक्ता अबू उबैदा ने कहा कि “ज़ायोनी राज्य द्वारा किए गए उल्लंघनों में बेघर लोगों की उत्तरी ग़ाज़ा वापसी में देरी, ग़ाज़ा के विभिन्न क्षेत्रों में कार्रवाई के जरिए नागरिकों को निशाना बनाना और समझौते के अनुसार हर तरह के सहायता सामग्री के काफिले को अनुमति न देना शामिल है, जबकि इन सबके बावजूद हमास ने समझौते के तहत अपनी सारी जिम्मेदारियां पूरी की हैं।” दूसरी ओर, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हमास को धमकी दी थी कि, अगर ग़ाज़ा से शनिवार दोपहर तक सभी इज़रायली बंधक रिहा नहीं हुए तो युद्ध-विराम के खात्मे का प्रस्ताव दूंगा, जिसके बाद तबाही आएगी।” ट्रंप ने शनिवार तक का समय देते हुए ग़ाज़ा को नर्क में परिवर्तित करने की धमकी दी थी। पूरी दुनियां ट्रंप की इस धमकी के बार यह सोचने पर मजबूर है कि, आख़िर ट्रंप ग़ाज़ा पट्टी को किस तरह का नर्क बनाना चाहते हैं ? क्या अभी भी कोई ऐसा अत्याचार बाक़ी रह गया है, जो इज़रायल ने अंजाम नहीं दिया गया है ?
लेकिन हमास ने उनकी धमकियों को दरकिनार करते हुए साफ़ साफ़ एलान कर दिया था कि, इज़रायली बंधकों की रिहाई केवल युद्ध विराम समझौते से मुमकिन है। इस तरह ग़ाज़ा में एक बार फिर युद्ध के बादल मंडरा रहे हैं। अगर एक बार फिर ग़ाज़ा पर आग बरसाई गई तो स्थिति काफी जटिल हो जाएगी।
ट्रंप ने शनिवार तक का समय देते हुए ग़ाज़ा को नर्क में परिवर्तित करने की धमकी दी थी। पूरी दुनियां ट्रंप की इस धमकी के बाद यह सोचने पर मजबूर थी कि, आख़िर ट्रंप ग़ाज़ा पट्टी को किस तरह का नर्क बनाना चाहते हैं?? क्या अभी भी कोई ऐसा अत्याचार बाक़ी रह गया है, जो इज़रायल ने अंजाम नहीं दिया है?? वास्तविक्ता यह है कि, ऐसा कोई अत्याचार नहीं है जो ग़ाज़ा में अंजाम नहीं दिया गया। ग़ाज़ा के मलबे, इज़रायली बर्बरता को बयान कर रहे हैं। खंडहर में तब्दील हो चुके ग़ाज़ा के अस्पताल, और उस अस्पातल में ऑक्सीजन की कमी से शहीद होने वाले नवजात बच्चों की लाशें, चीख़-चीख़ कर पूरी दुनियां को आवाज़ दे रही हैं कि, आओ और आकर देखो कि, हम पर किस तरह लड़ाकू विमानों से बमबारी की गई। हमारे माता पिता ने भूखे-प्यासे रहकर ज़ख़्मी हालत में, कांपते हुए हाथों से, हमारी लाशें उठाईं लेकिन किसी भी हालत में ज़ालिम के सामने घुटने नहीं टेके।
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