ब्रिटिश डॉक्टर की ग़ाज़ा में बिताए गए, 7 महीनों की दर्दनाक यादें
डॉक्टर मोहम्मद ताहिर ने ग़ाज़ा में चल रहे संघर्ष के दौरान अस्पतालों की भयावह स्थिति का वर्णन करते हुए एक दर्दनाक तस्वीर पेश की। उन्होंने बताया कि गोलाबारी के कारण मस्तिष्क की चोटों से पीड़ित कई बच्चे अस्पतालों में लाए गए। एक समय ऐसा आया जब चार या पाँच बच्चे एक साथ ज़मीन पर पड़े हुए थे और उनकी जान निकल रही थी। डॉक्टरों के सामने एक भयानक स्थिति थी। उन्हें जीवन और मृत्यु के बीच चयन करना पड़ा, क्योंकि अस्पतालों में वेंटिलेटर और अन्य जीवनरक्षक उपकरणों की संख्या बहुत सीमित थी।
डॉक्टर ताहिर ने बताया कि जब एक बच्चे का दिल रुक जाता था और उसके लिए कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन (सीपीआर) करने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं होते थे, तो उन्हें बस उस बच्चे को मरने देना पड़ता था। यह स्थिति डॉक्टरों और चिकित्सा कर्मचारियों के लिए बेहद दर्दनाक और मानसिक रूप से तोड़ देने वाली थी।
उन्होंने कहा कि एक चिकित्सा प्रणाली उपकरण, दवाएं, चिकित्सा कर्मचारी, और साफ व सुरक्षित वातावरण जैसे मूलभूत सिद्धांतों पर टिकी होती है। जब इनमें से कोई एक भी तत्व गड़बड़ा जाता है, तो पूरी चिकित्सा प्रणाली ध्वस्त होने लगती है। ग़ाज़ा में युद्ध के दौरान इन सभी संसाधनों की भारी कमी हो गई थी।
अस्पतालों में बिजली, पानी, दवाइयों और उपकरणों की कमी थी। ऐसे में, डॉक्टर ताहिर को समझ नहीं आ रहा था कि आखिरकार ग़ाज़ा के अस्पताल कैसे चल रहे थे। उन्होंने कहा कि, इसके पीछे शायद लोगों की अटूट इच्छाशक्ति और उनका विश्वास ही था, जो उन्हें इस कठिन समय में भी लड़ने की ताकत दे रहा था।
यह स्थिति न केवल ग़ाज़ा के लोगों के लिए, बल्कि पूरी मानवता के लिए एक बड़ा सवाल खड़ा करती है। डॉक्टर ताहिर की यह कहानी युद्ध के कारण होने वाली मानवीय त्रासदी की एक झलक दिखाती है और यह दर्शाती है कि कैसे संघर्ष के दौरान निर्दोष बच्चों और नागरिकों को भारी कीमत चुकानी पड़ती है।