ग़ाज़ा पर पूर्ण क़ब्ज़ा भी हमास की हार की गारंटी नहीं: इज़रायली सैन्य कमांडर
इज़रायली सेना द्वारा ग़ाज़ा को 700 दिनों से अधिक समय तक निशाना बनाए जाने के बावजूद, इज़रायल के ऑपरेशन डिवीजन के जनरल प्रमुख ने स्वीकार किया है कि, ग़ाज़ा पर पूर्ण क़ब्ज़ा भी हमास की हार की गारंटी नहीं है और यह आंदोलन सैन्य अनुमानों से कहीं आगे बढ़कर काम करता है।
इज़रायल के ऑपरेशन डिवीजन के प्रमुख यिस्राइल शूमीर ने कहा कि, ग़ाज़ा पट्टी पर क़ब्ज़ा, हमास की हार होगा यह कहना थोड़ा संदिग्ध है। उन्होंने इज़राइली आर्मी रेडियो से बातचीत में कहा: “मैं आश्वस्त नहीं हूँ कि ग़ाज़ा पर नियंत्रण हमास को पराजित कर सकता है। इस आंदोलन के सरेंडर करने का कोई निश्चित बिंदु तय करना मुश्किल है।”
शूमीर ने रिज़र्व फोर्स की स्थिति पर भी बात करते हुए कहा: “यह स्पष्ट नहीं है कि वर्ष 2026 में रिज़र्व सैनिकों को कितने दिनों के लिए सेवा हेतु बुलाया जाएगा। उन्होंने आगे कहा कि गिडोन की गाड़ियों (Operation Gideon Chariots) के अगले चरणों में सैन्य अभियान जारी रखने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता: “मैं उस बिंदु तक नहीं पहुँचना चाहता, लेकिन संभव है कि ऐसा हो।”
गिडोन चैरियट्स-2 अभियान पिछले बुधवार को तीन हफ़्तों की भीषण बमबारी के बाद आधिकारिक रूप से शुरू किया गया। इस कदम ने इज़रायल के भीतर आलोचना और विरोध की लहर पैदा कर दी, ख़ास तौर पर उन इज़रायली बंदियों के परिवारों से, जो अपने प्रियजनों की जान को लेकर चिंतित हैं। आर्मी रेडियो इस वरिष्ठ अधिकारी का पूरा साक्षात्कार आज (रविवार) प्रसारित करने वाला है।
इज़रायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू बार-बार दावा कर चुके हैं कि ग़ाज़ा पट्टी में सैन्य अभियानों को जारी रखकर हमास को खत्म किया जा सकता है और इज़राइली बंदियों को वापस लाया जा सकता है, वहीं ज़मीनी हक़ीक़तें दिखाती हैं कि ये लक्ष्य हासिल करना संभव नहीं है।
आज रविवार सुबह, ग़ाज़ा युद्ध शुरू होने के 700 दिनों से अधिक बीत जाने के बाद भी, ग़ज़ा पट्टी के आसपास कई बस्तियों में अलार्म सायरन बज उठे। इज़रायल की एयर डिफेंस सिस्टम ने दो रॉकेटों को इंटरसेप्ट कर लिया, लेकिन इस घटना ने फिर साबित किया कि ग़ाज़ा से रॉकेट हमले अब भी जारी हैं और दक्षिणी इज़रायल के बस्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं हुई है।
यह सब उस समय हो रहा है जब नेतन्याहू हाल के भाषणों में गिडोन चैरियट्स जैसे सैन्य अभियानों को हमास के ख़तरे को समाप्त करने और बंदियों की वापसी का “अंतिम समाधान” बता रहे थे। लेकिन लगातार जारी रॉकेट हमलों और सीमा क्षेत्रों में अलार्म बजने की घटनाओं ने इस रणनीति की प्रभावशीलता पर और अधिक संदेह पैदा कर दिया है।
विश्लेषकों का मानना है कि भारी मानवीय और सैन्य नुक़सान के बावजूद न केवल हमास समाप्त नहीं हुआ है, बल्कि उसने रॉकेट हमलों की अपनी क्षमता को बनाए रखा है। इज़रायली बंदियों के परिवार भी कई बार विरोध प्रदर्शन कर चुके हैं और सरकार से नीतियों में बदलाव कर कैदी विनिमय समझौते की मांग की है।

