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ग़ाज़ा युद्ध खत्म करने की मांग करने वाले 25 देशों की दोहरी नीति का पर्दाफ़ाश

ग़ाज़ा युद्ध खत्म करने की मांग करने वाले 25 देशों की दोहरी नीति का पर्दाफ़ाश

अलजज़ीरा ने एक इन्फोग्राफ़िक जारी कर उन देशों की दोहरी सोच को उजागर किया है जो एक तरफ़ ग़ाज़ा में युद्ध को तुरंत रोकने की मांग कर रहे हैं, लेकिन दूसरी तरफ़ इज़रायल पर दबाव बनाने के लिए अपने आर्थिक और व्यापारिक हितों को त्यागने को तैयार नहीं हैं। पिछले सोमवार, दुनिया के 25 देशों — जिनमें ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, जापान, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, डेनमार्क और न्यूज़ीलैंड शामिल हैं — ने एक संयुक्त बयान जारी कर ग़ाज़ा में युद्ध को तुरंत समाप्त करने और इज़रायली अत्याचारों को रोकने की मांग की।

हालांकि व्यापारिक आंकड़ों से साफ़ होता है कि यही देश जो ग़ाज़ा में अभूतपूर्व “मानवीय पीड़ा” की बात कर रहे हैं, वही इज़रायल के मुख्य आर्थिक साझेदार भी हैं — और ये साझेदारी आज भी जारी है।

Observatory of Economic Complexity (OEC) की रिपोर्ट के अनुसार, इन सभी देशों ने पिछले वर्ष इज़रायल के साथ बड़े पैमाने पर व्यापार किया है — चाहे वह आयात हो या निर्यात। ये आंकड़े इन देशों की राजनीतिक और नैतिक ईमानदारी पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं, खासकर ग़ाज़ा जैसे मानवीय संकट के समय। अलजज़ीरा द्वारा जारी इन्फोग्राफ़िक में इन देशों और इज़रायल के बीच बीते वर्ष का व्यापारिक लेनदेन साफ़ दर्शाया गया है।

स्पष्ट दोहरापन: निंदा भी, फायदा भी
जहाँ ये देश अंतरराष्ट्रीय मंचों पर संघर्ष-विराम और हिंसा रोकने की बातें करते हैं, वहीं दूसरी ओर इज़रायल के साथ उनका आर्थिक सहयोग न केवल जारी है, बल्कि कई मामलों में और बढ़ा है। चाहे वह इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, दवाइयाँ, सैन्य तकनीक की बिक्री हो या फिर इज़रायल से हाईटेक टेक्नोलॉजी और उपभोक्ता वस्तुओं का आयात।

इज़रायल इन देशों के लिए अब भी एक भरोसेमंद और लाभकारी व्यापारिक साझेदार बना हुआ है। ऐसे में ये स्पष्ट होता है कि “मानवाधिकारों की दुहाई” और “ग़ाज़ा की मानवीय हालत” पर चिंता जताने वाले बयान दरअसल ज़मीनी हकीकत से दूर हैं — और ज़्यादातर इनका मक़सद सिर्फ़ आंतरिक जनदबाव और अंतरराष्ट्रीय आलोचना को संभालना है, न कि वास्तव में ज़ुल्म के खिलाफ़ खड़ा होना।

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