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बहरैन, तानाशाही के विरुद्ध भूख हड़ताल के 400 दिन पूरे

बहरैन, तानाशाही के विरुद्ध भूख हड़ताल के 400 दिन पूरे

आले ख़लीफा तानाशाही की नीतियों के विरुद्ध भूख हड़ताल पर बैठे बहरैन यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर अब्दुल जलील को बिना किसी अपराध के जेल में बंद हुए काफी अरसा गुज़र गया है.
बहरैन के लोकप्रिय सामाजिक कार्यकर्ता और आले ख़लीफा का राजनैतिक विरोधी अब्दुल जलील पिछले एक साल से भी अधिक समय से जेल में ही भूख हड़ताल पर हैं.

बहरैन यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर अब्दुल जलील सनकीस ने आले ख़लीफा तानाशाही की देश के बहुसंख्यक शिया समाज के खिलाफ अपनाई जा रही दमनकारी और भेदभावपूर्ण नीतियों का जमकर विरोध किया था जिसके सबब उन्हें जेल में डाल दिया गया था.

आले ख़लीफा तानाशाही का विरोध करने पर जेल में डाले गए प्रोफ़ेसर अब्दुल जलील सनकीस ने जेल में रहते हुए एक किताब लिखी जिसे जेलर ने ज़ब्त कर लिया और इस किताब को जनता के बीच जाने नहीं दिया जिसके बाद प्रोफ़ेसर अब्दुल जलील सनकीस ने भूख हड़ताल शुरू की.

प्रोफ़ेसर अब्दुल जलील सनकीस को जेल में भूख हड़ताल शुरु किए हुए 400 दिन से अधिक बीत गए हैं लेकिन आले ख़लीफा तानाशाही इस प्रखर शिक्षाविद के खिलाफ अपने अत्याचार खत्म करने के लिए तैयार नहीं दिख रही है. आले खलीफा तानाशाही न तो उनकी किताब वापस कर रही है न ही उन्हें जेल से आज़ाद करने पर तैयार दिख रही है जबकि दुनियाभर की मानवाधिकार संस्थाएं और बहरैन की जनता उनकी रिहाई की मांग कर रही है.

बता दें कि 15 अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाओं ने आले ख़लीफा तानाशाही से मांग की है कि प्रोफ़ेसर अब्दुल जलील सनकीस को फ़ौरन बिना किसी शर्त के रिहा किया जाए. प्रोफ़ेसर अब्दुल जलील सनकीस की बिगड़ती हालत की ख़बरों के बीच ह्यूमन राइट्स के लिये काम करने वाली इन संस्थाओं ने बहरैन के शासक को पत्र लिख कर मांग की है कि उन्हें जल्द बेहतर इलाज के लिए आज़ाद किया जाए.

याद रहे कि 2011 में शुरू हुए सुधार आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए 60 वर्षीय प्रोफेसर अब्दुल जलील को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई है.

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